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भारतीय संगीत सुनकरमुसोलिनी हुआ तनाव मुक्तवचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”विख्यात संगीताचार्य पं. ओंकार नाथ ठाकुर विष्णु दिगम्बर पुलस्कर के शिष्य थे। सन् 1936-37 में वे इटली गए। उस समय वहां मुसोलिनी का शासन था। द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ नहीं हुआ था। पं.ओंकार नाथ ठाकुर ने मुसोलिनी से भेंट की। मुसोलिनी ने उनसे पूछा “तुम्हारे देश के संगीत की क्या खूबी है?” पं.ओंकार नाथ ने उत्तर दिया “भारतीय संगीत से मनुष्य के मन पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं, मुझे पता है कि सुबह कौन-सा राग गाना चाहिए और सायंकाल कौन-सा।”मुसोलिनी ने उनकी बात नकारते हुए कहा, “ये व्यर्थ की बातें छोड़िए। कुछ करके दिखाइए तो मैं मानूं। मुझे एक सप्ताह से नींद नहीं आ रही है, यदि भारतीय संगीत में शक्ति है तो आप गाकर दिखाएं और देखें कि उसका मुझ पर क्या असर होता है।” इस पर पं. ओंकार नाथ ने संकोचपूर्वक कहा “हमारे राग तो भारतीय दिल-दिमाग के लिए हैं, फिर भी मैं कोशिश करता हूं।” पं. ओंकार नाथ ठाकुर को राग गाते हुए 20 मिनट ही हुए थे कि मुसोलिनी के खर्राटे गूंजने लगे। तत्पश्चात पं. ओंकार नाथ चले आए। अंतत: मुसोलिनी ने स्वीकार किया कि भारतीय संगीत संसार में अद्वितीय है।19
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