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आजाद थे, इसलिए हम आजाद हैंमहान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में म.प्र. सरकार ने गत दिनों “आजाद संदेश यात्रा” का आयोजन किया। 3 जनवरी, 2007 को प्रयाग (इलाहाबाद) के आजाद पार्क (अल्फ्रेड पार्क) से प्रारम्भ होकर यह यात्रा उनके जन्मस्थान आजाद नगर (भाबरा), झाबुआ में 12 जनवरी को सम्पन्न हुई। यात्रा के दौरान एक रथ पर चन्द्रशेखर आजाद की प्रतिमा स्थापित थी। अन्य वाहनों पर क्रांतिकारियों की झांकी, साहित्य व आजाद की पिस्तौल की प्रतिकृति रखी गई। यात्रा ने इस दौरान 10 दिन में 3000 किमी.का की दूरी तय की। इलाहाबाद, रीवा, सतना, कटनी, सिहौरा, जबलपुर, जवेरा, दमोह, सागर, नरसिंह गढ़, भोपाल, सीहोर, देवास, इंदौर, उज्जैन, राजगढ़ और झाबुआ होते हुए भाबरा में यह यात्रा सम्पन्न हुई।यात्रा मार्ग में विभिन्न नगरों व कस्बों में कुल मिलाकर 56 सभाएं आयोजित की गईं। यात्रा के शुभारम्भ अवसर पर सच्चा आश्रम के प्रमुख श्री स्वामी जी, उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री केशरी नाथ त्रिपाठी एवं म.प्र. संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा उपस्थित थे। सागर में प्रसिद्ध कांग्रेसी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री विट्ठल भाई पटेल, ग्वालियर में पाञ्चजन्य के संपादक श्री तरुण विजय, भोपाल में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एवं समापन कार्यक्रम में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री नरेन्द्र सिंह तोमर एवं संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।आजाद संदेश यात्रा के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए इसके संयोजक एवं म.प्र. भाजपा के उपाध्यक्ष श्री अनिल माधव दवे ने बताया कि जन-जन तक चन्द्रशेखर आजाद के विचारों व कार्यों को पहुंचाना वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। जीवन में कभी आजाद की तरह हमारे पास आखिरी गोली बचे और हमारे सामने दुश्मन और गद्दार दोनों खड़े हों तो गोली गद्दार पर चलानी चाहिए, क्योंकि गद्दार बचा तो भावी पीढ़ी को भी धोखा खाना पड़ेगा।” रीवा में राजस्व, जबलपुर में न्याय, सागर में वित्त, ग्वालियर में शासन, भोपाल में प्रशासन, इन्दौर में जनतंत्र और उज्जैन में शिक्षा जैसे विषयों को भारतीयों द्वारा, भारतीयों के लिए, भारतीय व्यवस्था बनाने का विषय यात्रा के संयोजक व अन्य वक्ताओं द्वारा तार्किक ढंग से रखा गया। उन्होंने अपने वक्तव्यों में कहा कि हमें 15 अगस्त, 1947 को राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिल गई, लेकिन अंग्रेजी राज से व्यवस्थात्मक स्वतंत्रता प्राप्त करनी अभी बाकी है। क्रांतिकारियों के सपनों का भारत बनना अभी शेष है। क्रांतिकारियों ने असहनीय पीड़ा को सहा है। उन्होंने खेलने-कूदने की उम्र में फांसी के फंदों, बंदूक की गोलियों और काले पानी जैसी सजा को हंसते-हंसते स्वीकार किया। इन क्रांतिकारियों की आंखों में भी भारत के लिए कुछ सपने अवश्य रहे होंगे। क्या उन्होंने आज जैसे भारत का सपना आंखों में संजोए फांसी का फंदा गले में डाला था? निश्चित ही रूप से नहीं। हमें यदि उनको सच्ची श्रद्धाञ्जलि देनी है तो उनके सपनों के भारत का निर्माण करना होगा। क्योंकि आजाद थे, तो हम आजाद हैं।यात्रा के समापन अवसर पर आजाद नगर (भाबरा) में जनजातीय समाज की भागीदारी अद्भुत थी। 25-30 हजार जनजातीय लोग यात्रा स्वागत करने हेतु पहुंचे और सभा में शामिल हुए। यात्रा के माध्यम से आजाद के बलिदान स्थल, यानी आजाद पार्क (इलाहाबाद) तथा उनके अंतिम संस्कार के स्थान, संगम तट की मिट्टी को उनके जन्मस्थान लाया गया था। “75 वर्ष बाद बेटा फिर अपने घर आया है”, यह बात झाबुआवासियों को अभिभूत कर गई। उनके जन्मस्थान पर बनने वाले स्मारक की नींव में इन दोनों स्थानों से लाई हुई मिट्टी रखी जाएगी। श्री दवे ने युवाओं को स्मरण कराते हुए कहा कि जिस मंत्र का उच्चारण कर क्रांतिकारियों ने इस देश को आजाद कराया था, जिसे गुंजाकर भगत सिंह ने फांसी का फंदा चूमा था, जिसे जपते-जपते वीर सावरकर ने काले पानी की सजा काटी थी, वही “वन्दे मातरम्” का मंत्र भारत को महान व शक्तिशाली राष्ट्र बनने की प्रक्रिया का बीज मंत्र है।17
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