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अमरीकी दखल और भारत-श्रीलंका के बीच सागर जल को “ऐतिहासिक” मान्य करने से ही अमरीकी इनकार का रहस्य खुला। एशियन डेवेलपमेंट बैंक के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी तथा सिन्धु-सरस्वती योजना के निदेशक एवं वर्तमान सूत्रधार श्री कल्याण रमन ने वैज्ञानिक तरीके से राम सेतु विध्वंस की पूरी परतें उघाड़ी हैं। उन्होंने तरुण विजय से एक विशेष बातचीत में बताया-भारत और श्रीलंका ने पिछले अनेक दशकों से पाक बे, मन्नार की खाड़ी और पाक स्ट्रेट्स को “ऐतिहासिक” और “आंतरिक” माना है।अमरीकी इस दावे को मान्य नहीं करते और उन्होंने सदैव इस दावे का विरोध किया है। अमरीका उक्त तीनों क्षेत्रों के सागर को “अन्तरराष्ट्रीय” मानता है और इन्हें “ऐतिहासिक” मानने से इनकार करता है।भारत की वर्तमान सरकार ने सेतु समुद्रम जलमार्ग “अन्तरराष्ट्रीय” सागर सीमा के अत्यंत निकट स्थापित करने का विकल्प चुना है, जिसके कारण राम सेतु (जिसे अंग्रेज और अन्य लोग आदम पुल भी कहते हैं) क्षतिग्रस्त होगा और भारत इस क्षेत्र के सागर को भारत-श्रीलंका के बीच “ऐतिहासिक” करार देने के अपने पुराने दावे से स्वत: स्खलित हो जाएगा।इसका एक परिणाम यह भी होगा कि जहां श्रीलंका अन्तरराष्ट्रीय सागर सीमा के अपनी ओर इच्छानुसार कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र रहेगा वहीं भारत के तटरक्षक एवं नागरिक अधिकारी बंधे रहेंगे। क्यों अन्तरराष्ट्रीय सीमा के भारतीय भाग की ओर यह जलमार्ग बनाया जा रहा है जहां से बड़ी सीमा में अमरीकी एवं अन्य विदेशी जहाज गुजरा करेंगे? अब भारतीय तटरक्षकों के लिए श्रीलंका की ओर से इस जलमार्ग की रक्षा करना अत्यंत कठिन हो जाएगा क्योंकि उन्हें उस स्थिति में अन्तरराष्ट्रीय जलराशि में जाने की बाध्यता होगी जिसके लिए श्रीलंका सरकार और अन्तरराष्ट्रीय कानूनों का बंधन रहेगा।इस बात का कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है कि पाम्बन द्वीप के निकट से यह जलमार्ग क्यों नहीं बनाया जा रहा है? मंडपम और पाम्बन को जोड़ने वाला पुराना पुल भी बना हुआ है जो जहाजों के गुजरते समय ऊपर उठा लिया जाता है और बाद में वापस उस पर से आवागमन शुरु कर दिया जाता है। वह क्षेत्र यदि सेतु समुद्रम जलमार्ग के लिए चुना जाए तो राम सेतु को भी क्षति नहीं पहुंचती।किसी भी क्षेत्र के सागर को “ऐतिहासिक” घोषित करने का अर्थ क्या है?1958 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सागर विषयक कानूनों पर हुए सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि जिन सागर क्षेत्रों को “ऐतिहासिक” घोषित किया जाएगा और तद्नुरूप उसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्य किया जाएगा, वहां अन्तरराष्ट्रीय कानून लागू नहीं होंगे। इसका अर्थ यह है कि यदि भारत और श्रीलंका के बीच दोनों देशों की सरकारों के मतानुसार सागर जल “ऐतिहासिक” मान्य हो जाता है तो वहां अन्तरराष्ट्रीय सीमा नहीं रहेगी और दोनों देशों के मछुआरों एवं नौकाओं तथा तटरक्षकों को एक दूसरे के सागर क्षेत्र में आने की निर्बाध सुविधा रहेगी। उल्लेखनीय है कि श्रीलंका रामेश्वरम् तथा टिं्रकोमाली के बीच के सागर को ऐतिहासिक घोषित करने के पक्ष में रहा है। यह घोषणा 15 जनवरी, 1977 को श्रीलंका के राष्ट्रपति द्वारा सागर क्षेत्रीय कानून संख्या 22 (1 सितम्बर, 1976) के अनुक्रम में की गई घोषणा के अनुच्छेद 7 में दोहराई गई है। साथ ही कहा गया है कि श्रीलंका के ऐतिहासिक सागर जल पाक स्ट्रेट्स, मन्नार की खाड़ी और पाक बे में रहेंगे। इस संदर्भ में दोनों देशों के बीच 23 मार्च, 1976 को सागर सीमा निर्धारित करने के बारे में जो करार हुआ उसमें भी इसे मान्य किया गया है।थोरियम भंडार क्या है?अमरीका के प्रसिद्ध रक्षा विषयक विचार केन्द्र कानगी एंडोमेंट में टेलिस नामक वैज्ञानिक ने लिखा है कि भारत के पास 78 हजार मीट्रिक टन यूरेनियम भंडार है जबकि भारत के सम्पूर्ण वर्तमान रिएक्टरों को केवल 14,640 मीट्रिक टन यूरेनियम की ही आवश्यकता है। भारत के भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताएं थोरियम से पूर्ण होंगी। भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा और विशाल थोरियम भंडार है।राम सेतु के निकट केरल की सागर तटीय रेत में काला थोरियम आम तौर पर बिखरा पाया जाता है। यह बात भी अमरीकी वैज्ञानिकों के प्रपत्रों में दर्शाई गई है (विशेष जानकारी www.mcdonald. com.ac.uk/genetics/images/kerala_lowers.jpg) थोरियम विश्व की बहुत ही दुर्लभ धातु है जो सलेटी रंग की धात्विक चमक दिखाती है। यह हवा में गर्म करने पर बहुत चमकदार रोशनी से जलती है। इसका नाम थोरियम स्केंडीनेविया के लोकश्रुत युद्ध देवता थोर के नाम पर रखा गया। भारत के लिए थोरियम का अत्यंत सुरक्षात्मक महत्व है। अमरीका की नजर इस थोरियम भंडार पर है। अमरीकी सागर तटीय सुरक्षा व्यवस्था में राम सेतु का ध्वंस आवश्यक है।होरमुज से लेकर मलक्का की खाड़ी तक भारत की स्थिति यहां के भू सामरिक महत्व की दृष्टि से बहुत प्रमुख है। अमरीका का डियागो गार्शिया में सैनिक अड्डा है। वह इस क्षेत्र में अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए सक्रिय है। वह हिन्द महासागर क्षेत्र में भारतीय स्थिति को निरंतर कमजोर करना चाहेगा। यही कारण है कि चीन भी ग्वादर से लेकर कोको द्वीप तक तीनों ओर से भारत को घेर रहा है। जहां चीन और अमरीका दोनों भारत की नौ सैनिक स्थिति पर भयंकर दबाव बनाए रखना चाहते हैं वहीं यह समझ में नहीं आता कि भारत सरकार क्यों इन दबावों के आगे झुकी?अमरीकी दबाव, असाधारण जल्दबाजी और राष्ट्रीय हितों पर चोटअमरीकी दबाव के बारे में अब सारी बात स्पष्ट हो चुकी हैं। 8 मार्च, 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास के अध्यक्ष रघुपति को सेतु समुद्रम प्रकल्प के बारे में 16 आपत्तियों वाला पत्र भेजा, जिसमें विश्व प्रसिद्ध सुनामी विशेषज्ञ प्रो0 टाड एस. मूर्त्ति के विचार भी समाहित किए गए थे।23 जून, 2005 को अमरीकी नौसेना की ओर से एक क्रियात्मक निर्देश जारी किया गया जिसमें भारत और श्रीलंका के मध्य सागर क्षेत्र को “ऐतिहासिक” जलराशि मान्य करने से इनकार किया गया है।30 जून, 2005 को तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास के अध्यक्ष रघुपति प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा उठाई गई आपत्तियों का बहुत टालू और चलताऊ जवाब भेजते हैं।2 जुलाई, 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी सेतु समुद्रम प्रकल्प का उद्घाटन करते हैं।स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के पास रघुपति का जवाब पहुंचने से पहले ही सेतु समुद्रम उद्घाटन कार्यक्रम तय किया जा चुका था, अत: जो जवाब मिला उसकी छानबीन करने या यह जांचने का कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा उठाई गई आपत्तियों का संतोषजनक उत्तर दिया गया है या नहीं, समय ही नहीं था। फिर ऐसी असाधारण जल्दी क्यों दिखाई गई?सुरक्षा सूत्रों के अनुसार अमरीकी नौसेना द्वारा भारत और श्रीलंका के बीच के सागर को “ऐतिहासिक” न मानने का कारण यह है कि अमरीकी इस क्षेत्र को भारतीय प्रभुत्व और एकांतिक नियंत्रण से हटाकर अन्तरराष्ट्रीय अड्डा बनाना चाहते हैं। कश्मीर से लेकर राम सेतु तक वे अपनी पहुंच, प्रभाव और प्रभुत्व बढ़ाना चाहते हैं। यह तब तक संभव नहीं है जब तक भारत और श्रीलंका के बीच अन्तरराष्ट्रीय आवागमन वैधानिक रुप से स्थापित न हो जाए। यह स्थिति धनुष्कोटि के पास से जलमार्ग निकाले जाने पर अमरीका के लिए संतोषजनक नहीं बनती। वह भारत को अन्तरराष्ट्रीय सागर सीमा तक बांधकर निष्प्रभावी बनाना चाहता है।? बार-बार भारत सरकार झूठ बोलती है कि राम सेतु को नहीं तोड़ा जा रहा है जबकि 19 मार्च, 2007 को सरकार की अपनी वेबसाइट (सेतु समुद्रम वेबसाइट) में कहा गया है कि पाक बे के प्रथम खंड में 13.57 किमी0 क्षेत्र में 81.84 प्रतिशत उत्खनन कार्य कर दिया गया।तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास के अध्यक्ष रघुपति के खिलाफ सीबीआई जांच हो8 मार्च, 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने सेतु समुद्रम प्रकल्प के बारे में जो गंभीर आपत्तियां उठार्इं उनका जबाव सरकारी वेबसाइट के अनुसार रघुपति द्वारा 30 जून 2005 को भेजा गया लेकिन इस बारे में रघुपति ने नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण शोध संस्थान अथवा चेन्नै स्थित एनआईओटी से कोई सलाह नहीं ली, जो कि सागर जल वनस्पति और उस पर होने वाले प्रभाव एवं परिवर्तनों के संदर्भ में शोध का सबसे बड़ा सरकारी संस्थान है। स्पष्ट है कि तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास के अध्यक्ष रघुपति ने प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखने का प्रयास किया और नौवहन मंत्री टी0आर0बालू के साथ मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ किया।13
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