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सुहागिन महिलाएं विधवा के वेश में जीवन जीने को मजबूरगरियाबंद (छत्तीसगढ़) प्रखण्ड मुख्यालय से 25 किमी दूर ग्राम कोसमी की ग्रामदेवी के पुजारी परिवार में पिछले 24 पीढ़ियों से सुहागिन महिलाएं भी विधवा के वेश में जीवन जीने को मजबूर हैं। अन्धविश्वास है कि उक्त पुजारी परिवार देवी शाप से ग्रस्त है। इसी कारण उस परिवार की कोई भी महिला विवाह के पश्चात् सुहागिन के रूप में देखने को नहीं मिली। इस संबंध में पुजारी परिवार के सदस्य फिरतराम ध्रुव ने बताया कि उनके परिवार के लोग 24 पीढ़ियों से ग्रामदेवी मंदिर के पुजारी का दायित्व निभाते आ रहे हैं। उनके पूर्वज गोवर्धन सिंह ध्रुव खेतों में जब हल चलाने के लिए जाते थे तो वह पहले हल में बैलों के स्थान पर बाघ व लाठी के स्थान पर सर्प तथा बिच्छू का उपयोग करते थे। तब स्वयं ग्रामदेवी उपस्थित रहती थीं। वह गोवर्धन सिंह को बाघ व सर्प, बिच्छू के साथ हल चलाते देख उनके लिए अन्न की व्यवस्था करती थीं। इस दौरान पुजारी की पत्नी भी भोजन लेकर आती थी जिसे पुजारी वापस लौटा देता था। रोज-रोज भोजन लौटाने के कारण उसकी पत्नी खिन्न रहती थी। एक दिन उनकी पत्नी ने पेड़ की ओट में छिपकर देवी व उनके पुजारी पति वाली घटना को प्रत्यक्ष देख लिया। आवेश में आकर वह ग्राम देवी को आम महिला समझकर झगड़ पड़ी और उससे गाली-गलौज में उसे विधवा कहा। इससे ग्राम देवी नाराज हो गईं और उन्होंने पुजारी की पत्नी को शाप दे दिया कि मुझे विधवा कहने वाली आज से तुम्हारे परिवार की सभी सुहागिन महिलाएं विधवा के वेश में रहेंगी। पुजारी फिरतराम ने बताया कि उनके बड़े भाई के विवाह के उपरांत नवविवाहिता ने जब मुख्य द्वार पर सुहागिन के वेश में गृह प्रवेश किया तो उनकी सारी चूड़ियां अपने आप टूटकर बिखर गईं। तब से गांव में यही परम्परा चली आ रही है। (वि.सं.के., रायपुर)14
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