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काठमांडू से रामाशीषमधेश आन्दोलन पृथकतावादी नहीं-प्रदीप गिरिवरिष्ठ नेता, नेपाली कांग्रेस (प्रजातांत्रिक)मधेश आंदोलन के संदर्भ में नेपाली राजनीति के वरिष्ठ नेता और समाजवादी चिन्तक श्री प्रदीप गिरि से संक्षिप्त बातचीत के अंश-आप पहाड़ी नेता हैं या मधेशी नेता?जिस सन्दर्भ में आज मधेश आन्दोलन हो रहा है और आन्दोलन ने जिस प्रकार कुछ सवालों को आगे किया है, उस संदर्भ में विशुद्ध रूप में मधेश में जन्मे, पले-बढ़े होने के कारण मैं यहां के पहाड़ी मूल का नेता हूं। यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि मैं जिस पहाड़ी मूल का नेता हूं उसी मूल के नेताओं द्वारा मधेश क्षेत्र के साथ अन्याय के कारण आज यह स्थिति आयी है। मधेश के प्रत्येक जिले में मधेश मूल के नहीं अपितु पहाड़ी मूल के नेताओं को थोपा गया। आपको पता है, सुन्सरी जिले में महाबली दिलबहादुर श्रेष्ठ हुआ करते थे, मेरे सिरहा जिले में कृष्णचरण श्रेष्ठ हुआ करते थे। हालांकि आज वे नहीं रहे पर वे सामाजिक व्यक्ति थे। जिस मूल का मैं प्रतिनिधित्व करता हूं, आज उसी की शासन शैली से मधेश पीड़ित है। मैं शासक की दृष्टि से पहाड़ी मूल का हूं और संख्या के हिसाब से, भाषा के हिसाब से, बोली के हिसाब से, सर्वोपरि प्रेम और प्रतिबद्धता के हिसाब से मधेशी संस्कृति के प्रति प्रतिबद्ध हूं।मान लें कि यदि मधेश संघीय राज्य बन गया और फिर भी नेपाल राज्य उसके लिए रुाोत नहीं जुटा सका तो समस्या और भी गंभीर होती चली जायेगी। उस स्थिति में क्या मधेश पृथकतावादी आंदोलन में जुट जाएगा?मधेश की आज तक की जो भावना है, उसमें कहीं भी पृथकतावाद और अलगाववाद की गंध तक नहीं है। यह बात मैं जानकारी के आधार पर बता रहा हूं। दूसरी बात, मधेश जिस अधिकार की मांग कर रहा है वह मधेश को और समृद्ध बनायेगा। दुर्भाग्यवश मधेश के अधिकांश नेता नेकपा माओवादियों द्वारा ही शिक्षित और दीक्षित हैं इसलिए आज भी उन लोगों में हिंसा के प्रति काफी विश्वास दिखता है।…उपेन्द्र को मिलाकर?उपेन्द्र भी, एक हद तक पर वे शायद उतना अधिक आगे नेतृत्व स्तर तक नहीं पहुंचे थे। वह भी नेकपा माओवादियों के साथ गहरा और गंभीर साथ निभा चुके हैं। इसमें कोई शंका नहीं है। लेकिन, वैसी हिंसात्मक मानसिकता मधेशी आन्दोलन को केवल हानि पहुंचायेगी। इसलिए जितनी जल्दी इस समस्या का समाधान हो सके, उतना ही अच्छा होगा।माओवादी हिंसाचार पर मधेशियों की लगाम!बिहार के सीतामढ़ी जिले से सटे नेपाल के रौतहट जिले के जिला मुख्यालय गौर शहर में पिछले दिनों माओवादियों द्वारा मधेशी जनाधिकार फोरम की जनसभा पर किए गए हमले का फोरम के कार्यकर्ताओं तथा स्थानीय मधेशियों ने जमकर प्रतिकार किया। अधिकृत सूचना के अनुसार 27 माओवादी मारे गए जबकि स्थानीय सूत्रों के अनुसार लगभग सौ से अधिक माओवादियों की मृत्यु हुई है। वास्तव में माओवादी हिंसाचार पर लगाम लगाने में फोरम के कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों को ऐतिहासिक सफलता मिली है।उल्लेखनीय है कि माओवादियों के पिछले दस वर्षों के तथाकथित जनयुद्ध (आतंक) के दौरान बच्चों, महिलाओं और वृद्धों सहित लगभग 14 हजार निर्दोषों की नृशंस हत्या हुई, 56 हजार लोगों को विकलांग बना दिया गया और लगभग तीन लाख नेपाली परिवार विस्थापित हुए, उनकी सारी सम्पत्ति माओवादियों ने लूट ली। ऐसे माओवादियों से तराई की जनता ने बम और बन्दूकों से नहीं बल्कि लाठियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सामना किया है। अब तो खुलेआम लोग इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि माओवादियों के पांव मधेश अर्थात् तराई से उखाड़ दिए गए हैं।इसके बावजूद माओवादियों के एक प्रकार से प्रभाव में काम कर वर्तमान अन्तरिम सरकार ने उक्त घटना की जांच के लिए तुरत-फुरत आयोग गठित कर दिया जिसकी जांच अभी जारी है।नेपाल की दक्षिणी सीमा के लगभग एक करोड़ हिन्दीभाषी भूमिपुत्रों अर्थात् मधेशियों ने अब अपनी शक्ति पहचान ली है और राज्य व्यवस्था के हर अंग में अपनी हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। फोरम ने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला और प्रमुख विपक्षी नेता माधव कुमार नेपाल की ओर संकेत करते हुए कहा है कि हिन्दी भाषी मधेशियों के आन्दोलन के दौरान वर्तमान गृहमंत्री कृष्ण प्रसाद सिटौला की शह पर पुलिस ने 42 मधेशियों को गोली से उड़ा दिया, फिर भी उक्त गोलीकांड की जांच कराने के लिए सरकार ने न तो कोई आयोग गठित किया और न ही मारे गए अथवा घायल हुए मधेशियों को कोई मुआवजा दिया गया। जबकि इसके ठीक विपरीत मधेशी आन्दोलन के दो महीने बाद खुद के हमले के प्रतिकार में मारे गए माओवादियों की घटना की जांच के लिए आनन-फानन में तीसरे दिन ही आयोग गठित कर दिया गया था।उल्लेखनीय है कि नेपाल के लगभग सभी पहाड़ी मूल के नेता, जिनमें गिरिजा प्रसाद कोइराला, कम्युनिस्ट नेता माधव कुमार नेपाल, सुशील कोइराला और गृहमंत्री कृष्ण सिटौला आदि शामिल हैं, हिन्दीभाषी मधेशी बहुल तराई क्षेत्र से संसद की अधिकांश सीटों पर विजयी होते रहे हैं। आश्चर्य तो यह है कि पहाड़ी चुनाव क्षेत्र से केवल आठ हजार की आबादी के लिए एक संसदीय सीट है जबकि हिन्दीभाषी मधेशी-बहुल तराई क्षेत्र से एक और डेढ़ लाख की आबादी लिए भी एक ही सीट है। हालांकि सच्चाई यह है कि नेपाल के सरकारी खजाने में हिन्दीभाषी मधेशी क्षेत्र तराई 83 प्रतिशत राजस्व का योगदान करता आ रहा है।35
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