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गंगोत्री-यमुनोत्री-रुद्रप्रयाग

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Oct 6, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Oct 2007 00:00:00

आस्था केन्द्रों की दुरावस्था दूर करे खण्डूरी सरकार-सुभाष चंद्र जोशीकरोड़ों हिन्दुओं की आस्था से जुड़ी पावन गंगोत्री-यमुनोत्री यात्रा पर अव्यवस्थाओं का साया मंडरा रहा है। इस कारण तीर्थयात्रियों को परेशानी उठानी पड़ रही है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा इस ओर ध्यान न देने के कारण देवभूमि के तीर्थस्थलों में अव्यवस्था का माहौल है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालु इन दिनों गंगोत्री, यमुनोत्री पहुंच रहे हैं। गंगोत्री जाने वाली सड़क पर अक्सर जाम लगा रहता है। जबकि यमुनोत्री पैदल मार्ग पर भारी भीड़ रहती है। यहां पैदल चलना भी कठिन हो जाता है। इन तीर्थस्थलों में रात्रि विश्राम की उचित व्यवस्था न होने के कारण श्रद्धालु खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर होते हैं।मई माह की शुरुआत से ही गंगोत्री व यमुनोत्री की यात्रा के लिए सैकड़ों तीर्थयात्री प्रतिदिन आ रहे हैं। किन्तु अव्यवस्थाओं के कारण यात्रियों एवं पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा पर आ रहे देश-विदेश के हजारों यात्री उत्तरकाशी पहुंच रहे हैं, किन्तु यहां पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण उन्हें परेशानी हो रही है। यहां पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर में सुलभ शौचालयों की स्थिति नगण्य है। जो हैं, वे बदतर हालत में हैं। एकमात्र सुलभ शौचालय, जो कि बस स्टैण्ड में है, वहां लिए जा रहे अनाप-शनाप पैसे से भी यात्रियों में खासा रोष है। घाटों पर भारी गंदगी है। गंगा प्रदूषण इकाई व नगर परिषद् की लापरवाही से यात्री यहां भागीरथी में स्नान करने से भी कतरा रहे हैं। कहने को तो उत्तरकाशी में दो धर्मशालाएं हैं, लेकिन इन धर्मशालाओं ने भी सराय अधिनियम का सहारा लेकर होटल खोल रखा है। इस प्रकार ये धर्मशालाएं सरकार को प्रतिवर्ष लाखों रुपए का चूना भी लगा रही हैं। हर वर्ष चारधाम यात्रा के नाम पर लाखों रुपए का बजट पारित होता है, फिर भी व्यवस्थाओं का आलम यह है कि लोगों को पीने का स्वच्छ जल भी उपलब्ध नहीं हो पाता।यही हाल है पंच केदारों में से चतुर्थ केदार रुद्रनाथ रुद्रप्रयाग का। चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर से 5 कि.मी. बस से यात्रा करने के पश्चात 14 किलोमीटर की खड़ी पगडंडियां चढ़कर इस पवित्र स्थान पर श्रद्धालु पहुंचते हैं। माना जाता है कि यही एकमात्र स्थान है जहां शिव की मुख पूजा की जाती है। इस पवित्र स्थान पर कठिन चढ़ाई चढ़ने के बाद जब यात्री पहुंचते हैं तो यहां रहने की व्यवस्था ठीक न होने के कारण निराश हो जाते हैं। यहां न तो पर्याप्त पेयजल है और न ही विद्युत व्यवस्था है। ठहरने के लिए मात्र एक धर्मशाला है, वह भी टूटी-फूटी।यहां समस्या पैदल मार्ग से ही शुरू होने लगती है। यह क्षेत्र केदारनाथ वन प्रभाग के अन्तर्गत आता है और उसकी अनुमति के बाद की इस मार्ग को सही किया जाता है। लेकिन प्रतिवर्ष हजारों रुपए व्यय करने के बाद भी इस मार्ग की स्थिति नहीं सुधरी है। यहां पेयजल के लिए पाइप लाइन बिछाई गई थी लेकिन वह भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। अब पाइप लाइन भी नहीं दिखती है। विद्युत की कोई व्यवस्था न होने के कारण श्रद्धालु दीपक के धीमे उजाले में पूजा-पाठ करते हैं। इस सबके बावजूद श्रद्धालु बड़ी संख्या में आ रहे हैं। बस, भगवान भरोसे।पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने पर्यटन, तीर्थाटन को बढ़ावा देने के बड़े-बड़े दावे किए थे, किन्तु वे सभी कागजों तक सीमित रहे। वर्तमान भाजपा सरकार के सामने इन तीर्थस्थलों के विकास की कठिन चुनौती है। पर्यटन मंत्री श्री प्रकाश पंत ने तीर्थाटन को अलग कर योजना बनाने की बात कही है। वे इस दिशा में सक्रिय भी दिख रहे हैं लेकिन जब तक कोई ठोस योजना क्रियान्वित नहीं होती तब तक यात्रियों को परेशानियों से जूझना ही पड़ेगा।31

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