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राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से सेतु समुद्रम नहर प्रकल्प मार्ग का पुनर्निर्धारण होराज्यसभा सदस्य और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी भाजपा द्वारा सेतु समुद्रम प्रकल्प की समीक्षा हेतु गठित 6 सदस्यीय समिति के अध्यक्ष हैं। उन्होंने 24 मार्च को प्रधानमंत्री को एक लंबा पत्र लिखकर इस प्रकल्प की खामियों और पौराणिक श्रीराम सेतु को होने वाली क्षति से अवगत कराया है। इस सम्बंध में हमने पिछले अंक में कुछ आरम्भिक जानकारी प्रकाशित की थी। यहां उसी का विस्तार दिया जा रहा है। 24 मार्च, 2007 को लिखे इस पत्र में डा. जोशी ने लिखा है कि “मैं 19 से 22 मार्च तक चेन्नै और रामेश्वरम के दौरे पर गए भाजपा दल द्वारा चिन्हित किए कुछ तथ्यों की जानकारी देना चाहता हूं। करोड़ों लोगों (हिन्दू, मुस्लिम और ईसाइयों) के आस्था केन्द्र, जिसे सेतु मंदिर, श्रीराम सेतु, आदि सेतु, आदम सेतु आदि के नाम से जाना जाता है, को ध्वस्त करने सम्बंधी गंभीर आशंका लोगों में पैदा हुई है।” डा. जोशी के पत्र का अनूदित स्वरूप इस प्रकार है -“सबसे पहले तो मैं यह बता देना चाहता हूं कि भाजपा इस प्रकल्प की विरोधी नहीं है, पर अपने देश की प्राचीनतम सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को लेकर चिंतित है, जो मेरे अनुसार वैश्विक विरासत घोषित की जानी चाहिए। हम मानते हैं कि अपनी प्रचुर और विशिष्ट विरासत का संरक्षण हमारे देश की आर्थिक प्रगति जितना ही महत्वपूर्ण है। हम जब वहां दौरे पर थे तब विद्वानों, पत्रकारों, वैज्ञानिकों, पूर्व नौसेना अधिकारियों, मछुआरों के अधिवक्ताओं, स्थानीय नेताओं और पर्यावरण क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं और धार्मिक क्षेत्र के अनेक लोगों से मिले थे, उन्होंने कुछ तथ्यों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया। इससे नहर का मार्ग, उसका बिना सोचे-समझे निर्धारण और बिना उचित अध्ययन के काम शुरू किए जाने पर सवाल खड़ा हुआ है।”वस्तुत: 19 मार्च, 2007 की स्थिति, जैसी कि सरकारी अंत:क्षेत्र पर दिखाई गई है, के अनुसार पाक बे- प्रथम खण्ड में 81.84 प्रतिशत खनन किया जा चुका है और आदम सेतु पर 1.42 प्रतिशत काम हो चुका है। यद्यपि पाक वे- द्वितीय खण्ड में काम अभी शुरू होना है। यहां 48 किमी. लम्बे सागर शैलों से निर्मित सेतु के बारे में सब जानते हैं। 1747, 1788 और 1804 के नक्शों सहित नासा और भारतीय दूर संवेदी उपग्रह चित्रों में इसकी पुष्टि होती है। आस्ट्रेलियाई वनपस्तिशास्त्रविद् द्वारा तैयार 1788 का नक्शा सरस्वती महल लाइब्रोरी, तंजौर में उपलब्ध है, यह रामार सेतु (राम का सेतु) दर्शाता है। 1747 का नक्शा रामनकोइल-1 (रामेश्वरम् में राम मंदिर) दर्शाता है।”मुझे बताया गया है कि मशीनों की खराबी के कारण रुका काम एक सप्ताह बाद शुरू हो जाएगा। इसलिए मैं आपकी अविलम्ब दखल की प्रार्थना करता हूं।”डा. जोशी इस प्रकल्प पर तुरंत काम रोकने का अनुरोध करते हुए लिखते हैं- “मैं इस सेतु पर आगे का काम तुरंत रुकवाने का अनुरोध करता हूं ताकि इस प्रकल्प का विस्तृत वैज्ञानिक, तकनीकी, रणनीतिक पुनरीक्षण हो और रामनाथपुरम् अदालत के न्यायाधीश की सलाह के अनुसार बहुआयामी विशेषज्ञ दल गठित करके सागरीय अध्ययनों और भूस्तर पर प्रभावों का ध्यान रखते हुए नहर मार्ग का पुन: निर्धारण किया जाए। इसके निम्नलिखित कारण हैं-जो तबाही 16 दिसम्बर, 2004 को सुनामी ने भारतीय तटों पर की थी उससे बचने के लिए सुनामी निरोधक ढांचा शामिल करते हुए इस प्रकल्प की योजना तैयार की जानी चाहिए थी। पिछले सुनामी में मलक्का स्ट्रेट, पार्क स्ट्रेट और मन्नार की खाड़ी के क्षेत्रों में 2 लाख लोग मारे गए थे।विशेषज्ञों से सलाह किए बिना, गंभीर पर्यावरणीय और सुरक्षा प्रभावों का अंदाजा लगाए बिना, विस्तृत वैज्ञानिक आकलन और सुनामी से रक्षा की चिंता किए बिना ही इस मार्ग का निर्धारण किया गया है।तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष का गैरजिम्मेदाराना कार्य, जिन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा 8 मार्च, 2005 को व्यक्त की गईं शंकाओं का बहुत हल्केपन और अपूर्ण तरीके से जवाब दिया।सुनामी प्रभाव को ध्यान में रखते हुए पुनर्मूल्यांकन और वैकल्पिक मार्ग तलाशने का आदेश दें!नीचे दिए गए नक्शे में साफ देखा जा सकता है कि ऐसे 5 वैकल्पिक मार्ग 1961 के बाद से ही तलाशे गए थे, जिनके कारण राम सेतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचता था। वास्तव में तो संचालन समिति द्वारा सुझाया मार्ग (क्र.4) ही इस प्रकल्प के लिए तय किया जाना चाहिए था। इसका कोई कारण नहीं बताया गया कि आखिर यह मार्ग क्यों अचानक अस्वीकार कर दिया गया और नक्शे पर यूं ही एक रेखा अंतरराष्ट्रीय जल सीमा के बिल्कुल पास खींच दी गई है।”प्रो.टाड एस. मूर्ति द्वारा व्यक्त गंभीर चिंता और अन्य वैज्ञानिक विषय”प्रो. टाड एस. मूर्ति के मत के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा उठाए गए सवाल और निर्धारित मार्ग पर सुनामी के प्रभाव का आकलन न करना चिंताजनक है। प्रो. मूर्ति सुनामी विषय के विश्वविख्यात विशेषज्ञ हैं और भारत सरकार ने उन्हें सुनामी चेतावनी तंत्र स्थापित करने को कहा है। मगर उनके 21 फरवरी, 2007 के ई-मेल पर लिखी गई बातों से लगता है कि उनके मत अनदेखे कर दिए गए, जो तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट (टी.पी.टी.) के अध्यक्ष के व्यवहार पर गंभीर सवाल खड़े करता है।”कर्तव्य का सही पालन न करने की जांच हो”8 मार्च, 2005 को भारत सरकार द्वारा उठाए गए गंभीर सवालों का जवाब टी.पी.टी. के अध्यक्ष ने 30 जून, 2005 को दिया। और दो दिन बाद ही बिना विस्तृत पुनर्समीक्षा किए प्रकल्प का उद्घाटन हो गया। ऐसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के प्रकल्प को तैयार करने में ऐसी असावधानी और नहर के वर्तमान मार्ग पर काम बढ़ाने से पूरे केरल के लिए उत्पन्न खतरे को पूरी तरह नजरअंदाज करना गंभीर चिंता खड़ी करता है। मेरी दृष्टि में, जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही बरतने वाले हर व्यक्ति की जांच हो। चिंता इस बात की भी है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रकल्प के पुनर्मूल्यांकन की जरूरत नहीं समझी और टी.पी.टी. अध्यक्ष द्वारा दिए अटपटे जवाबों पर विशेषज्ञ राय नहीं ली। अपने एक जवाब में टी.पी.टी. अध्यक्ष कहते हैं- “नहर का वर्तमान मार्ग खनन स्थल और खनन किए गए मलबे के बीच दूरी कम रखने को ध्यान में रखकर स्वीकारा गया है। संचालन समिति द्वारा सुझाया मार्ग इस मार्ग से कुल 12 किमी. दूर शिंग्ले द्वीप के पास से गुजरता है।” यह गलत प्रस्तुतिकरण इस तथ्य को छुपाता है कि वैकल्पिक मार्ग वास्तव में सागरीय यातायात के लिए दूरी कम करता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि एन.आई.ओ.टी. द्वारा अध्ययन के दौरान लिए गए नमूनों की विस्तृत भूविज्ञानी जांच, परमाणु खनिज अवयवों सहित, की जानी चाहिए थी। टी.पी.टी. अध्यक्ष द्वारा किसी तरह की जांच न किया जाना, कर्तव्य की जनदेखी है।”यह प्रकल्प सागर के भीतर नहर बनाने का है”चूंकि यह सेतु समुद्रम प्रकल्प पनामा या स्वेज नजर की तरह भूमि पर बहती नहर नहीं है, अत: इसमें बहुत सावधानी जरूरी है। सागर के भीतर तेज बहाव, बार-बार आने वाले चक्रवातों और सुनामी का खतरा बना रहता है। अगर वर्तमान मार्ग में बदलाव नहीं किया जाता है तो केरल की तबाही की संभावना को देखते हुए इसकी बहुआयामी समीक्षा फिर से होनी चाहिए। मुझे यह बताते हुए खेद हो रहा है कि ऐसी कोई समीक्षा नहीं की गई है।”केरल तट को बचाने के लिए नहर मार्ग का पुनर्निर्धारण जरूरी”इस मार्ग को थोड़ा उत्तर पश्चिमी दिशा की तरफ से ले जाना निश्चित ही अगली सुनामी के प्रभाव को कम कर देगा। राम सेतु के बीच से गुजरते मार्ग को निरस्त कर देने से यह सेतु अगली सुनामी के समय एक अवरोधक की तरह खड़ा रहेगा। सेतु के बने रहने से दक्षिण केरल के पश्चिमी तट पर खतरा कम हो जाएगा।”सेतु मंदिर-वैश्विक विरासत और सहस्राब्दी पुराना स्मारक”नौवहन मंत्री द्वारा राम सेतु पर चिंता प्रकट करने वालों को राष्ट्रविरोधी कहे जाने का मैं कड़ा विरोध करता हूं। प्रस्तावित नहर मार्ग, जो राम सेतु को तोड़ने वाला है, उन करोड़ों लोगों की आस्था को चोट पहुंचाता है जो राम सेतु को सेतु मंदिर की तरह देखते हैं, एक तीर्थस्थल, एक पवित्र स्मारक, एक मंदिर की तरह मानते हैं। इस वैश्विक विरासत स्तर के प्राचीनतम स्मारक को ढहाने में भागीदार होना “अधर्म” है और भारतीय परंपराओं का अपमान करने जैसा है। यह शासन की जिम्मेदारी है कि इस स्मारक, इस सभ्यतामूलक विरासत का रक्षण और संरक्षण हो। भारतीय संविधान की धारा 51ए ने इसे अनिवार्य बताया है।भारत के परमाणु कार्यक्रम और सागर में खनिज संसाधनों की खोज पर प्रभावडा. जोशी ने वैज्ञानिकों से हुई अपनी बातचीत का संदर्भ देते हुए आगे लिखा है- “वैज्ञानिकों से बातचीत के दौरान मुझे ज्ञात हुआ कि रामसेतु एक प्राचीन भूगर्भीय रचना है और महासागरीय बहाव के कारण शैल निरंतर बनते रहते हैं और केरल तट पर थोरियम भण्डार निकट होने के कारण पूरे क्षेत्र के भूवैज्ञानिक महत्व का अध्ययन भारत की परमाणु कार्यक्रम नीति को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।रणनीतिक और सागरीय प्रभाव”जब रामसेतु को नुकसान न पहुंचाने वाले कई वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हैं तो वही मार्ग क्यों तय किया गया जो राम सेतु को बीच से काटते हुए गुजरता है? न पर्यावरणविदों के विचार सुने गए, न भूस्तरविदों और सागरविज्ञानियों के। तट पर रहने वालों की चिंताएं भी नजरअंदाज कर दी गईं। क्या इस प्रकल्प के उद्घाटन से पहले भूरणनीतिक सागरीय प्रभावों पर भारतीय नौसेना से सलाह ली गई? आखिर उस अवरोधक को क्यों तोड़ा जा रहा है जिसने वास्तव में पिछली सुनामी के समय भारतीय तटों की रक्षा की थी? उस अवसर का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा जो जल मार्गों की चौकसी में भारत की भूरणनीतिक जिम्मेदारी को सिद्ध कर देता? विदेश नीति में भी एक भारी भूल हुई है, भारत सरकार ने मन्नार की खाड़ी में ऐतिहासिक जलराशि पर अपने अधिकार को पुनस्स्थापित नहीं किया। ये अधिकार आज तक की सभी सरकारें निरंतर जताती आ रही हैं। वर्तमान (भारत) सरकार लगता है कि अमरीकी हितों की पिछलग्गू बनी हुई है और इसलिए बिना विचारे अंतरराष्ट्रीय जल सीमा के बहुत पास से एक नहर मार्ग तय कर रही है।निम्नलिखित तथ्यों पर नजर डालें-1970-80 के दौरान भारत और श्रीलंका दोनों ने ही जलराशि को “ऐतिहासिक” के रूप में पंजीकृत करने की कोशिश की थी।अमरीका इस दावे को मान्य नहीं करता और निरंतर इन दावों के खिलाफ मत व्यक्त करता रहा है।अब, भारत अपनी ओर से जल में इस सेतु को तोड़ने जा रहा है, यानी भारत अपने ही दावे से पलट रहा है।इस ऐतिहासिक महत्व की जलराशि में अमरीका की लगातार दखलंदाजी को देखते हुए साफ है कि वह भारत को अमरीकी हितों के अधीन रखते हुए उससे होरमुज स्ट्रेट के सागरीय यातायात की चौकसी कराना चाहता है। हमें ऐसा नहर मार्ग अपनाना चाहिए जो अमरीका को इस तरह का कोई मौका ही न दे। हमें अंतरराष्ट्रीय जल सीमा के बहुत निकट का कोई भी मार्ग नहीं चुनना चाहिए क्योंकि वर्तमान मार्ग नहर के दाएं और बाएं तटों पर तट रक्षकों का निर्विरोध आवागमन सुनिश्चित नहीं करता।पत्र के अंत में डा. जोशी ने पुन: प्रधानमंत्री से अविलम्ब दखल देकर इस प्रकल्प को सभी चिंताओं का समाधान करते हुए लागू करने की अपील की है। डा. जोशी ने अपने पत्र के साथ कुछ संलग्न भी जोड़े हैं, जो इस प्रकार हैं-संलग्न-1: प्रो. टाड एस. मूर्ति के विचारप्रो. मूर्ति कहते हैं- “26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में आई सुनामी के दौरान केरल का ठीक दक्षिणी हिस्सा आमतौर पर सुनामी के बड़े प्रकोप से बच गया था। इसका प्रमुख कारण था कि सुमात्रा क्षेत्र से आई सुनामी श्रीलंका के दक्षिण से होते हुए कुछ मात्रा में उत्तरी दिशा की ओर मुड़ गई और इसने केरल तट के मध्य हिस्से पर प्रभाव डाला। चूंकि सुनामी दिशा बदलाव की प्रक्रिया के दौरान गहन गुरुत्वाकर्षी लहर होती है, इसे जो लम्बा मोड़ लेना पड़ा उसके कारण दक्षिण केरल तट बच गया। दूसरी ओर, सेतु नहर को गहरा करने से सुनामी को सीधी चोट का मार्ग मिल जाएगा और यह दक्षिण केरल पर प्रभाव डाल सकती है। 2005 के आखिरी में चेन्नै में मेरी श्री रघुपति (मेरी जानकारी के अनुसार इस प्रकल्प के प्रमुख) से सौहार्दपूर्ण बातचीत हुई थी और उसमें मैंने यह बिन्दु उठाया था। मैंने उनसे सेतु नहर के प्रवेश मार्ग में बंगाल की खाड़ी की ओर थोड़ा परिवर्तन करने का अनुरोध किया था ताकि भविष्य में आने वाली सुनामी के दौरान, उसकी ऊर्जा प्रमुखता से सेतु नहर की ओर नहीं बढ़ेगी। श्री रघुपति ने मुझसे कहा कि वे इस मामले को देखेंगे। जब श्री रघुपति जैसा वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी कुछ कहता है तो मैं उस पर भरोसा करता हूं और इस सम्बंध में मेरी अन्य कोई चिंता नहीं है।”प्रो. मूर्ति ने यह भी उल्लेख किया -“टी.पी.टी. का यह मानना कि मार्ग पुनर्निर्धारण की कोई आवश्यकता नहीं है, से मैं इससे पूरी तरह असहमत हूं। मैंने समस्या का पूरा विश्लेषण किया है।” सेतु समुद्रम नहर में कई चीजें वैनकूवर द्वीप की अल्बरनी नहर से मेल खाती हैं और इसी कारण मुझे चिंता है। 28 मार्च, 1964 को अलास्का में आए भूकंप से उठी सुनामी का सबसे भीषण प्रभाव अल्बरनी नहर के सिरे पर हुआ था जो भूमि पर बहुत भीतर था, खुले तट पर नहीं, जैसा कि सबने अनुमान लगाया था। बाद में मैंने इसका कारण बताया था क्वार्टर लहर प्रतिध्वनि वर्धन।””नेरी” (पर्यावरण) और एन.आई.ओ.टी. (समुद्र की गहराई) की समीक्षाओं में सुनामी के प्रभाव पर ध्यान नहीं दिया गया (जो 26 दिसम्बर, 2004 को आई थी यानी “नेरी” के आकलन के बाद)। ध्यान रहे कि इस क्षेत्र में सुनामी ने सागर की गहराई के स्वरूप को बदल दिया था। मुख्य नमूनों की विस्तृत भूगर्भीय जांच की जाए ताकि परमाणु व अन्य खनिज अवयवों की संभावना का पता चले।संलग्नक 2: सेतु मंदिर पर रामायण और महाभारत के अंशरामायण में वाल्मीकि राम सेतु के निर्माण पर विस्तार से बताते हैं। महान ग्रंथ महाभारत में राम सेतु के लिए नल सेतु नाम प्रयोग किया गया है। नलसेतु के बारे में वेदव्यास कहते हैं-“…जो आज भी धरती पर नल सेतु के नाम से लोकप्रिय है, पर्वत समान है, भगवान राम के प्रति श्रद्धा के कारण आज भी खड़ा है (नल विश्वकर्मा के पुत्र थे)।”मद्रास प्रेसीडेंसी (1803) का शासनपत्र दर्शाता है कि इस सेतु को नल सेतु या राम सेतु कहा जाता था। 1480 तक इसने वास्तव में सीलोन को भारत से जोड़ा हुआ था। एक तूफान के कारण सेतु थोड़ा सा टूट गया और तब पैदल आवागमन रुक गया।संलग्नक-3: देश के परमाणु कार्यक्रम और सागर के भीतर खनिज संसाधनों की खोज पर प्रभावभाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर का अन्त:क्षेत्र बताता है-“वर्तमान में भारतीय थोरियम भण्डार 358,000 जी.डब्ल्यू. प्रतिवर्ष की विद्युत ऊर्जा है और अगली शताब्दी या इससे भी अधिक की बिजली आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है। यू-233/थो.232 आधारित ब्राडर रिएक्टर अभी निर्माणाधीन है और भारतीय परमाणु कार्यक्रम की अंतिम थोरियम उपयोग स्थिति में प्रमुख भण्डार की तरह काम करेगा।” वैज्ञानिकों का एक दल सी.एस.आई.आर. (नई दिल्ली) के डा. वी.जे. लवसन के नेतृत्व में क्षेत्र में अन्य अवयवों पर अध्ययन कर रहा है, उसके अनुसार अकेले लगभग 40 मिलियन टन ट्राइटेनियम 500 कि.मी. तट क्षेत्र में जमा हो गया है। दिसम्बर, 2004 की सुनामी ने सागर के भीतर की संरचना बदल दी है। अत: इस प्रकल्प से जुड़े सभी मार्ग प्रारूपों पर पुन: विचार हो और यह खनिज संसाधनों, जो भारत के परमाणु कार्यक्रम में महत्वपूर्ण हैं, का ध्यान रखते हुए हो। रामसेतु के निकट केरल की ब्लैक थोरियम रेत से निकलने वाली प्राकृतिक रेडियोधर्मिता स्थानीय आबादी में डी.एन.ए. उत्परिवर्तन दर में तेजी ला रही है। इन नए उत्परिवर्तनों में से ज्यादातर ने उसी डी.एन.ए. स्थिति पर चोट की है जो मानव के उदय के पिछले कम से कम 60,000 सालों में स्वाभाविक रूप से उत्परिवर्तित हुई थी।संलग्नक -4 : सेतु समुद्रम नहर प्रकल्प के रणनीतिक प्रभावअंतरराष्ट्रीय और ऐतिहासिक जलराशि में अंतर करने वाले अमरीकी नौसेना के निम्नलिखित कार्य निर्देशों पर एक नजर डालें- “अगस्त, 1976 का कानून सं. 80 सरकार को अधिकार देता है कि वह जलराशि को ऐतिहासिक घोषित करे। जून, 1979 का कानून सं. 41- श्रीलंका तट और सीमा के बीच पाक वे का जल अंतरराष्ट्रीय जलराशि के रूप में माना गया; तट और सागरीय सीमा के बीच मन्नार की खाड़ी की जलराशि ऐतिहासिक जलराशि मानी गई। यह दावा अमरीका द्वारा मान्य नहीं किया गया है। 1993, 1994 और 1999 में मन्नार की खाड़ी में प्रभावशाली अभियान क्रियान्वित किए थे।यह समझने की जरूरत है कि भारत को इस ऐतिहासिक जलराशि में सागर में गुजरने वाले जहाजों, सागरीय व्यापारियों सहित “केरल रीफ” और “एल्गी”, पर्यावरणीय सम्पदा आदि, जो लाखों लोगों को आजीविका देती है, की रक्षा के लिए अपनी रणनीतिक जिम्मेदारी जाहिर करनी चाहिए। सेतु समुद्रम प्रकल्प के अंतर्गत 32,000 टन भार वाले जहाज ही इस नहर से गुजर सकेंगे। हालांकि अंतरराष्ट्रीय नौवहन मार्ग का उपयोग करने वाले ज्यादातर जहाज भारी वजन के होते हैं, अत: वे इस नहर से नहीं गुजर पाएंगे। ऐसे में इस प्रकल्प की आर्थिक उपयोगिता क्या है? क्या यह प्रकल्प केवल हल्दिया/पारादीप/विशाखापट्टनम से तूतीकोरिन या फिर फीडर भण्डारण जहाजों तक कोयला पहुंचाने वाले जहाजों के लिए ही बनाया गया है? एक अन्य पहलू है-“अवरोध रहित नहर”। क्योंकि नहर के दोनों सिरों पर किसी तरह की रोक या दीवार नहीं खड़ी की जाएगी तो कोई भी बड़ी लहर इस नहर को तहस-नहस कर देगी। तब इस पर लगाए जाने वाले 2,000 करोड़ रुपए का क्या होगा? पता चला है कि खनन यंत्रों के लिए अक्तूबर से दिसम्बर के बीच काम करना असंभव होगा क्योंकि तब चक्रवात का मौसम रहता है। तेज हवाएं और ऊंची लहरें चलती हैं। उस वक्त नहर की देखरेख की बजाय प्रकृति माता की शक्ति से संघर्ष ही होता रहेगा।9
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