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उत्तराखण्ड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार मार्च में एक साल पूरा कर रही है। हालांकि किसी भी सरकार के कार्यों को परखने के लिए एक साल का समय काफी कम होता है, पर इतने कम समय में ही मुख्यमंत्री मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) भुवन चन्द्र खण्डूरी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने काफी कुछ किया है। सरकार की उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं के संदर्भ में हमने मुख्यमंत्री श्री खण्डूरी से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उस बातचीत के मुख्य अंश-राज्य में भ्रष्टाचार के लिए स्थान नहीं!!-मेजर जनरल (से.नि.) भुवनचन्द्र खण्डूरी, मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड-जितेन्द्र तिवारीमुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय जो विचार और राज्य की प्रगति का जो सपना आपके मन में था, आज एक वर्ष पूरा होने पर आप उसे कहां तक पूर्ण हुआ मानते हैं? 8 मार्च, 2007 को जब मैंने शपथ ली थी तो उससे पूर्व की परिस्थितियों और जानकारियों के आधार पर एक खाका मन में तैयार हो चुका था कि उत्तराखण्ड को कैसे आगे बढ़ाना है। उस समय प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता, वित्तीय अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार का बोलबाला था। पूरी व्यवस्था पटरी से उतरी हुई थी। सरकारी व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना मेरी प्राथमिकता थी। सबसे बड़ी बात थी सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना। मेरी सोच थी कि मुख्यमंत्री से लेकर निचली श्रेणी का कर्मचारी जनता के प्रति जवाबदेह बने और पूरा प्रशासनिक तंत्र पारदर्शी हो। इसे कार्य का आधार बनाकर हम आगे बढ़े और आज एक साल बाद मैं समीक्षा करता हूं तो लगता है कि कई क्षेत्रों में हमें सफलता मिली है और बाकी क्षेत्रों में हम उस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।वे कौन-सी प्रमुख उपलब्धियां हैं जिनका लाभ जनता को भी दिख रहा है? जनता को यह विश्वास हो गया है कि सरकार पूरी ईमानदारी से जनहित के काम करना चाहती है। उसे भरोसा हो गया है कि सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करके जवाबदेह और पारदर्शी शासन चलाना चाहती है। कांग्रेस के शासनकाल में वित्तीय अनुशासनहीनता अराजकता के स्तर तक जा पहुंची थी। हमने उसको प्राथमिकता मानकर ठीक किया। इसमें समय लगा, कठिनाइयां भी आयीं, पर हमें सफलता मिली। जो काम हमने तुरंत किए उनमें प्रमुख हैं- 250-300 लालबत्तियों को हटाना, जो कांग्रेस ने बांट रखी थीं। इन पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च हो रहे थे। निजी सुरक्षा के नाम पर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी प्रदेश के बाहर तैनात थे, हमने उन्हें वापस बुलाया। इससे भले ही कोई आर्थिक बचत न हुई हो पर प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई। सरकार के कुछ अनावश्यक व्यक्तिगत खर्च, जिन्हें फिजूल खर्च ही कहा जाना चाहिए, पर भी रोक लगाने के प्रयास हुए। इसकी पहल मैंने स्वयं से की। जहां मुख्यमंत्री के काफिले में पहले 8 वाहन चलते थे, उन्हें घटाकर मैंने मात्र 2 तक सीमित कर दिया।अपने काफिले में मात्र 2 कारों को ही चलने देने के आपके निर्णय की सर्वत्र चर्चा व प्रशंसा होती है। यह विचार मन में कैसे आया?मैंने सरकार बनाने के बाद सार्वजनिक रूप से कहा था कि भ्रष्टाचार को समाप्त करने, वित्तीय अनुशासन लाने, सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए कोई भी बात शुरू होगी तो सबसे पहले मुझ पर यानी मुख्यमंत्री पर लागू होगी। इसी कारण मैंने अपने काफिले का आकार छोटा किया। इससे पहले मुख्यमंत्री कार अथवा हवाई जहाज से दिल्ली जाते थे, मैंने तय किया है कि रेलगाड़ी से ही जाऊ‚ंगा। इस नियम का मैं पालन कर रहा हूं और जनता को भरोसा हो चला है कि हम सिर्फ घोषणाएं ही नहीं करते हैं, उन पर अमल भी करते हैं।भ्रष्टाचार रोकने के लिए आपने क्या प्रमुख उपाय किए?सर्वाधिक भ्रष्टाचार नौकरियों में भर्ती के मामलों में हो रहा था। पटवारी भर्ती घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला जैसे कई घोटाले बहुत चर्चित हुए थे। आखिर नौकरी पाने के लिए कोई गरीब आदमी 2-3 लाख रुपए कहां से लाएगा? इसलिए हमारी सरकार ने आते ही सभी प्रकार की भर्तियों पर तुरंत रोक लगाई। फिर 10 दिन के भीतर ही नई भर्ती नीति घोषित की। इसके अन्तर्गत हमने नौकरी के लिए साक्षात्कार की प्रक्रिया को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। इसके साथ ही परीक्षा के प्रश्न पत्रों का स्वरूप वस्तुपरक (आब्जेक्टिव) बनाया, ताकि मूल्यांकन में हेर-फेर न की जा सके। यह भी निर्णय हुआ कि उत्तर पुस्तिका दो भागों में होगी, जिसकी प्रतिलिपि (कार्बन कापी) परीक्षार्थी अपने घर ले जा सकेगा। ऐसा करने से अभ्यर्थी स्वयं घर पर या किसी विशेषज्ञ की मदद से जांच लेगा कि उसके कितने नंबर आने चाहिए। यदि परीक्षा परिणाम में उतने नंबर नहीं आए तो वह पुनर्मूल्यांकन एवं जांच की मांग कर सकता है। नौकरियों में भर्ती की इस पारदर्शी प्रक्रिया का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार विकास कार्यों से जुड़े मामलों में भ्रष्टाचार न हो इसके प्रयास चल रहे हैं, हमें अभी इस दिशा में लम्बा रास्ता तय करना है।पर कहा जा रहा है कि पारदर्शिता और अनुशासन पर ज्यादा जोर देने के कारण विकास की गति बहुत धीमी पड़ गई है। भ्रष्टाचार न हो, इस कोशिश में किए जाने वाले काम भी नहीं हो रहे हैं।इस प्रकार का प्रचार लोगों को गुमराह करने वाला है। तथ्यों के आधार पर कसें तो एक बात भी खरी नहीं उतरती। पहले प्रचार किया गया कि मुख्यमंत्री जनसुलभ नहीं हैं, लोगों से मिलते नहीं हैं। मैं प्रतिदिन एक घण्टा अपने दफ्तर में लोगों से मिलता हूं। उस अवधि में कोई भी बिना पूर्व सूचना के मिलने आ सकता है। मैंने अपने विभाग में शिकायत एवं सुझाव प्रकोष्ठ स्थापित किया है, जिसमें लोग आते हैं और उनकी बातों पर मैं स्वयं कार्यवाही करता हूं। इसी प्रकार दुष्प्रचार किया गया कि कोई खर्च ही नहीं हो रहा है। पिछले 10 महीने में जितने काम हुए हैं उसके बारे में हमारी पूर्ववर्ती सरकार ने कभी सोचा तक नहीं था। हमने पहाड़ में यातायात को सुगम बनाने के लिए 70 उड़नखटोला मार्गों (रोप वे) को एक साथ स्वीकृति दी और 7-8 सौ करोड़ रुपए सड़कों के निर्माण के लिए निर्धारित किए, क्या इस बारे में किसी ने सोचा था? और फिर मीडिया ने सर्वेक्षण करके मुझे देश का नंबर एक मुख्यमंत्री घोषित किया है तो वह इसलिए तो नहीं कि मैं काम नहीं करता हूं।विधायक निधि का धन जारी न करने की भी चर्चा है?विधायक निधि को लेकर भी कुछ भ्रम अवश्य फैला है। सरकार के पास विधायक निधि का पैसा तो है, और हमने सभी 70 विधायकों को पत्र भी लिखा है कि वे कार्यों की सूची देकर विधायक निधि ले लें। वैसे तो मेरी विधायक निधि का भी पूरा उपयोग नहीं हो पाया, क्योंकि मैं बाद में विधायक बना था। दरअसल प्रक्रिया यह है कि सरकार जो खर्चा दिखाती है वह काम पूरा हो जाने के बाद उसका हिसाब जमा होने के बाद ही उसे खर्च मानती है। इस लिहाज से पैसा आवंटित करने में कुछ कमी रही। पर ऐसा नहीं है कि सरकार विधायक निधि आवंटित नहीं कर रही है। यदि सरकार के पास विकास के लिए आया धन खर्च न हो तो मुझे सबसे अधिक कष्ट होगा।प्रदेश में औद्योगिक वातावरण को लेकर भी ऊ‚हापोह की स्थिति दिखती है। नए उद्योग लगने की गति भी बहुत शिथिल है।उद्योगों को लेकर भी गलतफहमी फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि मैं उद्योग विरोधी हूं। पर सचाई यह है कि हमारी सरकार के पहले 4 महीने में नए उद्योग लगाने के इतने आवेदन आ चुके थे जितने पिछले वर्ष पूरे साल में नहीं आए थे। पर पिछली सरकार के समय ही प्रदेश में उद्योग लगाने के जो मानक तय किए गए थे, उनका मैंने कड़ाई से अनुपालन किया। औद्योगिक इकाइयों ने समझौता किया था कि उनके यहां 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रखा जाएगा। पर हो यह रहा था कि भर्ती करने की बजाय वे “आउटसोर्सिंग” (बाहर से काम) करा रहे थे। तय हुआ था कि जमीन मिलने के 2 वर्ष के भीतर वे यहां अपनी औद्योगिक इकाई स्थापित कर लेंगे। पर अधिकांश ने ऐसा नहीं किया। वे कहीं बाहर निर्माण करके यहां एक “शेड” के भीतर सिर्फ “पैकेजिंग” का काम कर रहे थे। इन सब कारणों से मैंने कुछ कठोर कदम उठाए तो उन्हें तकलीफ हुई और उन्होंने “उद्योग विरोधी वातावरण” बनाने का प्रयास किया। इसके बाद मैंने बड़े औद्योगिक समूहों की बैठक की और उनकी कठिनाई पूछी, पर साथ ही साफ कर दिया कि नियमों की अनदेखी करने पर मैं अपनी आंखें बंद नहीं करूंगा। यदि किसी औद्योगिक इकाई के स्थापित होने का लाभ राज्य और उसकी जनता को नहीं मिलेगा तो राज्य उन्हें कोई सुविधा क्यों देगा?उत्तराखण्ड का विकास असंतुलित है। पहाड़ी क्षेत्रों की कठिनाइयों को देखते हुए क्या विशेष प्रयास किए जा रहे हैं?उत्तराखण्ड प्रदेश इसलिए बना था कि उस समय हमारे जो 8 जिले थे उनमें से साढ़े सात जिले उद्योग विहीन थे। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते उद्योगों के कारण हम पहाड़ की अनदेखी करेंगे तो राज्य बनाने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसलिए हमने पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिए एक उद्योग नीति बनाई है। वहां औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने वालों को हम आधारभूत संरचना और विशेष सुविधा देंगे। इससे वहां का आर्थिक विकास होगा और वहां से रोजगार की तलाश में होने वाला पलायन भी रुकेगा। इसी के साथ नई ऊ‚र्जा नीति के अन्तर्गत कम से कम 5 लोगों के समूहों तथा पंचायतों को कहा गया है कि वे 5 मेगावाट तक की इकाइयां स्थापित करें, सरकार उनको सहयोग देगी। हमने स्थानीय लोगों से भी इकाइयों को विकसित करने का आह्वान किया है ताकि इस प्रदेश को प्रकृति ने जो संसाधन दिए हैं उसका जनहित में सदुपयोग हो।क्या इस सबसे इस क्षेत्र की “देव संस्कृति” और प्रकृति पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा? इसे संरक्षित रखने के क्या उपाय हो रहे हैं?मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि उत्तराखण्ड प्रदेश की प्रगति, यहां का विकास, शासन और प्रशासन इस देवभूमि की संस्कृति के अनुरूप चलना चाहिए। इस दृष्टि से जो कुछ भी करणीय है, हम वही करेंगे। देवभूमि की संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए ही हमने प्रदेश में गोवंश के वध पर प्रतिबंध लगाया है। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए भी प्रयास चल रहे हैं। देवभूमि की संस्कृति के अनुसार ही हम अपना शासन-प्रशासन चलाएंगे। देवभूमि का चरित्र, संस्कार और संस्कृति हमारे शासन-प्रशासन में स्पष्ट झलकेगी।31
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