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मैं हिन्दू कालेज (रोहतक, हरियाणा) में कम्प्यूटर उपदेशक के पद पर कार्यरत थी तब मेरा विवाह हुआ। सन् 2000 में पुत्री “प्रज्ञा” ने नारीत्व की पूर्णता का अहसास करवाया। मातृत्व की जिम्मेदारियों को समझते हुए मैंने अध्यापन कार्य छोड़ दिया। इसी बीच हम दिल्ली आ गए।जीवन में प्रति पल आगे बढ़ने की प्रेरणा मुझे अपने पति श्री राजेश सचदेव से मिलती है। वे मुझे सदैव कुछ नया करने को प्रेरित करते हैं। उन्होंने एक दिन मुझे उपहार स्वरुप एक लेखनी दी और कहा कि इसकी ताकत को केवल इसे उपयोग में लाने वाला ही समझ सकता है। और सचमुच उस कलम की ताकत ने मुझे एक अलग पहचान दी है। उस लेखनी से मैं पहले विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में पत्र लिखती थी। फिर मैंने आकाशवाणी (रेडियो) के लिए अनेकानेक धारावाहिक भी लिखे।एक अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण शिक्षा जो मैंने अपने पति से पाई वह है सेवाभाव। प्रत्येक सजीव प्राणी के लिए स्नेह एवं सौहार्द की भावना से ओत-प्रोत मेरे पति ने मुझे राष्ट्र सेविका समिति से जोड़ा। कालांतर में मैं सेवा भारती से जुड़ी। अपने पति की ही प्रेरणा से मैं इन दिनों सेवा कार्यों से जुड़ी हूं। साथ ही एक माता की भूमिका बखूबी निभा रही हूं।आज हमारी पुत्री प्रज्ञा एवं पुत्र सोहम् ही हमारी सबसे बड़ी धरोहर हैं। जीवन की सबसे बड़ी आकांक्षा है कि ये दोनों अच्छी पढ़ाई-लिखाई कर अपने कुल और देश को गौरवान्वित करें। परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि हमारी गृहस्थी की बगिया इसी तरह फूली-फली रहे।-संगीता सचदेवबी-2/147, निम्न तल, पश्चिम विहार, नई दिल्ली-6337
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