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गठबंधन में दरार के आसार!-खजूरिया एस. कांतमुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और पी.डी.पी. नेतृत्व के बीच तलवारें खिंचने से गठबंधन सरकार एक बार फिर टूट की झलक दिखा रही है।इस बार संघर्ष का मुद्दा विभागों के बंटवारे अथवा दूसरे खेमे में दरार डालना नहीं है बल्कि मुद्दा बना है विसैन्यीकरण और आम्र्ड फोर्सेज स्पेशनल पावर्स एक्ट। जबकि यह विषय केन्द्र सरकार के अधीन है क्येांकि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा है। राज्य में फर्जी मुठभेड़ों में कुछ लोगों के मारे जाने को लेकर उभरे दोषारोपण में से यह विवाद उभरा है।5 फरवरी को मुख्यमंत्री आजाद ने विधानसभा में कहा कि अगर इस मांग के पैरोकार लिखित में अपनी सुरक्षा हटाने की बात करते हैं तो वे विसैन्यीकरण पर आगे चर्चा उठाएंगे। लेकिन इस बयान से पी.डी.पी. में खलबली मचने की बजाय उल्टे राज्य सरकार ही फंस गई क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद ने अगले ही दिन आजाद को लिख दिया कि “अगर जम्मू-कश्मीर से सेना हटाने के रास्ते में यही एक बाधा है तो हम अपनी सुरक्षा हटाते हैं।” इस पत्र में मुफ्ती ने राज्य से धीरे-धीरे सेना हटाने की अपनी पार्टी की नीति का उल्लेख किया। मुफ्ती ने आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट समाप्त करने और राज्य पुलिस को अधिक सक्रिय करने पर बल दिया जिससे, उनके अनुसार, शांति की बहाली जल्दी होगी। इस पत्र के बाद जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त महबूबा मुफ्ती अपनी सुरक्षा घेरे को धता बताते हुए श्रीनगर से 55 कि.मी. दूर ऐशमुकाम गांव जा पहुंची। मगर उनके इस कदम के बाद सुरक्षा में “चूक” के कारण अधिकारियों ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के 5 निर्दोष जवानों को निलम्बित कर दिया।बहरहाल, पी.डी.पी. ने इस बात का विरोध किया है कि वह किसी तरह की राजनीतिक दिखावेबाजी कर रही है। 10 फरवरी को महबूबा मुफ्ती ने कहा कि मुख्यमंत्री से पी.डी.पी. नेताओं की सुरक्षा हटाने की बात कहकर वे तो राज्य सरकार के ही हाथ मजबूत कर रहे हैं।यूं गठबंधन में दरार की झलक तो काफी समय से दिखती रही है। पिछले साल तो हालात तब बहुत बिगड़ गए थे जब उपचुनावों में पी.डी.पी. के तीन दमदार उम्मीदवारों के हारने में आजाद का हाथ बताया गया था। पिछले साल ही मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर दोनों दलों में संघर्ष हुआ था, आजाद ने पी.डी.पी. के अनुरोध को मानने से साफ इनकार कर दिया था।दिलचस्प तथ्य यह है, और एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने पी.डी.पी. को यह याद भी दिलाया, कि जुलाई 1990 में केन्द्र में वी.पी. सिंह सरकार में गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद ने ही राष्ट्रपति शासन के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों को डिस्टब्र्ड एरिया एक्ट और स्पेशल पावर्स एक्ट से सज्ज किया था। चर्चा यह है कि व्यक्तिगत सुरक्षा हटाने की बात करके पी.डी.पी. एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। एक ओर वह आने वाले 2008 के राज्य चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है वहीं दूसरी ओर सुरक्षा का “नाटक” खेलकर वह राज्य में गठबंधन शासन के अंतर्गत मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से खुद को बरी दिखाना चाहती है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पी.डी.पी. नेताओं की निजी सुरक्षा बहाल रखी गई है।22
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