बुक्सा जनजाति ने खोज ही निकाला अपना इतिहास
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बुक्सा जनजाति ने खोज ही निकाला अपना इतिहास

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Nov 3, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Nov 2007 00:00:00

अपने पूर्वज भोजवंश के राजा जगत सिंह की प्रतिमा स्थापित कीसेवा प्रकल्प संस्थान ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिकाउत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर, देहरादून व हरिद्वार में बसने वाली बुक्सा जनजाति का गौरवशाली इतिहास रहा है। धारा नगरी, जो कि मालवा राज्य का हिस्सा थी, पर एक समय परमार वंशीय राजा भोज का शासन था। बुक्सा जनजाति उन्हीं राजा भोज की वंशज है। परमार वंश की कुलदेवी माता हिंगलाज का मंदिर वर्तमान में बलूचिस्तान में है।परमार वंश के लोग उत्तराञ्चल तक कैसे आए और बुक्सा जनजाति क्यों कहलाए, इसकी एक रोमांचक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। भोजवंश कालांतर में दो शाखाओं में विभाजित हो गया। एक मालवा की शासक बनी और दूसरी धार नगरी की। अपने पराक्रम के बलबूते मालवा के शासकों ने अपने राज्य का विस्तार किया पर धार के शासक ऐसा नहीं कर सके। लेकिन दोनों राज्यों के सम्बंध घनिष्ठ रहे और शत्रुओं का मिलकर मुकाबला करते रहे। सन् 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण किया। मालवा के राजा महलक देव और धार के राजा उदयजीत सिंह ने मिलकर उसका मुकाबला किया। पर खिलजी की एक लाख सेना के सामने महलक देव के 40 हजार सेना टिक न सकी। राज महलक देव शहीद हुए और उदयजीत बची हुए सेना लेकर धार वापस लौट आए।कुछ दिन बाद ही खिलजी ने धार पर भी हमला बोल दिया। उदयजीत सिंह को इसका पूर्वानुमान था इसलिए उन्होंने राज परिवार की महिलाओं और बच्चों को अपने छोटे भाई जगत सिंह के संरक्षण में सुरक्षित स्थान पर भेज दिया था। युद्ध में राजा उदयसिंह को वीरगति प्राप्त हुई तो जगत सिंह मां हिंगलाज के दर्शन को चले गए। वहां से वापस आकर कुछ समय उज्जैन में रहे। फिर सुरक्षित स्थान की तलाश में वे वर्तमान उधम सिंह नगर तक पहुंच गए, जो उन दिनों चन्द्रवंशी राजाओं के आधीन था। उधम सिंह नगर-रामपुर जनपद की सीमा पर स्थित पीपली के जंगलों में उन्होंने अपनी बस्ती बसाई। यहीं माता हिंगलाज के बाल रूप विग्रह की स्थापना की। उस बस्ती के अवशेष आज भी खण्डहर रूप में वहां देखने को मिलते हैं। बाद में रामपुर पर जब नवाबों का शासन हुआ तो उन्होंने पीपली जंगल की इस बस्ती को उजाड़ दिया। परिणामस्वरूप ये लोग तराई के जंगलों में फैल गए और माता के बाल रूप विग्रह की स्थापना वर्तमान काशीपुर के निकट की गई। इसी स्थान पर अब चैती मेला लगता है। इस गांव को उज्जैन तथा मंदिर को उज्जयिनी मंदिर भी कहा जाता है।उक्त इतिहास अब तक लोक-कथाओं व लोक गीतों के माध्यम से बुक्सा जनजाति के बीच प्रचलित था। इन्हें अपने पूर्वज राजा जगत सिंह का नाम ज्ञात था पर उनका इतिहास नहीं मालूम था और न ही उनका कोई चित्र था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सेवा प्रकल्प संस्थान के कार्यकर्ताओं ने इस विषय को गंभीरता से लिया। पर्याप्त खोज एवं अथक परिश्रम के बाद उन्होंने राजा जगत सिंह के इतिहास को न केवल क्रमबद्ध किया बल्कि उनका एक चित्र भी ढूंढ निकाला। इतना ही नहीं, इस वर्ष अंग्रेजी तिथि के अनुसार राजा जगत सिंह के जन्म दिवस (3 जनवरी) पर उनकी एक प्रतिमा चैती मेला परिसर में स्थापित कर बुक्सा जनजाति के बीच अपने वंशजों के प्रति गौरव और स्वाभिमान का भाव जाग्रत किया।राजा जगत सिंह की प्रतिमा स्थापना को लेकर बुक्सा समाज में गजब का उत्साह दिखा। समारोह में 100 गांवों के 10 हजार से अधिक बुक्सा समाज के लोग जुटे। उल्लेखनीय यह भी है कि ये सब न केवल अपने खर्च पर यहां तक आए बल्कि अपने समाज से एक लाख रुपए एकत्र कर प्रतिमा की स्थापना के लिए सेवा प्रकल्प संस्थान को दिए। इस अवसर पर अ.भा. वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगदेव राम उरांव, सह महामंत्री श्री कृपा प्रसाद सिंह, क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री तिलक राज कपूर, प्रदेश अध्यक्ष श्री हीरा बल्लभ शास्त्री, प्रदेश महामंत्री श्री रामानन्द सिंह त्यागी, मेरठ विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. आर.एस.अग्रवाल, पुरातत्वविद् डा. विघ्नेश त्यागी एवं रा.स्व.संघ के प्रान्त प्रचारक श्री शिव प्रकाश सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे। प्रतिनिधि21

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