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मैं एक केशधारी (सिख) परिवार की बेटी हूं तथा वर्तमान में नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यरत हूं। मैंने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था। परन्तु बड़ी बहन और माता जी के आग्रह के परिणामस्वरूप मैंने स्वयं को विवाह के लिए मुश्किल से तैयार किया। मैं बचपन से ही जिद्दी प्रवृत्ति तथा स्वभाव से गुस्से वाली थी। मेरे पति जब शादी से पहले मुझे देखने आए तो उन्होंने मेरे सामने तीन शर्तें रखी थीं। पहली शर्त थी कि सदैव “अतिथि देवो भवव् की भावना मन में रखना है। उल्लेखनीय है कि मेरे भावी पति श्री तिलक राज कटारिया 20 वर्ष तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके थे। उन्होंने कहा, “दिन या रात कभी भी घर पर कोई सज्जन आ जाए तो उनका स्वागत-सत्कार अच्छी तरह होव्। दूसरी शर्त यह कि कालांतर में यदि कभी देश व समाज की स्थिति ऐसी होती है कि मुझे देश और परिवार में से किसी एक को चुनना पड़ा तो मेरी वरीयता देश होगी। तीसरी शर्त यह कि विवाह बिना किसी दान दहेज का होगा। ऐसी अनोखी शर्तें सुन कर मेरे साथ-साथ मेरे परिवार के अन्य लोग भी परेशान हो गए। परन्तु कहते हैं न कि जोड़ियां तो परमात्मा पहले से ही बना कर भेजता है। हम मानव तो मात्र उसके हाथों की डोरियों पर नाचती कठपुतलियों की भांति शादी का खेल रचाते हैं।आज मैं स्वयं को अत्यन्त सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे श्री तिलकराज कटारिया के रूप में एक सच्चा और नेक दिल इनसान, समाज समर्पित व्यक्तित्व, निष्ठावान देशभक्त व धैर्यवान जीवन साथी मिला है। आज मैं आत्मचिन्तन एवं आत्मावलोकन करती हूं कि मेरा क्रोधी व जिद्दी स्वभाव जाने कहां गुम हो गया है। अपने पति की कार्यशैली देखकर मैं आत्मकेन्द्रित न होकर समाजकेन्द्रित हो गई हूं।आज परमेश्वर की कृपा एवं अपने शुभचिन्तकों के सहयोग से हम अपनी गृहस्थी की गाड़ी सफलतापूर्वक चलाने में सक्षम हैं। नौवी कक्षा में पढ़ रही हमारी एक प्यारी बेटी “मनस्वीव् है। आज घर के पूजा कक्ष में गुरुग्रंथ साहिब जी का प्रकाश एवं श्री रामजी की आरती नित्य प्रतिदिन हम मिलजुल कर करते हैं।-डा. सन्तोष कटारियाबी.डब्ल्यू.-106 सी, शालीमारबाग (दिल्ली)24
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