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सम्पादकीय

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Dec 8, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Dec 2007 00:00:00

सत्य एक विशाल वृक्ष है। उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है त्यों-त्यों उसमें अनेक फल आते दिखाई देते हैं। उनका अन्त ही नहीं होता। ज्यों-ज्यों हम गहरे पैठते हैं, त्यों-त्यों उसमें से रत्न निकलते हैं, सेवा के अवसर हाथ आते रहते हैं।-महात्मा गांधी (आत्मकथा)सबसे पहले भारत-हितनागालैण्ड के ईसाई विद्रोही गुट नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैण्ड (इसाक-मुईवा) अर्थात् एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के साथ केन्द्र का संघर्षविराम 31 जुलाई को सम्पन्न होने के साथ ही 1 अगस्त से इसे फिर से अनिश्चितकाल तक के लिए बढ़ा दिया गया। इससे जहां नागालैण्ड में संघर्षविराम के भविष्य को लेकर ऊहा-पोह की स्थिति पर लगाम लगी वहीं हिंसक वारदातों के थमे रहने की संभावना से आम जनता ने राहत की सांस ली है। केन्द्र के वार्ताकार के. पद्मनाभैया और एन.एस.सी.एन.(आई.एम.) के महासचिव मुईवा ने दीमापुर में नागालैण्ड समस्या के समाधान पर बातचीत के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया। इसमें कहा गया कि शांति वार्ताओं और संघर्षविराम की मौजूदा स्थिति को देखते हुए संघर्षविराम की अवधि 1 अगस्त से अनिश्चितकालीन समय तक के लिए बढ़ाने का निश्चय किया गया है। नागा प्रतिनिधियों ने यह संतोष व्यक्त किया कि विवाद को जल्दी निपटाने संबंधी विस्तृत बातचीत हुई है। उधर पद्मनाभैया ने कहा कि बार-बार कुछ समय के लिए संघर्षविराम की अवधि बढ़ाते रहने के बजाय अनिश्चितकाल तक के लिए इसको विस्तार देना समझदारी की बात है। यह शांतिवार्ताओं का एक “अच्छा परिणाम” है। पद्मनाभैया और दो गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केन्द्रीय मंत्री ऑस्कर फर्नांडीस सरकार की ओर से शांति वार्ता में शामिल थे। जबकि नागा विद्रोही गुट की ओर से इसके अध्यक्ष इसाक स्वू और महासचिव मुईवा के अलावा उनके बीस विद्रोही साथी वार्ता में शामिल हुए थे। शांतिवार्ता से पूर्व हमेशा की तरह इसाक स्वू ने ईसाई प्रार्थना की और एक संक्षिप्त भाषण देकर वहां से चले गए, शेष चर्चा मुईवा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई।उल्लेखनीय है कि इसाक स्वू और मुईवा ने पिछले साल नई दिल्ली में जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी तब उन्होंने हर वार्ता से पूर्व ईसाई प्रार्थना की थी। नागा विद्रोहियों की मांग भी ग्रेटर नागालैण्ड यानी नागालिम की है जिसमें नागालैण्ड के अलावा मणिपुर का भी काफी बड़ा हिस्सा वे जोड़ना चाहते हैं। नागालिम का जो नक्शा उन्होंने बनाया है उसमें वे सारे क्षेत्र मिलाए गए हैं जहां, उनके दावे के अनुसार, नागा मूल के लोग रहते हैं। नागालिम को वे “ईसा की धरती” कहते हैं। जाहिर है वे पूर्वोत्तर भारत के एक हिस्से को “ईसाई देश” बनाना चाहते हैं। यह भारत को छिन्न-भिन्न करने का एक गहरा षड्यंत्र है। असम में उल्फा आतंकवादी नागा विद्रोहियों से हथियार और अन्य आतंकी मदद प्राप्त करते रहे हैं। भूटान और बंगलादेश में एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के अड्डे चल रहे हैं जहां उल्फाइयों को प्रशिक्षण दिए जाने के पुष्ट संकेत प्राप्त होते रहे हैं। विदेशी ईसाई मिशनरियों और पश्चिमी नीतिकारों से अपनी नजदीकियां उन्होंने कभी छुपाई नहीं हैं। ऐसी सोच और इस तरह की पृष्ठभूमि के लोगों से बातचीत में केन्द्र के वार्ताकारों को बहुत संभल कर आगे बढ़ना होगा। ऑस्कर फर्नांडीस और उनकी यू.पी.ए. सरकार, जो कट्टरवादी मुस्लिमों और ईसाइयों के प्रति एक खास, मुलायम दृष्टि रखती है, उससे इस सन्दर्भ में कितनी उम्मीद की जा सकती है? संघर्षविराम केवल कुछ समय के लिए विषय को आगे सरका भर देना ही है, समस्या का अन्तिम समाधान इसे नहीं कहा जा सकता। समाधान तो तब होगा जब मणिपुरवासियों की आशंकाओं और नागालैण्ड के लोगों की उम्मीदों को ध्यान में रखते हुए व्यापक राष्ट्रीय हितों के आधार पर उन्हें भारत की मुख्यधारा से समरस करने वाला मार्ग चुना जाएगा।6

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