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सेकुलर-जिहादकेवल आग्रही हिन्दुत्व का पथ ही समाधानतरुण विजयश्रीनगर में गुजरात के पर्यटक इस्लामी आतंकवादियों ने मारे, लेकिन सेकुलर राजनेता और मीडिया मदनी की रिहाई पर खुशी और संजय को जेल पर गम मनाती रही। अगर ऐसे किसी बम विस्फोट में पर्यटकों की हत्या गुजरात या किसी अन्य भाजपा शासित प्रदेश में हुई होती तो सब कुछ भुलाकर दिल्ली से वाशिंगटन तक सेकुलर सिर्फ हिन्दुत्व पर प्रहार करने में जुटते। हत्या कश्मीर में हुई, मुस्लिम जिहादियों ने की इसलिए कोई शोर नहीं, कोई शोक नहीं। यह जिहादी-कलम ए.के.47 की गोलियों से कम घातक नहीं। मदनी को तो रिहा होना ही था क्योंकि जिस राजनीतिक सत्ता, शासन और प्रशासन पर मदनी के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के बारे में प्रमाण जुटाने और अदालत के सामने प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी थी वह स्वयं पहले दिन से ही मदनी की रिहाई का बंदोबस्त करने में जुटा हुआ था। कोयम्बतूर बम विस्फोट में मदनी की स्पष्ट सहभागिता के संकेत मिलने पर मदनी को गिरफ्तार कर तमिलनाडु सरकार के हवाले किया गया था। इस बारे में हम पहले भी छाप चुके हैं कि किस प्रकार जेल में मदनी के लिए पांच सितारा सुख सुविधाएं जुटाई गयीं (पाञ्चजन्य 2 अप्रैल, 2006) एवं मसाज और मनोरंजन की व्यवस्था भी की गयी। केरल विधानसभा चुनाव के समय माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस में मदनी को नायक बनाकर मुस्लिम वोट हासिल करने की होड़ लगी हुई थी। इस बारे में तिरुअनंतपुरम् से हमारे संवाददाता प्रदीप कुमार की इसी अंक में प्रकाशित रपट विशेष दृष्टव्य है। केरल की वाममोर्चा सरकार के गृहमंत्री तो मदनी की रिहाई के जलसे में शामिल हुए। उन्हें इस बात की शर्म नहीं आई कि जिस व्यक्ति के बारे में प्रमाण जुटा पाने में उनका विभाग नाकाम रहा उसी की रिहाई पर वे जश्न मना रहे हैं। यह उस राज्य सत्ता का परिचय है जो एक ओर हिन्दुओं के आदरणीय जगद्गुरु शंकराचार्य की गिरफ्तारी और दूसरी ओर 58 लोगों की निर्मम हत्या के आरोप में जेल गए मदनी की रिहाई पर सार्वजनिक उत्सव करती है। यह वह राज्य सत्ता है जिसके सूत्रधार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अफजल की फांसी मंजूर किए जाने पर दुख मनाते हैं और राष्ट्रपति को अफजल की माफी के बारे में दस्तावेज इसलिए नहीं भेजते क्योंकि उनको डर होता है कि अब्दुल कलाम जैसे व्यक्ति अफजल को माफी देने में रुचि नहीं लेंगे। इस राज्य सत्ता के संचालक संजय दत्त को सजा दिए जाने पर सार्वजनिक रुप से शोक मनाते हैं और उसे क्षमा दान की मांग करते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि संजय के पिता कांग्रेस के मंत्री थे और जो कांग्रेस का साथ दे उसके अपराध सिर्फ इसलिए माफ कर दिए जाने चाहिए क्योंकि वह उनका अपना है। अपना यदि नहीं है तो वह है भारत का संविधान, यहां के आग्रही हिन्दू और आतंकवाद के विरोध में खड़े एवं उसका प्रहार झेल रहे विभिन्न समुदायों के देशभक्त।जिस समय यह राज्य सत्ता मदनी की रिहाई का इस प्रकार जश्न मना रही थी, मानो कोई बड़ी लड़ाई जीत ली हो, उसी समय वाशिंगटन में बंगलादेशी हिन्दुओं पर अत्याचार के बारे में दो दिवसीय प्रदर्शनी “अश्रु” अमरीकी संसद के रेबर्न परिसर में हुई। इसमें बंगलादेशी हिन्दुओं के मानवाधिकारों के बारे में आवाज उठाने वाले अमलेन्दु चटर्जी ने बताया कि बंगलादेश में आज जो क्षेत्र है वहां विभाजन से पहले 37 प्रतिशत से अधिक हिन्दू थे, लेकिन आज वे मात्र 11 प्रतिशत रह गए है। इतनी भारी मात्रा में हिन्दुओं की संख्या में कमी का कारण उन पर बंगलादेश के इस्लामवादियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचार ही हैं। वाशिंगटन में डेमोक्रेट सांसद फ्रेंक पेलोन और जोसिफ क्रॉल ने इस प्रदर्शनी के आयोजन में मदद की, साथ ही ह्रूमन राइट्स कांग्रेस फार बंगलादेश माइनोरिटीज (एचआरसीबीएम) तथा फाउंडेशन अगेंस्ट कंटीन्यूईंग टेररिज्म (फेक्ट) ने बंगलादेश के महत्वपूर्ण मानवाधिकारवादियों और पत्रकारों के साथ वाशिंगटन में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के बारे में विचार गोष्ठी का आयोजन किया। ढाका से प्रसिद्ध मानवाधिकारवादी शहरयार कबीर और भोरेर कागोज पत्र से समरेश बैद्य आए तो एमनेस्टी इंटरनेशनल अमरीका की ओर से टी. कुमार, अमरीकी सरकार के अन्तरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के वरिष्ठ नीति विश्लेषक स्टीव स्नो भी थे। लेकिन क्या इस बारे में भारत के किसी भी समाचार पत्र में एक पंक्ति भी छपी? हिन्दुओं से वस्तुत: घृणा और विद्वेष का व्यवहार करने वाले सेकुलर कांग्रेसी और कम्युनिस्ट जिस प्रकार राज्य सत्ता का उपयोग बहुसंख्यक समाज की भावनाओं पर आघात के लिए कर रहे हैं उसका नतीजा कुछ तो निकलेगा ही। हिन्दू निष्प्राण होकर अनंत काल तक सब कुछ सहता रहेगा, यह संभव नहीं।अब इन बिन्दुओं पर विचार कीजिए-सेकुलर जश्न के दो मौके- पहला शंकराचार्य की गिरफ्तारी और उनके विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया जाना और दूसरा मदनी की रिहाई।अपने ही स्वदेशी कश्मीरी हिन्दुओं के उजड़ने पर खामोशी, उनकी हत्या और उन पर बलात्कार की उपेक्षा, लेकिन फिलिस्तीनी मुस्लिमों के अधिकारों और डेनमार्क के कार्टूनों पर शोर और गोधरा को भूलते हुए गुजरात के शेष दंगों एवं कट्टरवादियों की ईसाई झूठी शिकायत पर अमरीकी संसद और अनेक विदेशी राजधानियों में भारतीय सेकुलरों द्वारा अपने ही भारतीयों के खिलाफ प्रदर्शन, विष वमन एवं विदेशी सरकार के सामने गवाहियां।मदरसों पर गृह मंत्रालय की रपट के बावजूद उनकी जांच से इनकार बल्कि उन्हें और अधिक प्रोत्साहन, लेकिन संस्कृत शिक्षा एवं उसे प्रोत्साहन दिए जाने से परहेज तथा संस्कृत को मृत भाषा कहकर उसके विद्यालय एवं शोध केन्द्रों की उपेक्षा।नेपाल के हिन्दू राष्ट्र न रहने पर खुशी लेकिन घोषित इस्लामी राज्यों के प्रमुखों को राजकीय अतिथि के नाते आमंत्रण।देश भर में हजारों दरगाहों और मुस्लिम हमलावरों की कब्रागाहों की रक्षा के लिए करोड़ों रुपए खर्च, लेकिन विश्व की महानतम हिन्दू विरासत रामसेतु को तोड़ने के लिए सत्ता का असाधारण उपयोग।मुस्लिमों को उनके मजहब के आधार पर नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में ही नहीं बल्कि बैंकों से ऋण के लिए भी विशेष आरक्षण और व्यवस्था, लेकिन हिन्दुओं को हिन्दुओं के नाते कोई समकक्ष सुविधा नहीं।पाठ पुस्तकों और शिक्षा संस्थानों में हिन्दू गौरव और स्वाभिमान के पाठ पढ़ाया जाना साम्प्रदायिक एवं अस्वीकार्य घोषित।यह वह राज्य सत्ता है जो हर किसी मंच और सत्ता समीकरण में हिन्दुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़े व्यक्ति, संगठन और समूह को बाहर रखना अपना “पवित्र जिहाद” जैसा कर्म मानती है। गोवा में जिस प्रकार भाजपा को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीके अपनाते हुए सत्ता से बाहर रखने का प्रयास किया गया वह इसी सेकुलर जिहाद का अंग है। यह राज्य सत्ता सबसे अधिक साम्प्रदायिक, जातिगत विद्वेष फैलाने वाली है, जो संविधान और सार्वजनिक मर्यादाओं के विपरीत आचरण करते हुए वैचारिक विरोधियों को शत्रु मानकर उन्हें दमित करने के सभी उपक्रम निसंकोच करती है। दूसरी ओर हिन्दू समाज और संगठन एकजुट तो हैं ही नहीं बल्कि वैचारिक विरोधियों के आघात असफल करने में सामूहिक शक्ति लगाने के बजाय आपस में एक दूसरे को गिराने और परास्त करने के आत्मघाती खेल में व्यस्त हैं। ऐसी स्थिति में केवल डा. हेडगेवार प्रणीत संघ शक्ति के माध्यम से वैचारिक सामथ्र्य जुटाते हुए आग्रही हिन्दुत्व के बल से इन प्रहारों को परास्त किया जा सकता है। यह होगा ही, होने वाला ही है, केवल धैर्य और वैचारिक परिपक्वता के साथ दीर्घकालिक लक्ष्य की ओर अविचल भाव से बढ़ते चले जाने की उद्दाम इच्छा चाहिए।7
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