स्व. विश्वनाथ जी का पुण्य स्मरण
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स्व. विश्वनाथ जी का पुण्य स्मरण

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Oct 6, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Oct 2007 00:00:00

मातृभूमि की सेवा के लिए वे पुन: आएंगे”स्व.विश्वनाथ जी ने एक आदर्श प्रचारक की भांति जीवन की अन्तिम श्वांस तक मातृभूमि की अहर्निश सेवा की। वे आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु मुझे विश्वास है कि वे पुन: भारत माता के कष्टों को दूर करने के लिए इस पवित्र भूमि में जन्म लेंगे।”स्व. विश्वनाथ जी के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने उक्त उद्गार व्यक्त किए। श्री सुदर्शन गत 26 मई को दिल्ली स्थित रा.स्व.संघ मुख्यालय केशव कुंज में रा.स्व.संघ के दिवंगत प्रचारक स्व. विश्वनाथ जी की स्मृति में आयोजित श्रद्धाञ्जलि सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि “न त्वहं कामये राज्यं, न स्वर्ग न पुनर्भवम्; कामए दु:खतप्तानां मातृभूम्याऽर्तिनाशनम” यही उनके जीवन का मंत्र था और इसी की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व देश सेवा में अर्पित कर दिया। पूज्य सरसंघचालक ने कहा कि जब खालिस्तान आंदोलन के कारण पंजाब धधक रहा था, उस कठिन परिस्थिति में विश्वनाथ जी ने पंजाब के लोगों में शांति-भाईचारे और राष्ट्रीय एकता-अखण्डता की भावना मजबूत करने के लिए अथक परिश्रम किया। राष्ट्रीय सिख संगत का प्रारंभ उन्हीं के प्रयासों से हुआ। उन्होंने सदैव देश की भाषाई विविधता का सम्मान किया और वे जब भी पंजाब में प्रवास पर जाते तो वहां पंजाबी में ही बौद्धिक- व्याख्यान देते थे। भाषा झगड़े का नहीं, आत्मीयता स्थापित करने का सूत्र है, यह बात विश्वनाथ जी ने जन-जन में स्थापित की। श्री सुदर्शन ने स्वयंसेवकों का आह्वान किया कि वे स्व. विश्वनाथ जी से जुड़े प्रेरक संस्मरणों को तत्काल लिपिबद्ध कर दिल्ली संघ कार्यालय भेजें ताकि वे पुस्तक रूप में प्रकाशित हों और सदा के लिए भावी पीढ़ियों को विश्वनाथ जी के प्रेरक जीवन से प्रेरणा मिलती रहे।विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए कहा कि स्व. विश्वनाथ जी का जीवन तपस्वी- संत की भांति था। दिल्ली में संघ कार्य, शाखाएं प्रभावी बनीं तो इसके पीछे विश्वनाथ जी का अथक परिश्रम था। श्री सिंहल ने कहा, “1977 में दिल्ली प्रांत प्रचारक बनने के बाद मुझे विश्वनाथ जी का सान्निध्य मिला। मेरे और उनके विचारों में सदा समानता बनी रही, कभी विषमता नहीं आई। तत्कालीन पूज्य सरसंघचालक बालासाहब ने जब आह्वान किया कि संघ कार्य को सामाजिक रूप से व्यापक करना है तो विश्वनाथ जी ने इस आह्वान की पूर्ति के लिए रात-दिन परिश्रम किया। सेवा भारती का कार्य उनके परिश्रम से दिल्ली में प्रभावी बना। वे सेवा बस्तियों में शाखा प्रारंभ करने के प्रति बहुत आग्रही थे। मंदिरों की सुव्यवस्था के प्रति भी उनमें सदा चिंतन चलता था। झंडेवाला मंदिर का प्रबन्धन स्वयंसेवकों के हाथों में हो, इसके लिए भी उन्होंने सफल प्रयास किए। उन्होंने संबंधों के आधार पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं का निर्माण किया। उनके आदर्श प्रचारक जीवन का स्मरण प्रेरणा देने वाला है।”अ.भा. सेवा प्रमुख श्री प्रेमचन्द गोयल ने कहा, “मुझे 54 साल तक उनका सान्निध्य मिला। मेरे गांव में 1953 में संघ की एक विद्यार्थी बैठक में तत्कालीन प्रांत प्रचारक श्री माधवराव मूले के साथ विश्वनाथ जी आए थे। बैठक में श्री मूले ने मुझसे एक सवाल पूछा- पढ़ाई के बाद क्या करोगे? मैंने कहा, जो आप कर रहे हैं, वही करूंगा। बैठक के बाद विश्वनाथ जी ने मुझसे कहा- जो कहा है उसे सदा याद रखोगे। भूलोगे तो नहीं? और जब मैं प्रचारक निकल गया तो अक्सर वे मुझे मेरे वचनों का स्मरण कराते रहे। हम उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए प्राणपण से आगे बढ़ें, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”इतिहास संकलन योजना के संरक्षक ठाकुर राम सिंह ने स्व. विश्वनाथ जी के प्रति पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद कहा, “वे अमृतसर के उस खत्री वंश से थे जिससे कभी सिख गुरुओं का संबंध रहा था। गुरु अमरदास के वे वंशज थे। वे अमृतसर की पहली पीढ़ी के स्वयंसेवक थे। विद्यार्थी जीवन में ही 15-15 घंटे नित्य संघ कार्य में लगाना उनकी दिनचर्या थी। इसी का परिणाम था कि अमृतसर में विभाजन के पूर्व 150 शाखाएं, 2500 की औसत दैनिक उपस्थिति होती थी। मैं उस समय (1944-48) अमृतसर का विभाग प्रचारक था। तब 52 प्रचारकों की टोली निकली थी, उसमें से 8 प्रचारक प. पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा) भेजे गए। उसी टोली में विश्वनाथ जी मुल्तान के तहसील प्रचारक बने। बाद में वे वहां के जिला प्रचारक बने। 1947 में मुल्तान में जिहादी तत्वों ने देश विभाजन के लिए सबसे पहले उपद्रव प्रारंभ किया। विश्वनाथ जी ने मुल्तान और आस-पास के इलाकों के हिन्दुओं को बचाने के लिए रात-दिन एक कर दिया। श्रीगुरुजी के आह्वान कि अंतिम हिन्दू के भारत सुरक्षित आने तक स्वयंसेवक पाकिस्तान न छोड़ें, का विश्वनाथ जी ने निर्भयता से पालन किया।”कार्यक्रम में उपस्थित स्व. विश्वनाथ जी के बड़े भाई श्री जगदीश सहाय ने विश्वनाथ जी से जुड़े संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा, “अपनी पढ़ाई समाप्त करते ही उन्होंने घर छोड़ दिया। फिर घर आए नहीं, बहुत कहने पर घर आते तो रात में नहीं रुकते थे। अपनी व्यस्तता बताकर घर पर रात्रि विश्राम टाल जाते। लेकिन घर में जब भी सुख-दु:ख के प्रसंग आए, हमेशा वे घर वालों के साथ खड़े रहे। जब वे प्रचारक निकले तो हमारी मां बहुत परेशान रहने लगीं। उनका कहना था- “भारत माता मेरी माता है, अब सिर्फ एक मां ही मेरी मां नहीं बल्कि सब माताएं मेरी माताएं हैं।” देश विभाजन के समय वे भारत नहीं लौटे। महीनों तक कुछ खबर नहीं आई। मां को बहुत चिन्ता होने लगी। हमने उन्हें खोजना प्रारंभ किया। कुछ महीने बाद पता चला कि वे मोगा (पंजाब) में हैं।”श्री सहाय ने आगे कहा, उनका जीवन देश के लिए समर्पित था। हमें इस बात का गर्व है कि वे हमारे परिवार में जन्मे। हमें गर्व है कि वे रा.स्व.संघ के स्वयंसेवक थे।क्षेत्र संघचालक डा. बजरंग लाल गुप्त ने स्व. विश्वनाथ जी को अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए कहा, “जब वे हमारे सह क्षेत्र प्रचारक नियुक्त हुए तो मैं हरियाणा प्रांत कार्यवाह था। हरियाणा में लक्ष्य के अनुसार संघ कार्य का व्याप न होने से कार्यकर्ताओं में निराशा थी। अपने पहले मार्गदर्शन में ही उन्होंने हमारी निराशा दूर कर दी। उनमें कार्यकर्ताओं की परख की अद्भुत क्षमता थी। वे इतने सहज थे कि छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी उनसे अपनी बात नि:संकोच कह सकता था। प्रचारक जीवन के नैतिक मानदण्डों के प्रति भी वे परम आग्रही थे।”रा.स्व.संघ, दिल्ली प्रांत संघचालक श्री रमेश प्रकाश ने कहा, “उनसे हमें हमेशा प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला। कठिन परिस्थिति में मन को समाधान देने वाली उनकी बातें हमेशा याद रहेंगी। प्रचारक के रूप में भी मैंने उनके साथ काम किया। जब वे फिरोजपुर जिला प्रचारक थे तो मैं भठिंडा जिला प्रचारक था। आपातकाल के दिनों में पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी, इतनी सूझ-बूझ व सावधानी वे रखते थे।”दिल्ली प्रांत कार्यकारिणी के सदस्य श्री सत्यनारायण बंसल ने कहा कि उनका व्यक्तित्व तेजोमय था, उनमें अपूर्व क्षमता थी, अपने निर्णय पर वह दृढ़ रहते थे। अपने 61 वर्ष के प्रचारक जीवन में उन्हें जो भी दायित्व मिला, उन्होंने सभी में यश प्राप्त किया।राष्ट्र सेविका समिति की अ.भा. सह कार्यवाहिका श्रीमती आशा शर्मा ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा, “वे देश के सैकड़ों परिवारों के सदस्य जैसे थे। मेरे परिवार पर उनकी स्नेह छाया सदा बनी रही। घर में कभी कोई समस्या आई तो विश्वनाथ जी सदैव साथ खड़े रहते थे। उनकी कार्यशैली अत्यंत प्रभावशाली थी। उनका जाना सचमुच संगठन के लिए बड़ी क्षति है।”रा.स्व.संघ के क्षेत्र प्रचारक श्री दिनेश चन्द्र ने विश्वनाथ जी के अंतिम कालखण्ड, सेवा-सुश्रुषा आदि का विवरण दिया। उन्होंने कहा कि “स्व. विश्वनाथ जी ने उत्तर क्षेत्र में संघ कार्य के सुदृढ़ीकरण के लिए मेरा अमूल्य मार्गदर्शन किया। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा।” सभा में बड़ी संख्या में उपस्थित स्वयंसेवकों ने स्व. विश्वनाथ जी के अस्थिकलश पर श्रद्धासुमन चढ़ाए और उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। श्रद्धांजलि सभा का संचालन श्री संतोष तनेजा ने किया!हिन्दू राइटर्स फोरम के अध्यक्ष डा. के.वी. पालीवाल ने स्व. विश्वनाथ जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा है कि उनका निधन व्यक्तिगत रूप से मेरे एवं हिन्दू राइटर्स फोरम के लिए अपार क्षति है। प्रतिनिधि36

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