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माधवराव परलकरसेवा का अक्षय वट-रमेश पतंगेसम्पादक, विवेक साप्ताहिक, मुम्बईडा.मुम्बई में परेल स्थित नाना परलकर रुग्ण सेवा सदन के प्रणेता रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक डा. माधवराव परलकर का गत 22 फरवरी, 2008 को बाम्बे हास्पीटल में दु:खद निधन हो गया। उनकी स्मृति में विवेक साप्ताहिक, मुम्बई के सम्पादक श्री रमेश पतंगे की भावाञ्जलि यहां प्रस्तुत है। सं.माधवराव परलकर नहीं रहे। सहसा विश्वास नहीं होता। यूं तो संघकार्य व्यक्तिसापेक्ष नहीं होता है, व्यक्ति चला जाता है मगर कार्य तो चलता रहता है। फिर भी अन्य कार्यों की अपेक्षा संघकार्य की यह विशेषता है कि कार्य की दौरान एक ऐसा मोड़ आता है कि जहां पथिक स्वयं राह बन जाता है। डा. माधवराव परलकर ऐसे ही श्रेष्ठ कार्यकर्ता थे, जो अनेक श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्रोत बनें।परलकर जी अब नहीं रहे, यह विश्वास न होने का एक अन्य कारण भी है। परलकर अर्थात् उत्साह, परलकर अर्थात् चेतना, परलकर अर्थात् परिश्रम, परलकर अर्थात् अविनाशी आनंद, तो फिर इसका न होना कैसे संभव है?श्वेत धोती, कुर्ता और मुख पर मुस्कान। चुंबकीय आकर्षण। उनके व्यापक सम्पर्क और विशाल जनसंग्रह का यही रहस्य था।माधवराव एक ऐसे कार्यकर्ता थे जो अपने प्रचारक जीवन की स्वर्ण जयंती मना चुके थे। प्रचारक जीवन तो व्रत होता है। अविचल रहकर अपना व्रत निभाते रहना, यह आज की दुनिया में तो स्वप्नवत् लगता है। लेकिन सपनों को वास्तविकता बनाने वाले देवदुर्लभ कार्यकर्ता जहां मिलते हैं, वह संघ ही है!माधवराव अपने विद्यालयीन जीवन से ही संघ से जुड़े थे। उन्होंने स्कूली शिक्षा के बाद में वैद्यक शाखा में आयुर्वेद प्रवीण की उपाधि प्राप्त की थी। उसके बाद ही वे 1947 में संघ के प्रचारक बने। उनका कार्यक्षेत्र था मुम्बई में बांद्रा से विरार तक। उसके बाद चेंबूर भाग का दायित्व भी उनको सौंपा गया था।उस समय आज जैसी सुविधाएं कहां थीं। प्रयास, प्रवास और परिश्रम के बलबूते ही माधवराव जैसे कार्यकर्ताओं ने संघकार्य का विस्तार किया। 1961 में माधवराज जी को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रारंभ में मुम्बई का और बाद में महाराष्ट्र प्रदेश का दायित्व सौंपा गया था। 1962-63 में वे परिषद के अखिल भारतीय महामंत्री रहे। बाद में वापस संघ कार्य में लौटे।उन्होंने संघ की योजना से रुग्ण-सेवा का व्रत लिया और स्व. नाना पालकर स्मृति समिति का कार्यभार संभाला। स्व. नाना पालकर संघ के प्रचारक थे, जो महाराष्ट्र के सतारा जिले में कार्यरत थे। रुग्णसेवा ईश्वरसेवा है, ऐसा वे मानते थे। सतारा में उन्होंने त्वचा रोग के निमूर्लन की मुहिम सफलतापूर्वक चलाई थी। 1967 में उनको पीलिया हुआ और वे हमसे विदा हो गए। उसी वर्ष उनके नाम से स्व. नाना पालकर स्मृति समिति की नींव रखी गई थी। मुम्बई में इलाज के लिए आने वाले रोगियों के निवास की व्यवस्था करना, उचित अस्पताल में उनकी जांच, निदान, उपचार, दवा आदि की व्यवस्था करना, यह समिति के कार्य का स्वरूप था। शुरू में माधवराव जी के साथ नारायणराव भिड़े नामक केवल एक ही कार्यकर्ता थे। मुम्बई में उपचार के लिए आने वाले रोगियों की संख्या बढ़ने लगी थी। उसकी तुलना में जगह बहुत छोटी थी, जहां चार-पांच रोगी ही रह सकते थे।इस समस्या के निराकरण के लिए सोचा गया कि मुम्बई उपचार हेतु आने वाले रोगी तथा उनके रिश्तेदारों के निवास के लिए एक अलग भवन बनाया जाए। माधवराव ने निश्चय कर लिया। नारायण राव, डा. अजित फड़के तथा अन्य कार्यकर्ता भी उनके साथ थे। रुग्ण सेवा के कार्य के महत्त्व और इन कार्यकर्ताओं के प्रामाणिक व्यवहार को मुम्बई महानगर पालिका के अधिकारी अनदेखा नहीं कर पाए। परेल में एक भूखण्ड भवन बनाने के लिए उपलब्ध कराया गया। माधवरावजी की साधना का परिणाम सामने आया और सात मंजिला एक अति सुंदर रुग्ण सेवा सदन तैयार हो गया। तत्कालीन सरसंघचालक पूज्य रज्जू भैया, पू. स्वामी सत्यमित्रानंद जी और स्वाध्याय परिवार के पांडुरंग शास्त्री आठवले जी सहित अनेक संतों के शुभाशीष से यह प्रयास सफल हुआ।माधवरावजी ने सदा संघ-शरण वृत्ति से कार्य किया। मार्ग में आने वाली बाधाओं को शांति, संयम और धैर्यपूर्वक पार किया। माधव की प्रेरणा भी एक अन्य माधव ही थे। पूज्यनीय श्रीगुरुजी। केवल उनका नाम ही नहीं बल्कि प्रेरक साथ भी उन्होंने पाया था। गुरुजी का तो माधवराव पर पुत्रवत् स्नेह था।माधवराव वैद्य थे, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपना व्यवसाय नहीं बनाया। जो भी वैद्यकीय मार्गदर्शन या उपचार के लिए उनसे मिलता था उसका नि:शुल्क उपचार करते थे। वे योग के भी जानकार थे। आपातकाल में उनको नासिक जेल में बंदी बनाकर रखा गया तो उन्होंने वहां भी योग का अभ्यास वर्ग चलाया था। यद्यपि यह सेवा का अक्षय वट 81 वर्ष की आयु में हमें छोड़कर चला गया है, परन्तु माधवराव जी के कार्य हमें सदैव प्रेरणा देते रहेंगे। उनकी पुण्य स्मृति को नमन।17मेरठ शाखा के प्रथम स्वयंसेवक ओमप्रकाश गुप्त का निधनगत 24 फरवरी को नई दिल्ली के नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट में श्री ओमप्रकाश गुप्त ने अंतिम सांस ली। वे 89 वर्ष के थे। 20 नवम्बर 1919 को लावड़ (जिला मेरठ, उ.प्र.) के एक समर्थ व्यवसायी के घर जन्मे स्व. ओम प्रकाश अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे। विज्ञान विषय में स्नातक करने के पश्चात उन्होंने रुड़की महाविद्यालय से “ओवरसियर” की उपाधि प्राप्त की। उत्तर प्रदेश के सार्वजनिक निर्माण विभाग में लम्बे समय तक सेवारत रहे। स्व. गुप्त अधिशासी अभियन्ता के पद से सेवानिवृत्ति प्राप्त कर आगरा में रहने लगे। वे उन सौभाग्यशाली स्वयंसेवकों में से एक थे जो मेरठ महानगर की प्रथम शाखा के प्रथम दिन उपस्थित थे। स्व. गुप्त के बहनोई एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक ज्योति स्वरूप जी को स्मरण है कि 1939 में अक्तूबर माह के अंतिम सप्ताह में मेरठ के राजवंशी छात्रावास में जब संघ की पहली शाखा लगी थी हो ओमप्रकाश जी उसमें शामिल हुए थे। उन्हें गटनायक का दायित्व भी सौंपा गया था।18
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