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किसान अन्नदाता है, उसके श्रम-सीकर धरती पर गिरते हैं तो फसलें लहलहाती हैं। किसान का सेवा-मन सदा साधनारत रहता है। ऐसे ही एक किसान हैं के.एन. गोपालकृष्ण। भगवान शंकर से उन्हें ऐसी प्रेरणा मिली कि उनकी खुद की जिन्दगी तो बदली ही, उन्होंने सैकड़ों की जिन्दगी के रास्ते रोशन कर दिए।केरल के कासरगोड जिले में नीरचल को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले गोपालकृष्ण एक मध्यवर्गीय किसान हैं। क्षेत्र के लोग उन्हें साईं राम भट्ट के नाम से जानते हैं। पिछले पांच वर्ष में गोपालकृष्ण ने अपनी गाढ़ी कमाई का सदुपयोग करके बलियादुका, पुतिगे और पैवालिक पंचायतों में 150 मकानों का निर्माण कराया। प्रत्येक मकान के निर्माण पर करीब 40,000 रुपए की लागत आई। गोपलकृष्ण ने इसके लिए सारी पूंजी खेती-किसानी और परम्परागत आयुर्वेदिक उपचार पद्धति के माध्यम से एकत्रित की।मानव सेवा की राह पर चले गोपालकृष्ण की कहानी बड़ी निराली है। एक बार गोपालकृष्ण भगवान शिव की नगरी काशी की यात्रा पर जाने की योजना बना रहे थे। काशी प्रवास की योजना मूर्तरूप ले ही रही थी कि तभी उनके पास अनुसूचित जाति का एक श्रमिक कुक्का रोता बिलखता आया। कुक्का ने बताया कि बीती रात भीषण वर्षा और आंधी-तूफान में उसका छोटा-सा तिनके की तरह बिखर गया।कुक्का की दशा देख गोपालकृष्ण का पालक-ह्मदय मानो फट गया। उन्होंने फौरन अपने पुत्र को कुक्का को कुछ पैसे देने के लिए कहा। लेकिन उन्हें लगा कि यह अधूरी सेवा होगी। उन्होंने निश्चय किया कि वे कुक्का के लिए एक नए घर का निर्माण करेंगे। इतना ही नहीं, कुक्का का घर बनाने में उन्होंने उस राशि का इस्तेमाल किया जो उन्होंने बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी जाने के लिए जुटा कर थी। भोलेनाथ से उन्हें यही स्वप्न-संदेश मिला, स्वामी विवेकानंद और सत्यसाईं बाबा के परम भक्त गोपालकृष्ण काशी यात्रा छोड़ अपनी सेवा-यात्रा में जुट गए। फिर क्या था, कितने ही “कुक्का” बंधुओं के जीवन में उन्होंने आशा की किरणें बिखेर दीं।तब से लेकर आज तक गोपालकृष्ण का सफर अनवरत रूप से जारी है। गरीब, बेसहारा, हरिजन और अनुसूचित जाति के अपने भाइयों के लिए वे अब तक 150 घरों का निर्माण पूर्ण कर चुके हैं।बेला गांव के रहने वाले भाई अब्दुल रहमान गोपालकृष्ण की सफल सेवा-यात्रा के 25वें गवाह बने। रहमान की पत्नी और आठ बच्चों की मां अपनी करूण कथा बताते हुए कहती हैं कि दो वर्ष पहले तेज बारिश और तूफान में उनकी इकलौती झोपड़ी नष्ट हो गई। हालात इतने बुरे थे कि रहने के लिए पेड़ की छाया के सिवा कोई दूसरा आसरा नहीं था। उनके पास कोई जमा पूंजी भी नहीं थी। ऐसे में भला कोई क्यों उनकी मदद करता। लेकिन गोपालकृष्ण स्वयं आगे आए और रहमान के लिए अपनी गाढ़ी कमाई से घर तैयार करवाया। गोपालकृष्ण के प्रयासों से रहमान और उनका परिवार दोबारा अपने पैरों पर खड़ा हो गया।रहमान की तरह लगभग हर गरीब असहाय की यही कहानी है जिन्हें गोपालकृष्ण का सहारा मिला। आज गोपालकृष्ण को लोग श्रद्धा से स्वामीजी पुकारते हैं। किन्तु गोपालकृष्ण को इसमें सन्तोष नहीं है। वे सारे कार्य का श्रेय शिवभक्ति को, शिव-प्रेरणा को देते हैं। उसकी कृपा के बिना ये शिव-कार्य क्या संभव हो पाते? वे हर सप्ताह नि:शुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन करते हैं। गोपालकृष्ण मानते हैं कि मानव सेवा ही शिव-सेवा है। हर हिन्दू का यह कर्तव्य है कि वह समाज के जरूरतमंदों की हर संभव मदद करे। केरल प्रतिनिधि32
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