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अगर समाज को विश्वास हो जाए कि आप उसके सच्चे सेवक हैं; आप उद्धार करना चाहते हैं, आप निस्वार्थ हैं, तो वह आपके पीछे चलने को तैयार हो जाता है। लेकिन समाज में यह विश्वास सच्चे सेवाभाव के बिना कभी नहीं आता।-प्रेमचंद (सेवासदन, परिच्छेद 52 )ठिठुरन और बेबसीजिन दिनों अखबारों में रिलायंस पावर के आई.पी.ओ. की सीमा से 16 गुना अधिक बिकवाली और टाटा की नेनो कार की खबरें सुर्खियों में छाई थीं उन्हीं दिनों भीतर के पन्नों में गुमनाम सी ये खबरें भी थीं कि उत्तर भारत में कड़ाके की शीत लहर में फलां-फलां शहर में लोगों की ठिठुर कर मौत हो गई। ये हैं दो चित्र, एक-दूसरे से बिल्कुल बेखबर। एक ओर है पैसा, और अधिक पैसा बनाने तथा सुविधा और अधिक सुविधा व ऐशो आराम के सामान जुटाने की उन्मादी ललक तो दूसरी ओर है एक सड़क किनारे फटी धोती के नीचे अपने नन्हे बच्चों को चिंदियों से ढककर गर्माहट दिलाने को आकुल मां। या फिर सर्द हवाओं के बीच अधनंगे बच्चों द्वारा किसी लाल बत्ती पर नट के खेल दिखाकर चंद सिक्के पाने की आस।जनवरी का पहला और दूसरा हफ्ता पूरे उत्तर भारत को गजब की शीत लहर से कड़कड़ा गया था। ठिठुरन भरी हाड़ कंपा देने वाली बर्फीली हवा ने कितनों की जिंदगी छीन ली। 2 जनवरी को 12 लोग मरे तो 6 जनवरी को 15 की जान गई। आग- अलाव की तपिश भी जान नहीं बचा पाई। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के अनेक शहरों में पारा असाधारण रूप से नीचे गिरता रहा। श्रीनगर की डल झील जम गई तो जम्मू में 5 से 7 डिग्री के बीच सर्द मौसम था। दिल्ली में आश्चर्यजनक रूप से मौसम ने उतार-चढ़ाव दिखाए। खून जमा देने वाली सर्दी के तुरत बाद तेज धूप ने गर्मी का ताप दिखाया तो ग्लोबल वार्मिंग यानी पृथ्वी के बढ़ते तापमान पर बहस छिड़ने लगी- ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं, सागर का स्तर ऊंचा उठता जा रहा है आदि आदि।दिल्ली में अगर नीचे का तापमान 1.6 तक गिरा तो जालंधर में जीरो डिग्री के आस-पास पहुंच गया। अमृतसर में तापमान 0.3 डिग्री पहुंचा तो लुधियाना और पटियाला में 0.8 डिग्री पर। हरियाणा के नारनौल में 2 डिग्री, अम्बाला में 3.2 तो राजस्थान के अनेक शहरों में तापमान में आश्चर्यजनक गिरावट आई।रात में किसी सड़क किनारे अपने रिक्शे की गद्दी पर किसी तरह अपने तन को एक पतली फटी चादर में समेटे खुले आसमान के नीचे सोते रिक्शा वाले को न देखा हो, यह नहीं माना जा सकता। मन में सवाल उठता होगा कि सरकार या कोई और निकाय ऐसे लोगों के लिए रात बिताने के अस्थायी ठिकाने क्यों नहीं बनाता? अस्थायी बसेरे यानी रैन बसेरे हैं पर उनकी हालत कितनी बदतर है इस पर पाचजन्य ने विस्तार से रपट छापी थी। वहां 20 की जगह में पचासियों समाए रहते हैं।पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम ने सन् 2020 में भारत को एक सशक्त, सबल राष्ट्र के रूप में देखने का सपना संजोया है और उस स्थिति को प्राप्त करने के लिए पाथेय भी दिया है। भारत के विशाल मानव संसाधन को अगर इसकी संपदा के रूप में देखा जाए तथा हर हाथ को काम और काम के पूरे दाम हों तो फिर इस 30 प्रतिशत आबादी की ठिठुरन भरी रातें बेबसी में नहीं कटेंगी।5
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