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सम्पादकीय

by
Oct 6, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Oct 2007 00:00:00

गिरो तो उठो, फिर बढ़ो। कैसे भी रोते-गाते, गिरते-उठते, प्रभु की प्राप्ति के मार्ग में बढ़ते चलो।-अखण्डानंद सरस्वती (विभूति योग, पृ.90)भारत हित पहलेअमरीकी गृह विभाग में राजनीतिक मामलों के उपसचिव राजदूत निकोलस बन्र्स एक ऐसे समय परमाणु संधि पर भारत से निर्णायक बात करने आए हैं जब देश सबसे कमजोर बिन्दु पर खड़ा है। केन्द्र में सरकार कम्युनिस्टों द्वारा बाहर से दिए जा रहे समर्थन पर टिकी है और वे पूरी ताकत से बयानबाजी करते हुए अमरीका से परमाणु संधि का विरोध कर रहे हैं। अमरीका ने अभी तक भारतीय संवेदनाओं और चिन्ताओं को ध्यान में रखते हुए कोई भी ऐसा आश्वासन नहीं दिया है जिससे भारत को राहत मिलती हो। इसके विपरीत अमरीकी अधिकारी बहुत ईमानदारी से यह घोषित कर रहे हैं कि परमाणु संधि के माध्यम से भारत के सैनिक और नागरिक परमाणु कार्यक्रम अमरीकी निगाहों में अनिवार्यत: रहेंगे, भारत को सैन्य परमाणु कार्यक्रम और सुरक्षा सम्बंधी आण्विक आकांक्षाएं खत्म करनी होंगी। और परमाणु विस्फोट की स्थिति में एक-एक चीज, प्रसंस्कृत ईंधन सहित उसे लौटाना ही होगा।भारत के विदेश सचिव श्री शिव शंकर मेनन देशभक्त और पारदर्शी व्यक्ति हैं। उनके चेहरे से ही भीतर के भाव पता चल जाते हैं। वे गत 2 मई को वाशिंगटन में निकालेस बन्र्स से मिले थे। तब तक ऐसा माना जा रहा था कि भारत-अमरीकी परमाणु संधि पटरी से उतर गई है, क्योंकि प्रधानमंत्री ने संसद में इस सम्बंध में जो आश्वासन दिये थे वे अमरीका की नीति में ठीक-ठीक नहीं बैठ रहे हैं और भारत को भविष्य में किसी भी प्रकार का परमाणु परीक्षण करने से वंचित किया जा रहा है। कुछ विपक्ष का दबाव और कुछ आन्तरिक देशभक्ति का भाव सरकार में बैठे मेनन जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को भारतीय सुरक्षा हित दांव पर लगाकर संधि करने से रोकता रहा है। अमरीकी राजदूत मल्फोर्ड की मानें तो निकोलस दिल्ली आकर भारत से परमाणु संधि के 1 2 3 समझौते पर अंतिम विचार करेंगे।इस बीच अमरीका के साथ शांति पूर्ण परमाणु ऊर्जा सहयोग अधिनियम 2006, जो वहां हेनरी जे हाईड अधिनियम कहा जाता है कानून बन चुका है। इसलिए 123 समझौता पूरी तरह से उक्त कानून के चौखटे में समाना चाहिए। यह समझौता, जिसके लिए निकोलस बन्र्स भारत आए हैं, अमरीकी संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाएगा जहां स्वीकृत होने के बाद ही यह भारत अमरीकी परमाणु संधि का हिस्सा बन पाएगा। यह ध्यान रखने की बात है कि इस परमाणु संधि पर काम कर रहे अमरीकी अधिकारियों ने अमरीकी संसद में गवाहियां दी हैं कि अमरीका भारत को परमाणु ईंधन का भंडार बनाने के लिए कोई मदद नहीं देना चाहता। क्योंकि यदि भारत ने भविष्य में कभी भी कोई परमाणु परीक्षण किया तो उस स्थिति में अमरीका द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंध लागू किए जाने में भारत के पास पहले से ही तैयार परमाणु ईंधन भंडार बाधा पहुंचा सकते हैं। एक ओर अमरीका इतनी दूर की सोच रहा है, दूसरी ओर भारत अपने तात्कालिक भविष्य की चिंता भी करता नही दिख रहा।निकोलस बन्र्स अमरीकी राजनय के क्षेत्र में बहुत तीव्रता से आगे बढ़ने वाले अधिकारी हैं। लेकिन भारत के साथ उनका पहले कोई संबंध नहीं रहा। वे फ्रांसीसी, ग्रीक और अरबी भाषा जानते हैं तथा रूसी मामलों के उस समय से विशेषज्ञ हैं जब सोवियत संघ जीवित था। वह अमरीकी विदेश मंत्री कोंडोलिसा राईस के विश्वस्त माने जाते हैं। भारत से परमाणु संधि के 123 समझौते पर निर्णायक बातचीत के लिए वे काफी कठोर और असमझौतावादी रवैया लेकर आ रहे हैं। कुछ समय पहले उन्होंने भारत की यात्रा यह कहते हुए विलंबित कर दी थी कि अभी समझौते के बारे में कुछ निर्णायक कहना संभव नहीं है, इसलिए भारत जाने का कोई फायदा नहीं है। जब वे भारत आए तो उन्होंने कहा कि हम समझौते के बहुत करीब पहुंच गए हैं। इसका क्या अर्थ है?श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मांग की है कि प्रधानमंत्री परमाणु संधि के बारे में हर पक्ष को संसद में बताएं और सदन को विश्वास में लें। यदि ऐसा कोई भी समझौता होता है जो भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से हानिकारक हो तो उसे इस देश की जनता कभी स्वीकार नहीं करेगी, भले ही कोई भी सरकार उस पर हस्ताक्षर कर दे। देश यह भी जानना चाहेगा कि 17 अगस्त, 2006 को प्रधानमंत्री ने संसद में जो आश्वासन दिया था वह पूरा हो रहा है या नहीं और वास्तव में क्या उस आश्वासन को पूरा करने की क्षमता अब भारत के प्रधानमंत्री के हाथों में निहित है?मुदितमना मोदीनरेन्द्र मोदी गुजरात के सबसे लम्बे काल तक सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री बन गए हैं। उनसे पहले यह यश कांग्रेस के मुख्यमंत्री श्री हितेन्द्र देसाई को प्राप्त था। देश और शेष विश्व में छद्म सेकुलरों, जिहादियों और घृणावादी वर्गों की आंखों में सबसे ज्यादा खटकने वाले, निकट इतिहास में सर्वाधिक मीडिया और राजनीतिक प्रहारों को झेलने वाले, भीतर और बाहर से विद्वेष और नाराजगी जनित “प्रक्षेपास्त्रों” के निशाने पर रहने वाले नरेन्द्र मोदी ने विकास, सुशासन, भ्रष्टाचार विरोधी अभियान और दृढ़ राष्ट्रवादी रुख के बल पर उन क्षेत्रों से भी प्रशंसा एवं सम्मान अर्जित किया जो उनके सर्वाधिक विरोधी कहे जाते रहे हैं। परम पूज्य श्रीगुरुजी के जन्मशताब्दी वर्ष में उन्होंने एक स्वयंसेवक की दृष्टि में श्रीगुरुजी नामक पुस्तिका भी लिखी, नर्मदा पर डटे रहे और गुजरात के स्वाभिमान एवं विकास का एकमेव मार्ग पकड़ते हुए देश में सबसे ज्यादा चाहे गए सर्वाधिक वक्ता और चुनाव प्रचारक का स्थान भी अर्जित किया। अब और क्या चाहिए? वे जमे रहें, सबको साथ लेकर चलते रहें, उनके अच्छे कार्यों से समाज, प्रांत, देश और विचारधारा को यश मिले यही कामना है।5

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