|
डा. मुरली मनोहर जोशी ने “विजय प्रपत्र” का लोकार्पण करते हुए कहा-गुरु गोविन्द सिंह ओंकार के प्रतिरूप थेविजय प्रपत्र का लोकार्पण करते हुए डा. मुरली मनोहर जोशी। साथ में हैं (बाएं से) डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री, श्री बी.एल. शर्मा “प्रेम”, सरदार भूपिन्दर सिंह, सरदार एस.एस. बाजवा, सरदार जगजीवन जोत सिंह आनन्द एवं सरदार हरजीत सिंह ग्रेवालपुस्तक परिचयपुस्तक का नाम : विजय प्रपत्रलेखक : जगजीवन जोत सिंह आनन्दमूल्य : 10 रुपए, पृष्ठ : 428प्रकाशन : हरदीप पब्लिकेशन, 303/4, गुरुनानक एन्क्लेव, रेसकोर्स, देहरादून, फोन-0135-2624554ए औरंगजेब! तेरी शपथ, तेरा फरेब हैऐ औरंगजेब!तेरी शपथ, तेरा फरेबअविश्वसनीयनि:सन्देह निन्दनीयसामने उपस्थितमान ली शपथ खुदा कीझूठ था सबछल थारब, परमेश्वर नेकमूढ़!”खुदा” सिर्फ एक।नहीं भरोसा तुच्छ मात्र भीउस नारकीय छल काउस सैन्य दल का,जहां सेना और सेनापति होंअसत्य के दल-दल में पतित।जो नर मानेतेरी विश्वसनीय सीशपथ, पाक कुरान की,बहुत कष्टदायक होगीयातना जहान की।हरि के राजदायिनीपक्षी के साये नीचेजोर नर आताउस पर पड़ता नहीं प्रभावतुझ जैसे काक का।जो जाए शरण,महाध्यान में…. बैठ जाएपृष्ठ पर उस विराट….. व्याघ्र की,नहीं लांघ पाते समीप से भीमृग, भेड़…. पृष्ठ श्रृंग।”भारत एक महान देश है। जिन्होंने भारत में जन्म लिया, वे धन्य हैं। फिर यहां के महापुरुषों के बारे में क्या कहना? दुर्भाग्य से देश के कुछ विकृत सोच वालों ने लेकिन हमने अपने महापुरुषों को हीन माना। उनके लिए अश्लील शब्दों का प्रयोग किया। 1967 से बच्चों को यह पढ़ाया जाता था कि गुरु तेग बहादुर एवं छत्रपति शिवाजी लुटेरे थे। हमने जब ऐसी बातें हटाने की बात की तो कहा गया कि हम शिक्षा का भगवाकरण करना चाहते हैं।” यह कहना था पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता डा. मुरली मनोहर जोशी का। डा. जोशी गत 24 जून को नई दिल्ली में सद्य:प्रकाशित पुस्तक “विजय प्रपत्र” के लोकार्पण समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अपने महापुरुषों के बारे में ऐसी टिप्पणियां करना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसलिए मैंने मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में ऐसी टिप्पणियों को पाठपुस्तकों से निकालने का आदेश दिया था। हमारे इस निर्णय का समर्थन न्यायालय ने भी किया था। डा. जोशी ने सिख पंथ के दसवें गुरु गोविन्द सिंह को एक अद्भुत विभूति बताते हुए कहा कि वे “ओंकार” के प्रतिरूप थे। उन्होंने जफरनामा लिखकर औरंगजेब के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई थी। आज जफरनामा के सन्देश को समझने की आवश्यकता है। जफरनामा त्रिशताब्दी समारोह समिति के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सरदार भूपिन्दर सिंह ने की। विशिष्ट अतिथि थे महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्व-विद्यालय, अजमेर के कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा और विशेष अतिथि के रूप में दिल्ली के उप महापौर सरदार एस.एस. बाजवा उपस्थित थे।इस अवसर पर पूर्व सांसद श्री बी.एल. शर्मा “प्रेम” समिति के संयोजक प्रो. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री, महासचिव सरदार हरजीत सिंह ग्रेवाल सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे। जफरनामा मूल रूप से फारसी में है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है “विजय की चिट्ठी”। यह चिट्ठी आज से 300 वर्ष पूर्व गुरु गोविन्द सिंह जी ने आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना के बाद तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब को लिखी थी। इसमें औरंगजेब की झूठी कसमों एवं उसके कुशासन की चर्चा है। जफरनामा में मुगलों के अत्याचार, उनके राजनीतिक दृष्टिकोण, मुल्ला-मौलवियों के तौर-तरीके आदि की भी चर्चा है। गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा औरंगजेब को फारसी में लिखे पत्रों का एक दूसरा संग्रह “हिकायतनामह” के नाम से है। हाल ही में हिकायतनामह एवं जफरनामा का फारसी से हिन्दी में अनुवाद ईरान में जन्मे सरदार जगजीवन जोत सिंह आनन्द ने किया है। लेखक अरबी एवं हिन्दी के अच्छे जानकार हैं। उनके पिताजी कुछ दशक पहले ईरान में बस गए थे। औरंगजेब के कालखण्ड में फारसी शासकीय भाषा थी। गुरु गोविन्द सिंह जी इस भाषा में भी निष्णात थे। सो उन्होंने औरंगजेब को न्याय-मार्ग पर चलने के लिए सावधान करते हुए फारसी में ही पत्र भेजे। दाई ओर जफरनामा की कुछ पंक्तियां दी जा रही हैं। प्रतिनिधि16
टिप्पणियाँ