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संत स्वामी अखण्डानंद सरस्वती जी वृन्दावन स्थित आश्रम में रहा करते थे। उनके श्रीमुख से श्रीमदभागवतकथा श्रवण करने के लिए देश की बड़ी-बड़ी विभूतियां उत्सुक रहती थीं। एक बार संत प्रभुदत्त ब्राह्मचारी जी महाराज के यहां स्वामी जी के मुख से भागवत के प्रसंग सुनने के बाद महामना पं. मदनमोहन मालवीय जी ने उन्हें काशी आमंत्रित कर हिन्दू विश्वविद्यालय में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कर स्वयं पूरी कथा का श्रवण किया था।स्वामी जी के वृन्दावन निवास के दौरान एक रविदासी (चर्मकार जाति में जन्मा) भक्त प्राय: उनके पास पहुंच जाता। वह उनसे प्रेम करता था। वह भक्त अपने पास संत रविदास के भजनों की छोटी सी पुस्तक रखा करता था। उनके आश्रम के कुछ संत उस रविदासी भक्त को दूर रहने को कहते किन्तु वह स्वामी जी के प्रति इतनी श्रद्धा रखता था कि प्राय: उनके पास तक पहुंच जाता था।स्वामी जी उसे अपने भोजन में से प्रसाद देते। वे उस भक्त की निश्छलता तथा भगवान के प्रति अगाध श्रद्धा भावना के प्रति आकर्षित थे। अत: उन्हें वह भक्त बहुत प्रिय लगता था।एक दिन वह चुपचाप आया तथा स्वामी जी के पास बैठ गया। स्वामी जी ने कहा- “मुझे रविदास जी के कुछ पद सुनाओ।” वह तन्मय होकर पद सुनाने लगा। इसी बीच स्वामी जी के किसी सेवक ने उसे बाहर चले जाने को कहा। यह देखते ही स्वामी जी बोले- “अरे, क्या तुमने अभी तक इस निश्छल ह्मदय भक्त में गोपों के सखा भगवान कृष्ण के दर्शन नहीं किए?” इतना सुनते ही रविदासी भक्त की आंखों से आंसू झरने लगे, वहीं सेवक स्वामी जी के अलौकिक प्रेम को देखकर हतप्रभ रह गया। पूज्य स्वामी अखंडानंद सरस्वती जी महाराज का वृन्दावन स्थित आनन्द आश्रम आज अनेक जन सेवा के कार्यों में रत है। प्रतिनिधि25
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