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रामसेतु पर कोई समझौता नहींश्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का एक ही मार्ग है-संसद इसके लिए कानून बनाए-जितेन्द्र तिवारीतर्क, तथ्य और कानून के द्वारा श्री रामसेतु की रक्षा के अभियान में अमूल्य योगदान देने वाले डा. सुब्राहृण्यम स्वामी ने एक ऐतिहासिक पुस्तक लिखी है। वैसे तो रामसेतु की रक्षा के लिए संघर्ष प्रारंभ होने के बाद अनेक पुस्तकों और संकलनों का प्रकाशन हुआ है, पर “रामसेतु-ए सिम्बल आफ यूनिटी” नामक पुस्तक में डा. स्वामी ने सुरक्षा, पर्यावरण, आर्थिक पक्ष, अन्तरराष्ट्रीय षडंत्र और आस्था -लोकार्पण समारोह में उपस्थित विद्वत् समाज को सम्बोधित करते हुए रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि श्रीराम इस देश की पहचान हैं, मानव जीवन की मर्यादा हैं। भारत के इतिहास, जीवन और भविष्य के साथ राम का चरित्र एकाकार है। रामायण अथवा रामचरित मानस को पढ़कर ही कोई श्रीराम के जीवन को नहीं समझता वरन् सदियों से इस देश का प्रत्येक वर्ग, चाहे किसी भी जाति का हो, शिक्षित हो या अशिक्षित, परम्परा के अनुसार श्रीराम के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करता है। इस सत्य को जो नहीं समझ पा रहे हैं तो दोष उनकी बुद्धि का है। श्रीराम का जीवन एक ऐसा आदर्श उदाहरण है जिसमें एक ही जीवन में देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण को चुकाने से लेकर, व्यक्ति तथा समाज के बारे में समग्र चिंतन व्यवहार रूप में साक्षात प्रकट दिखता है। इस दृष्टि से जो श्रीराम की भगवान के रूप में पूजा नहीं करते, उनके लिए भी श्रीराम का जीवन एक आदर्श है।श्री भागवत ने कहा कि स्वार्थ और अहंकार के कारण रावण ने श्रीराम को नकारा और अंतत: नष्ट हो गया। उसी प्रकार वर्तमान केन्द्र सरकार ने श्रीराम के अस्तित्व अर्थात् भारतीय संस्कृति को ही नकारने का प्रयत्न किया। उसने ऐसा एक शपथपत्र न्यायालय में दाखिल किया और भारी जन दबाव के कारण उसे वापस लिया। श्री भागवत ने कहा कि आखिर देश क्या है, क्या सिर्फ कुछ भू-भाग, मिट्टी-कंकर, अथवा उस भूखण्ड पर रहने वाला समाज, उसका मन, उसकी संस्कृति? इस आधार पर इस देश की सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम। इसलिए जो रामसेतु को तोड़ने का षडंत्र रच रहे हैं वे इस देश को तोड़ रहे हैं। और हम सब भी समझ लें कि हम रामसेतु को नहीं बचा रहे हैं बल्कि स्वयं को बचा रहे हैं, अपनी संस्कृति को बचा रहे हैं। राम और रामायण के बिना यह देश लूला-लंगड़ा हो जाएगा, पर कुछ राजनीतिक दल व उसके नेता वोट बैंक की राजनीति तथा व्यक्तिगत अहंकार के कारण रामसेतु को ध्वस्त करने के लिए कुतर्क दे रहे हैं। विडम्बना यह है किसमारोह को सम्बोधित करते हुए विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने देश से आह्वान किया कि धर्म की रक्षा और उसकी पुनसर््थापना हेतु संघर्ष के लिए तैयार रहें। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि इस देश के नेता वर्ग कायर हो, पर यहां का समाज कायर नहीं है। इस देश का धार्मिक समाज जिस दिन भी एकजुट होकर खड़ा होगा, ये सरकार झुक जाएगी। श्रीमद्भागवत् गीता पढ़ने वाला समाज जानता है कि आत्मा अजर-अमर है, अविनाशी है, इसलिए वह अपने सांस्कृतिक प्रतीकों की रक्षा के लिए बलिदान देने से पीछे नहीं हटेगा। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के समय देशवासियों ने यह सिद्ध भी कर दिया था। एक बार फिर रामसेतु की रक्षा के लिए देश में उसी प्रकार का वातावरण निर्मित हो रहा है। गत वर्ष हुए चक्का जाम और 30 दिसम्बर को दिल्ली में जनता का स्वत:स्फूर्त सहभाग देखने को मिला।श्री अशोक सिंहल ने कहा कि राम ही भारत हैं, राम ही राष्ट्र हैं, पर सरकार का दु:साहस देखिए कि उसने न्यायालय में श्रीराम के अस्तित्व को नकारने वाला शपथपत्र दे दिया। इसलिए हमने निर्णय लिया है कि हम इस संघर्ष को जनता के बीच ले जाएंगे और आगामी चुनाव के समय इसे और अधिक गति देंगे। क्योंकि वर्तमान व्यवस्था में राजनीतिक दल केवल वोट की भाषा समझते हैं। हम किसी भी मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं चाहते, पर यदि सरकारें हर मुद्दे को राजनीतिक लाभ -हानि की दृष्टि से देखती हैं तो हमें भी उनको उन्हीं की भाषा में जवाब देना होगा। उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण के लिए न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा अनंतकाल तक करते रहें, यह संभव नहीं है। 60 वर्ष से अधिक हो गए, न्यायालय निर्णय नहीं दे सका है। अब श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का एक ही मार्ग है कि संसद इसके लिए कानून बनाए। और यह कानून तभी बनेगा जब संसद में इस विचार के अधिक लोग होंगे और जनता का भी उन पर भारी दबाव होगा। सेतु समुद्रम परियेाजना को आर्थिक, सुरक्षा, पर्यावरण, पारिस्थितिकी आदि अनेक कारणों से हानिकारक बताते हुए श्री सिंहल ने कहा कि जब तक रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित नहीं किया जाता, हमारा आंदोलन चलता रहेगा।अपने आशीर्वचन में हिन्दू धर्म आचार्य सभा के संस्थापक तथा आर्ष विद्या गुरुकुलम् (कोयम्बटूर) के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा कि आस्था के तर्क नहीं होते। इस बात की आवश्यकता भी नहीं कि हम अपनी आस्था के तर्क देते रहें। हम भारत को माता मानते हैं, गंगा माता कहते हैं, शालिग्राम को पूजते हैं, क्योंकि यह हमारी भावना है। और भावना पैदा नहीं की जाती, यह परम्परा से होती है। आखिर हम रुपए पर पैर रखकर क्यों नहीं खड़े होते? किसी किताब पर पैर क्यों नहीं रखते? क्योंकि हम भावना से उसमें लक्ष्मी और सरस्वती का वास पाते हैं। इसी प्रकार रामसेतु के बारे में हमें सफाई देने की आवश्यकता पड़ी। हालांकि रामसेतु की ऐतिहासिकता के अनेक प्रमाण हैं, पर सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि हिन्दू समाज सदियों से रामसेतु का स्मरण करता आया है उसे अपनी पहचान और संस्कृति का प्रतीक मानता आया है।स्वामी दयानंद जी ने कहा कि यह बहस का विषय ही नहीं होना चाहिए कि रामसेतु मानव निर्मित है या कोई प्राकृतिक संरचना। रामसेतु के सम्बंध में हमारे पुराणों में स्पष्ट वर्णन है। फिर भी निहित स्वार्थों के कारण इसे विवाद का विषय बनाया गया है। हम इस विषय में किसी को कोई सफाई नहीं देंगे। रामसेतु हमारी आस्था, संस्कृति, स्वाभिमान, सम्मान और पहचान का प्रतीक है, हमें हर कीमत पर इसकी रक्षा करनी चाहिए।11
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