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पिछले कई वर्षों से पत्रकारिता और लेखन के प्रति समर्पित वरिष्ठ पत्रकार मनोहर पुरी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। भारतीय लोकजीवन के सभी महत्वपूर्ण पक्षों सहित यहां के राजनीतिक, शैक्षिक, सामाजिक, प्रशासनिक और आर्थिक परिवेश का उन्होंने न सिर्फ गहराई से अध्ययन किया बल्कि उनका विश्लेषण सर्वथा नए अर्थों में किया है। यहां रहने वाले आम आदमी के जीवन में समाई विसंगतियों और विद्रूपताओं पर वे अपनी धारदार लेखनी से ऐसा प्रहार करते हैं कि पाठक एक क्षण के लिए चिहंुक उठता है और फिर यह सोचने पर बाध्य हो जाता है कि क्या स्थितियां इतनी बदतर हो गई हैं कि सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ देना चाहिए?हाल ही में वंदना बुक एजेंसी से प्रकाशित नवीनतम उपन्यास “जिन्दगी और जुगाड़” में एक बार फिर मनोहर पुरी उसी चिरपरिचित व्यंग्यात्मक लहजे के साथ पाठकों से रू-ब-रू होते हैं, जिनके लिए वे जाने जाते हैं। इस उपन्यास में लेखक ने आज के दौर में “जुगाड़” (यानी नैतिक या अनैतिक किसी भी रीति से काम को पूरा करने की युक्ति) के महात्मय को स्पष्ट किया है। बात-बात में चुटकी लेते हुए वर्तमान समय की मूल्यहीन होती जा रही जीवनपद्धति और विशेष रूप से राजनीतिक विडंबनाओं पर व्यंग्य कसने में लेखक ने कोई परहेज नहीं किया है। एक स्थल पर लेखक कहते हैं- “मैं तो जानता भी हूं और मानता भी हूं कि पूरा देश ही जुगाड़ के दम पर चल रहा है। आज जुगाड़ न हो तो पूरी कि पूरी सरकार ही आ जाए सड़क पर।” इसी तर्ज पर पूरा उपन्यास ढेरों व्यंग्यात्मक टिप्पणियों और चुटीले वक्तव्यों से भरा पड़ा है। दरअसल इनके बहाने पाठकों को हंसाना मात्र ही लेखक का ध्येय नहीं है, बल्कि उसे गंभीरता से नई दिशा में विचार करने के लिए प्रेरित करना भी है। अपनी बात को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए रचनाकार ने ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक संदर्भों का भी सहज शैली में प्रयोग किया है। लेखक ने शिक्षा, चिकित्सा, शासन-प्रशासन समेत सामान्य जीवन के हर पक्ष में पैर पसारते जा रहे भ्रष्टाचार को भी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।उपन्यास को पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि जुगाड़ एक शब्द ही नहीं बल्कि ऐसा शब्दबीज है जिसके भीतर से भ्रष्टाचार निकलकर अपने को अनेक रूपों में पुष्पित और पल्लवित करता है। आज की इस कड़वी सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अथक परिश्रम, धैर्य और ईमानदारी का दामन पकड़कर अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने में असफल होने पर हमें प्राय: सफलता का शार्टकट यानी जुगाड़ ही अधिक लुभाता है, जो तत्काल तो बहुत प्रभावी और आकर्षक लगता है लेकिन जिसके दूरगामी परिणाम न सिर्फ हमें, बल्कि संपूर्ण समाज और देश को भ्रष्टाचार की अंधेरी गलियों में भटकने पर विवश कर देता है। द(दोनों पुस्तकों के समीक्षक: विज्ञान भूषण)पुस्तक का नाम : जिंदगी और जुगाड़ लेखक : मनोहर पुरी प्रकाशक : वंदना बुक एजेंसी, भूतल, 109, ब्लाक बी प्रीत विहार, दिल्ली-92 पृष्ठ : 208 – मूल्य : 250 रुपए20
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