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प्रिय बन्धुओ,सप्रेम जय श्रीराम।पहले अच्छी बात। अशोक जी का स्वास्थ्य अब पहले से बेहतर हुआ। प्रयाग में दिन-रात काम किया। आंधी-तूफान से जूझे और बाद में जिस प्रकार कार्यक्रम सफल हुआ वह चमत्कार ही कहा जाना चाहिए। लौटकर आए तो दिल्ली के एस्कार्ट चिकित्सालय में अशोक जी का चिकित्सकीय परीक्षण हुआ। भरपूर आराम की सलाह दी गई। दवाएं बदली गर्इं। लेकिन वे तो दधीचि ठहरे, कल वापस संकटमोचन आश्रम में आ गए। बोले, “अरे भाई इतना काम बाकी है। इतना विराट सम्मेलन हुआ। उसको समेटना, कैसे क्या हुआ, इसका लेखा-जोखा तो करना होगा। देश भर से लोग आए। आंधी-तूफान ने सारे प्रांत, जिले और क्षेत्र एकाकार कर दिए। प्रांतश: तम्बू लगे थे, सब उखड़कर इकट्ठे हो गए। पानी-पानी हो गया, लेकिन प्रयाग के लोगों ने अपने घर खोल दिए। देश भर से डेढ़-दो लाख लोग अद्र्धकुंभ समाप्त होने के बाद विश्व हिन्दू सम्मेलन हेतु आए थे। तूफान के बाद कहीं ठहरने की जगह नहीं। प्रयागवासियों के घरों में ठहरे, वहीं उनके भोजन की व्यवस्था। फिर समस्या थी कि उन्हें सूचना कैसे दी जाए। समाचार पत्रों में हमने पुन: सम्मेलन की नई तिथि घोषित की, उससे उन सबको पता चला और वे आ गए। यह होती है धर्म की शक्ति। किसी एक ने भी न कोई शिकायत की, न कोई वेदना व्यक्त की। यह केवल प्रभु की इच्छा और हिन्दू जनमन में गहरे पैठी हुई धर्म की ताकत का ही परिणाम था। सब कुछ उखड़ कर भी सब कुछ संवर गया।” अशोक जी शनै: शनै: वहां का वर्णन सुनाते हुए भाव में लीन से हो गए। मैंने कहा, अब आप आराम कीजिए। बोले, “आराम कहां। मुझे अब बस स्वामी अड़गड़ानंद जी का गीता भाष्य पढ़कर शांति मिलती है। दिन भर वही पढ़ता हूं।” प्रयाग के अनुभव पर उन्होंने जो लेख लिखा, वह भी भीतर के पृष्ठ पर प्रस्तुत है।अपने त्रिलोक मोहन जी पर सरस्वती की कृपा है। उनकी वाणी में ओज, तेज और रामचरितमानस विराजित है। वे और बाबा तुलसी मानो एकरूप हो गए हैं। पिछले सप्ताह उन्होंने 85वें वर्ष में प्रवेश किया। भगवत्कृपा ऐसी है कि अभी भी वे पहले की ही तरह सक्रिय और सानंद हैं। हमेशा मंदस्मित और राममय चर्चा का आनंद बरसाने वाले पंडित जी शतायु हों, यह ईश्वर से कामना है।पिछले सप्ताह विश्व प्रसिद्ध चित्रकार सैय्यद हैदर रजा से भेंट हुई। मध्य प्रदेश के मंडला जिले में बरबरिया के रहने वाले। अनेक दशकों से पेरिस में रह रहे हैं। अभी यूरोप में उनका एक चित्र 15 लाख डालर यानी लगभग 7 करोड़ रुपए में बिका। स्वभाव से अत्यंत विनम्र और सहज श्री रजा हिन्दू जीवन दर्शन से प्रभावित हैं और उनकी अधिकांश कलाकृतियां “बिन्दु” को व्याख्यायित करती हैं। बिन्दु यानी परम ब्राह्म। बिन्दु यानी शून्य। बताते-बताते वे गीता के श्लोक और बचपन में अपने गुरुदेव से सुनी चौपाइयां सुनाने लगते हैं। उनका विस्तृत साक्षात्कार अगले अंक में देंगे। लौटते हुए मन यह सोच रहा था, कितना फर्क है इन रजा साहब और उस हुसैन में।शेष अगली बार।आपका अपना,4
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