चीनस्य बुद्ध:, बुद्धस्य भारतम्-2
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चीनस्य बुद्ध:, बुद्धस्य भारतम्-2

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Aug 4, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Aug 2007 00:00:00

तरुण विजयललक और लालित्य हिन्दू, हिन्दू? शे, शे!!विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों प्रो. यांग वेन वू, प्रो. शे यांग, प्रो. लुओ झू डांग और श्री फेन मिंग शिंग के साथ लेखकपण्डा वन में श्रीमती इंदिरा गांधी की उक्ति वाला शिलापट्टसिचुआन का विश्व प्रसिद्ध पण्डासिचुआन विश्वविद्यालय परिसर में लेखकसिचुआन विश्वविद्यालय के सभी परिसर यदि शामिल किए जाएं तो चिक्चियांग नदी के किनारे 4.7 वर्ग किलोमीटर में यह फैला है और विभिन्न विद्यालय तथा भवन 27 लाख वर्ग मीटर बनाते हैं। विश्वविद्यालय से 37 अकादमिक पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। इसके पुस्तकालय में 48 लाख पुस्तकें और अन्य शीर्षक हैं। 70 हजार विद्यार्थी, 969 प्रोफेसर (12 हजार कुल प्राध्यापक) और 162 स्नातकोत्तर अकादमिक कार्यक्रम हैं। यहां मेडिकल, इंजीनियरिंग, कला, सामाजिक विज्ञान एवं विज्ञान के अलग-अलग महाविद्यालय है। कुल मिलाकर एक विद्या संसार।सिचुआन नये चीन के सर्जक तंग शिआओ फंग का जन्म स्थान है तो विश्व प्रसिद्ध पण्डा भी यहां के आरक्षित वनों में पाए जाते हैं। यहां के एक प्राध्यापक मित्र प्रो. लुओ झू डांग हमें पण्डा वन उद्यान घुमाने ले गए तो वहां की सफाई और रीति सम्मत कामकाज देखकर मन आनंदित हुआ। भीतर कुछ दूर चलने पर श्रीमती इंदिरा गांधी की एक प्रसिद्ध उक्ति उन्होंने शिलापट्ट पर अंकित दिखाई और मुस्कुरा उठे। उनका संकेत साफ था। वे जानते थे मैं इंदिरा गांधी के समर्थकों में तो कतई नहीं हूं। पर विश्व के अनेक नेताओं की उक्तियां वहां अंकित थीं, उनमें प्रमुखता से इंदिरा जी की उक्ति को देखकर मन प्रसन्न ही हुआ। स्वदेश में चाहे कितने ही मतभेद हों विदेश में तो वे हमारी प्रतिनिधि हैं, और उनके सम्मान में हमें गौरव का बोध होना ही चाहिए।चीन के इस विद्या परिसर में एक बात तीव्रता से ध्यान में आती है- वह है हर विद्यार्थी में अधिक से अधिक आगे बढ़ने की ललक और वातावरण में व्याप्त लालित्य। हम अपने मित्रों के साथ रात 12, 1 या 2 बजे तक परिसर में घूमे तो वहां के जीवन का अनूठा पक्ष सामने दिखा। रात 1 बजे भी फुटबाल खेलकर छात्रावास लौटते हुए 11वीं 12वीं के छात्र देखे। एक बार मैं अपने अतिथि गृह का रास्ता भूल गया। कुछ छात्र पुस्तकालय से लौटते मिले। यहां पुस्तकालय और अध्ययन कक्ष सुबह 3 या 4 बजे तक भी खुले दिखें तो किसी को आश्चर्य नहीं होता। पर दिक्कत यह है कि किसी को अंग्रेजी नहीं आती। हालांकि धीरे-धीरे अंग्रेजी सीखने की कक्षाएं बढ़ रही हैं। हर शनिवार को विश्वविद्यालय के मुख्य चौराहे पर सैकड़ों विद्यार्थी अंग्रेजी सत्र के विशेष अभ्यास हेतु जुटते हैं। यहां शर्त यह होती है कि चाहे टूटी-फूटी बोलो, पर सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करनी होगी। मैंने भी सोचा कि ये विद्यार्थी कुछ अंग्रेजी समझते होंगे। उनको मैंने अपने अतिथिशाला का कार्ड दिखाया और कहा कि मुझे यहां तक पहुंचा दीजिए। उन्होंने कार्ड पढ़ा फिर हंसने लगे। उनमें से एक बोला-हिन्दू, हिन्दू? मैंने हां में सिर हिलाया। चीन में हर भारतीय को हिन्दू कहा जाता है, जो वहां के उच्चारण में “इंदू” सुनाई देता है। वे मुझे रास्ता बता नहीं सकते थे क्योंकि उनमें किसी को अंग्रेजी नहीं आती थी। बस वे यह समझ गए कि मैं भारतीय हूं और वे अपने छात्रावास की ओर जाना छोड़कर मुझे मेरी अतिथिशाला तक पहुंचाने चल पड़े। वे चीनी में बात कर रहे थे, हंस रहे थे। मेरे प्रति कुछ कहना चाहते थे। लेकिन बात सिर्फ इशारों में ही सम्भव थी। तभी उनमें से एक ने मोबाइल पर गाना चलाया, वह हिन्दी गाना था- “ले जाएंगे, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे।” अब तो मेरा आनन्द और बढ़ गया। वे बहुत आत्मीय होकर साथ आए। चीन में हिन्दी गाने लोकप्रिय हैं। और हिन्दी फिल्में भी डब होकर खूब देखी जाती हैं। हम रात डेढ़ बजे अपने कमरे में पहुंचे। उन सबसे शे, शे यानी धन्यवाद कहा और भारत के प्रति सामान्य किशोरों के मन में भी अनुराग की भावना का आनंद ओढ़े सो लिए। अगली सुबह कुछ असाधारण होना था। (जारी)25

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