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गजलकार ब्राहृेश्वरनाथ तिवारी का यह पहला भोजपुरी गजल संग्रह है। इस संग्रह में कुल 55 गजल संग्रहीत हैं। मगर गजल में कहीं विराम चिन्ह का प्रयोग नहीं है। ऐसा गजलकार का स्व-चिंतन का परिणाम है, कोई भूल नहीं। इस संग्रह में विषय वस्तु की विविधता है। सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्र को उद्भासित करती ये गजलें अपने विस्तार में ऊ‚ंची उड़ान भरती हैं।विरह-वेदना की मार्मिकता को उजागर करती गजल की पंक्तियां देखें-हम जनम-जनम के पुजारिन मीरा बन गोहराइब न अइहऽगजल संख्या तेरह में विरहिणी की वेदना को राहत प्रदान करने वाली गजल मर्मस्पर्शी रूप में रूपायित है-उचरत कागा के मुंडेरा प सुनलीं पियवा के आगम जनाता इ बुझलींअलसुबह कागा का मुंडेरा पर बैठना और उसके बोल किसी प्रिय के आगमन के प्रतीक होते हैं। विरहिणी इसको माध्यम बनाकर अपनी वेदना प्रकट करती है। प्रेम और विरह की और भी गजलें पठनीय हैं। नयी नवेली दुल्हनियों द्वारा ससुराल में किये जा रहे दुव्र्यवहार का चित्रण भी गजल में चित्रित है। छोटे परिवार की अवधारणा की अभिव्यक्ति है-अवते बहुरिया के मन-चित्त ठंगवा दोसर भइले ना हम ना रहब पटीदार संगवा कुछ दोसर भइले नाउर्दू और हिन्दी गजल के आस्वादन से इतर भोजपुरी गजल का आस्वादन शुभ लक्षण है। इससे भोजपुरी भाषा-साहित्य समृद्ध होगा। भूमंडलीकरण के दौर में लोक-भाषा को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। इससे राष्ट्रभाषा भी समृद्ध होती है।पुस्तक : संझा के पहरुआ लेखक : ब्राहृश्वरनाथ तिवारी प्रकाशक : सुरेहन प्रकाशन, गोरखपरासी, रोहतास (बिहार) 802214 पृष्ठ : 64 मूल्य : 101 रुपए29
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