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तिब्बत को आजाद करोगत 23-24 जून को नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में फ्रेंड्स आफ तिब्बत ने दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन करके तिब्बत की आजादी की मांग एक बार फिर बलपूवर्क उठाई। फ्रेंड्स आफ तिब्बत उन युवाओं, समाजकर्मियों का संगठन है जो भावात्मक रूप से तिब्बत से जुड़े हैं और चीन से इसे मुक्त कराने के लिए समय-समय पर अपने कार्यक्रमों के जरिए प्रयास करते रहते हैं।23 जून की प्रात: संगोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक श्री राजीव वोरा ने कहा कि तिब्बत से भारत के लोगों का भावात्मक जुड़ाव रहा है। परम पावन दलाई लामा भारतीयों के लिए भी पूज्य हैं। तिब्बत को आजादी मिलकर रहेगी और उसके लिए मन में एक भावना सदा जीवन्त रहनी चाहिए। श्री वोरा ने कहा कि तिब्बत की संस्कृति वही है जिसका महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में उल्लेख किया था। तिब्बत की संस्कृति अहिंसा की संस्कृति है जिस पर भौतिकवादी ताकतों ने हमला किया है। मूलत: उत्तराखण्ड की वरिष्ठ समाजसेविका और गांधीवादी चिंतक सुश्री राधा बहन भट्ट ने इस अवसर पर कहा कि उन्हें आज भी अपने बचपन के वो दिन याद हैं जब वे सीमा के उस पार तिब्बत के मंदिरों में दर्शन के लिए जाया करते थे। तिब्बत की आजादी की मांग अध्यात्म और धर्म से जुड़ी है।संगोष्ठी के दौरान प्रसिद्ध उद्योगपति, पर्वतारोही और रंगमंचकर्मी श्री विजय कृष्णा ने चित्रों के माध्यम से अपनी सितम्बर, 2006 की तिब्बत यात्रा का वर्णन किया। श्री कृष्णा ने संगोष्ठी में उपस्थित तिब्बती मूल के युवाओं के सामने जब वहां की वादियों, नदियों, पर्वतों और बौद्ध मठों के चित्र पर्दे पर दिखाए तो माहौल बहुत भावुक हो गया। उन्होंने तिब्बत-चीन-भारत के सम्बंधों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया और तिब्बती अध्यात्म और बौद्ध दर्शन के प्रभाव को भी ऐतिहासिक चित्रों के माध्यम से सबके समाने रखा।संगोष्ठी के इस उद्घाटन सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं तिब्बत देश पत्रिका के सम्पादक श्री विजय क्रांति ने किया। दो दिन तक चली इस संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने एक स्वर से तिब्बत की आजादी की मांग गुंजाई। प्रतिनिधि30
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