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आज देश के अनेक मदरसों में मुस्लिम बच्चों को कट्टरवादी तालीम दी जाती है, उन्हें वहां आतंकवाद का मोहरा बनना सिखाया जाता है। मगर जोधपुर संभाग (राजस्थान) की औद्योगिक नगरी बालोतरा में श्रीमती मांगीदेवी पुखराज गोलेच्छा राजकीय उच्च प्राथमिक संस्कृत विद्यालय ऐसा भी है जहां हिन्दू और मुसलमान सभी बच्चों को देशभक्ति और संस्कृत की शिक्षा दी जाती है।1989 से जोधपुर संभाग में उच्च प्राथमिक व माध्यमिक स्तर के लगभग 80 संस्कृत विद्यालयों में हिन्दू व मुसलमान बालक-बालिकाएं संस्कृत का अध्ययन कर रहे हैं। ये विद्यालय राजस्थान सरकार के अधीन हैं।श्रीमती मांगीदेवी पुखराज गोलेच्छा राजकीय उच्च प्राथमिक संस्कृत विद्यालय में कुल 129 बालक-बालिकाएं अध्ययनरत हैं, जिसमें 15 बालक व 30 बालिकाएं मुस्लिम परिवारों की हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक जगदीश प्रसाद कालावत बताते हैं कि इस विद्यालय में सभी बालक-बालिकाओं को, चाहे वे हिन्दू परिवारों से हों या मुसलमान परिवारों से, गीता, रामायण व महाभारत के श्लेक, गायत्री मंत्र, स्वस्ति वाचन, वन्दे मातरम् एवं नीति शिक्षा के सभी श्लोक कंठस्थ कराये जाते हैं। पाठ पुस्तकों के अतिरिक्त संस्कृत की भी शिक्षा दी जाती है। विद्यालय को इस बात पर बहुत गर्व है कि इस वर्ष इस विद्यालय की आठवीं कक्षा की बालिका रुखसार (पुत्री, मोहम्मदरुखसार के परिवार में उसके अब्बू-अम्मी के अलावा एक बड़ी बहन है जो इसी स्कूल में छठी तक पढ़ी थी। मगर रुखसार ने अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए आठवीं की बोर्ड वरीयता सूची में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले मोहम्मदरुखसार जोधपुर संभाग के रतकुड़िया में संस्कृत अन्ताक्षरी में भी द्वितीय स्थान प्राप्त कर चुकी है। खेल में भी उसने अपनी पहचान बनाई है। वह बालीबाल खेल में राज्य स्तर पर अपना प्रदर्शन कर चुकी है।विद्यालय के पास ही रहने वाले गुलाम रसूल टाक ने बताया कि वह अपने मुसलमान भाइयों से बात करके उनके बच्चों का इस विद्यालय में दाखिला कराते हैं और उन्हें संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके पांच बेटे-बेटियां भी इसी विद्यालय में पढ़ रहे हैं। वह कहते हैं, “मुझे इस बात का अफसोस है कि यह विद्यालय आठवीं कक्षा तक ही है, जबकि यहां तालीम पूरी करने के बाद लगभग 50 किलोमीटर तक कोई भी माध्यमिक स्तर का संस्कृत विद्यालय नहीं है। इस विद्यालय से पढ़ने वाले बालक-बालिकाएं संस्कृत विद्यालय में ही पढ़ना चाहते हैं।” अंत में एक और दिलचस्प बात। यहां पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चे गीता, रामायण तो पढ़ते ही हैं, आपस में भी संस्कृत में ही बातचीत करते हैं। -बाड़मेर से आनंद गुप्ता3434
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