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राम सेतु और किसानों को बचाएंगत 9 मार्च से 11 मार्च तक लखनऊ में रा.स्व.संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सम्पन्न हुई। बैठक के उद्घाटन एवं सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत के उद्बोधन के मुख्य अंश हमने गतांक में प्रस्तुत किए हैं। यहां प्रस्तुत है अ.भा. प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित चार प्रस्तावों के मुख्य अंश-प्रस्ताव क्र. 11857 के स्वाधीनता संग्राम कीगौरवमय स्मृति जीवंत रहे अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर उसके हुतात्माओं की पावन स्मृति को नमन करती है। स्वराज्य, स्वधर्म, स्वदेशी और गोरक्षा के मुद्दों को लेकर यह समर सम्पूर्ण देश में हुआ। इसमें हिन्दू धर्म के प्रतीक “कमल” और जनसामान्य की मूलभूत आवश्यकताओं की प्रतीक “रोटी” का उपयोग युद्ध-प्रतीक के रूप में किया गया तथा इसमें बड़ी संख्या में नगरवासी, ग्रामवासी, वनवासी और गिरिवासी शामिल हुए। अंग्रेजों ने इस संग्राम को मामूली और स्थानीय “सिपाही विद्रोह” तथा राजशाही व सामन्तशाही बचाने का प्रयास कहा, ताकि आम जनता इससे प्रेरणा न ले सके। दुर्भाग्य से इसी स्वर में स्वर मिलाकर देश का एक वर्ग इसे मात्र “सिपाही विद्रोह” कहता रहा। यहां तक कि हमारी इतिहास की पाठ पुस्तकें भी ऐसा ही वर्णन करती हैं। इसके बावजूद इस संग्राम की जनमानस के ह्मदयपटल पर अंकित महान स्वातंत्र्य युद्ध वाली प्रेरक छवि यथावत बनी हुई है।कुछ लोग इस संग्राम को हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मानते हैं। यद्यपि इसमें कुछ आपत्तिजनक नहीं है, फिर भी इसे स्वाधीनता संग्राम के उत्तराद्र्ध में तर्कहीन तुष्टीकरण के आधार पर हुए हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयासों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। यह स्मरण रखना चाहिए कि उन प्रयासों का अन्तिम परिणाम 1947 में देश के दु:खद विभाजन के रूप में हुआ था। सन् 1857 के समर में मुसलमानों की भागीदारी भावात्मक आधार पर हुई थी, न कि पंथ-आधारित अलगाववादी मानसिकता के आधार पर। तत्कालीन मुस्लिम नेतृत्व ने हिन्दू-भावनाओं का आदर करते हुए गोहत्या पर प्रतिबंध, गोहत्यारों को प्राणदण्ड तथा अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि हिन्दुओं को सौंपने इत्यादि बातों पर सहमति दिखाई थी। सन् 1857 के हिन्दू-मुस्लिम सहयोग के इस आयाम को सदैव ध्यान में रखना चाहिए।अ.भा. प्रतिनिधि सभा देश की जनता, विशेषकर स्वयंसेवकों का, आह्वान करती है कि इस गौरवमय इतिहास की स्मृति को विविध कार्यक्रमों के माध्यम से जीवित रखें, ताकि देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की भावना सदैव विद्यमान रहे।प्रस्ताव क्र. 2परियोजना मार्ग बदलें- राम सेतु बचाएंभगवान राम द्वारा समुद्र पार करने के लिए निर्मित “राम सेतु” से जुड़ी करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को निर्लज्जतापूर्वक कुचलते हुए भारत सरकार के अधिकारी विवादास्पद “सेतु समुद्रम् नहर परियोजना” के क्रियान्वयन की हठ पर अड़े हुए हैं। अ.भा. प्रतिनिधि सभा उनकी इस दुराग्रही व उतावली प्रवृत्ति की तीव्र भत्र्सना करती है। केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री द्वारा सेतु समुद्रम् नहर परियोजना का विरोध करने वालों को “राष्ट्रविरोधी” करार देने वाले वक्तव्य का भी प्रतिनिधि सभा कड़ा विरोध करती है।प्रतिनिधि सभा मंत्री महोदय सहित अन्य अधिकारियों को यह स्पष्ट कर देना चाहती है कि मिस्र के लगभग 4,500 वर्ष पुराने पिरामिडों तथा लगभग 2,600 वर्ष पुरानी चीन की विशाल दीवार से भी अधिक प्राचीन, भारत की युगों पुरानी थाती तथा विश्व की प्राचीनतम मानव निर्मित संरचना को विनष्ट करने के घृणित मंसूबों की गंध इस समूची परियोजना से आती है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी हो जाती है कि उक्त नहर परियोजना के निर्माण हेतु अधिकारियों के समक्ष किसी भी धरोहर को नष्ट न करते हुए कई वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध थे। उन्होंने न केवल पर्यावरणविदों द्वारा उठाई गई आपत्तियों तथा उस क्षेत्र के हजारों मछुआरों के गंभीर आजीविका-संकट को नजरअंदाज किया है वरन् समुद्री पुरातत्त्वविज्ञान विशेषज्ञों से परामर्श करना भी ठुकरा दिया है। पर्यावरणविदों तथा भू-विज्ञानियों का कहना है कि इस अवरोध के विनष्ट होने से अपने समुद्र तट पर भविष्य में सुनामी जैसी आपदाओं के समय संकट खड़ा होगा।प्रतिनिधि सभा यह स्मरण कराना चाहती है कि औद्योगिकीकरण तथा मेट्रो रेल जैसी विकास परियोजनाओं के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों से आगरा के ताजमहल तथा दिल्ली के कुतुब मीनार जैसे स्थानों को जनता तथा न्यायपालिका के हस्तक्षेप से बचाया गया है। उपर्युक्त दोनों स्थल जहां केवल कुछ शताब्दियों पुराने हैं वहीं रामसेतु की ऐतिहासिकता सहस्राब्दियों पुरानी है। प्रतिनिधि सभा सरकार से मांग करती है कि वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद “51 क” के अन्तर्गत इस सेतु को संरक्षित स्मारक घोषित करे तथा भावी अध्ययनों हेतु उसे पुरातत्व विभाग को सौंप दे।प्रतिनिधि सभा देशवासियों का आह्वान करती है कि केन्द्र सरकार को इस क्रूर कृत्य का परित्याग करने हेतु विवश करने के लिए तत्काल राष्ट्रव्यापी अभियान प्रारम्भ करें। इस सभा का सरकार को यह सत्परामर्श है कि वह रामनाथपुरम् जिला न्यायालय द्वारा निर्देशित सुझावों के अंतर्गत एक विशेषज्ञ समिति का अविलंब गठन कर उसे परियोजना का वैकल्पिक मार्ग तैयार करने का निर्देश दे, जिससे देश के वाणिज्यिक लक्ष्यों की पूर्ति होने के साथ-साथ पवित्र राम सेतु को भी नष्ट होने से बचाया जा सके।प्रस्ताव क्र.3सामाजिक समरसता सुदृढ़ करेंअखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा अतीव प्रसन्नता व्यक्त करती है कि श्री गुरुजी जन्मशताब्दी के वर्षभर में सम्पन्न उपक्रमों ने अपने केन्द्रीय संदेश “समरसता” को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। समरसता के संदेश को समाज के प्रबुद्ध वर्ग से लेकर सामान्य जन तक प्रसारित करने के लिए प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठियों, सामाजिक सद्भाव बैठकों, खंडस्तरीय विशाल हिन्दू सम्मेलनों के अतिरिक्त देश-विदेश में विविध प्रकार के आयोजन हुए, यथा-समरसता यज्ञ, कलश यात्राएं, समरसता दौड़, हिन्दू संगम, संत समागम, सामाजिक सहभोज आदि। केन्द्र, प्रान्त व जिला स्तर पर गठित समितियों के संरक्षक मंडल, माननीय सदस्यगण तथा सभी प्रकार की सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं द्वारा इन सभी कार्यक्रमों की योजना व उनका क्रियान्वयन करते हुए सफलता तक पहुंचाने में अभिनंदनीय योगदान प्राप्त हुआ है। परिणामस्वरूप जाति, मत-पंथ, वर्ग-राजनैतिक दल आदि भेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय भावना से उमड़े जनप्रवाह ने इन कार्यक्रमों में सामाजिक समरसता व सद्भाव की प्रखर अनुभूति की है।कार्यक्रमों में शामिल हुए सभी लोगों ने अपेक्षा व्यक्त की कि सामाजिक सद्भाव के इस वातावरण को स्थायी रूप दिया जाना चाहिए। सामाजिक समरसता के लिए सदैव प्रतिबद्ध प्रतिनिधि सभा समाज की इस भावना से अपनी पूर्ण सहमति व्यक्त करती है, जो उडुपी के ऐतिहासिक अधिवेशन के तुरन्त पश्चात् दिए गए श्री गुरुजी के इस संदेश से पूरी तरह सुसंगत है कि “कार्यक्रम हो गया, वास्तविक कार्य अभी बाकी है”।देश के सभी स्वयंसेवक इस दिशा में निरन्तर सक्रिय रहेंगे तथा अपने व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन में भी इस लक्ष्य के अनुकूल व्यवहार करेंगे तभी कार्य में यश प्राप्त होगा। अत: प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों का आवाहन करती है कि जन्मशती के इस संकल्प को निरन्तर प्रतिबद्धता के साथ सुसाध्य करें।अ.भा. प्रतिनिधि सभा सम्पूर्ण समाज का, विशेष रूप से पूज्य संतवृंद, सामाजिक-धार्मिक नेतृत्व तथा प्रबुद्धजनों का आवाहन करती है कि वे इस दिशा में आवश्यक योजनाएं व प्रकल्प हाथ में लें, ताकि जन्म शताब्दी वर्ष में उभरा सामाजिक समरसता का वातावरण भारत-भाग्य के उज्ज्वल सूर्योदय का पुष्ट आधार बन सके।प्रस्ताव क्र.4आर्थिक हितों एवं सम्प्रभुता की रक्षाअखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह स्पष्ट मत है कि जब किसी राष्ट्र की आर्थिक सम्प्रभुता छिन जाती है तब राजनैतिक सम्प्रभुता पर सवालिया निशान लग जाता है तथा सांस्कृतिक सम्प्रभुता भी खतरे में पड़ जाती है। भू-मण्डलीकरण के दुष्चक्र में भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था और देश की संप्रभुता बुरी तरह फंसती जा रही है। पश्चिमी जगत के साम्राज्यवादी हितों के अनुरूप हमारी संसद को देश का पेटेण्ट कानून बदलना पड़ा है तथा आयात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबंधों को समाप्त करना पड़ा है। साथ ही लघु उद्योगों के लिए आरक्षित उत्पादों की सूची को क्रमश: समाप्त किया जा रहा है। समाज एवं संस्कृति पर बाजारवाद का शिकंजा कसता चला जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा जल प्रदाय जैसी सेवाओं का भी दारुण बाजीकरण हो रहा है। इन क्षेत्रों में विदेशियों को प्रवेश एवं उन्हें अनियंत्रित अधिकार देने के भी षडंत्र चल रहे हैं। अ.भा. प्रतिनिधि सभा इस स्थिति पर घोर चिन्ता व्यक्त करती है। भारत विश्व का सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। भू-मण्डलीकृत अर्थव्यवस्था भारत के युवाओं के लिए आत्मघाती है, जिससे देश में अराजकता एवं अपराधीकरण की प्रवृत्तियों को बल मिल रहा है।भारत एक कृषि प्रधान देश है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि आर्थिक सुधारों ने कृषि क्षेत्र की उपेक्षा की है जिसके परिणामस्वरूप खाद्यान्नों की उपज निरन्तर घटती जा रही है और भारत की खाद्य सुरक्षा गम्भीर रूप से खतरे में पड़ती जा रही है। एक ओर तो भारत में कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली राजकीय सहायता (सब्सिडी) को कम करने के लिए विश्व व्यापार संगठन की ओर से अवांछनीय दबाव बनाया जा रहा है, दूसरी ओर सम्पन्न देश अपने किसानों को दी जा रही अकूत राजकीय सहायता को कम करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हो रहे हैं। आयातित कपास एवं अन्य कृषि पदार्थों के लाभकारी मूल्य न मिल पाने तथा भारी कर्ज के कारण भारत के विभिन्न प्रदेशों- आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा उत्तर प्रदेश आदि, यहां तक कि कृषि सम्पन्न पंजाब के किसान भी आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं। यह सिलसिला 1990 में नई आर्थिक नीति के लागू होने से शुरू होकर क्रमश: बढ़ता ही जा रहा है। हाल ही में संसद को कृषि मंत्री द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सरकार ने 1995 से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े अलग से रखना प्रारंभ किये; 1995 से 2006 तक की कालावधि में 1,06,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। यह क्रम आज भी जारी है। अ.भा. प्रतिनिधि सभा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) के निर्माण के नाम पर भारत के किसानों की भूमि के जबरन अधिग्रहण, पर्यावरण व जैव विविधता की घोर उपेक्षा, श्रमिकों के सामाजिक सुरक्षा कानूनों की अनदेखी तथा छोटे उद्यमियों के हितों पर होने वाले कुठाराघात पर अपना रोष प्रकट करती है। “सेज” में ही अन्तरराष्ट्रीय वित्त केन्द्र की स्थापना का प्रावधान भारत की सम्प्रभुता के लिए भी गंभीर चुनौती बन सकता है। अत: सरकार अपनी सम्पूर्ण “सेज” नीति पर पुनर्विचार करे।भारत का व्यापार लघु एवं मध्यमवर्गीय व्यापारियों द्वारा नियोजित किया जाता रहा है। देश में करोड़ों दुकानदार हैं जिनमें ठेले-रेहड़ी व पटरी वाले दुकानदार भी शामिल हैं। खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के आने का अर्थ है इन सभी दुकानदारों को बेरोजगार कर आत्महत्या की ओर धकेलना। प्रतिनिधि सभा खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश का घोर विरोध करती है।कृषि उत्पादों के वायदा व्यापार, सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा कृत्रिम अभाव की स्थिति के परिणामस्वरूप देश में बढ़ती जा रही महंगाई भी आम आदमी के दु:ख को बढ़ा रही है। देशी-विदेशी सट्टा अंतत: हमारी अर्थव्यवस्था को दुर्बल एवं लचर बनाने वाला है।”पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट” ने भारत के शेयर बाजार को विदेशी संस्थागत निवेशकों के हाथों की कठपुतली बना दिया है। यहां तक कि इसमें आतंकवादियों के धन के लिए भी प्रवेश के मार्ग खोल दिए गए हैं। यह आर्थिक के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी गंभीर चिन्ता का विषय है।प्रतिनिधि सभा केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों का आह्वान करती है कि वे लोक विरोधी आर्थिक नीतियों एवं भू-मण्डलीकरण के आक्रमण से भारत के आर्थिक हितों की रक्षार्थ अपने आपको सन्नद्ध करें। यह सभा समाज तथा विशेषकर स्वयंसेवकों का आह्वान करती है कि वे स्वदेशी पोषक एवं स्वावलंबी अर्थव्यवस्था के पक्ष में जन-जागरण के व्यापक अभियान चलाएं।गुलाम कश्मीर मुक्त कराने की बजाय अपना कश्मीर गुलाम बनाने की ओर?1857 की क्रांति में गूंजा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का स्वर – राकेश सिन्हासुभद्रा कुमारी चौहान की सम्पूर्ण कविता- खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थीस्वधर्म और स्वराज्य का युद्ध 1857 -तरुण विजयदिशादर्शन रेवती की व्यथा सुनने की फुर्सत किसे है! – तरुण विजयमंथन 2007 के द्वारे 1857 की दस्तक – देवेन्द्र स्वरूपचीनस्य बुद्ध:, बुद्धस्य भारतम्-7 20 वर्षीय दौड़ में जिसके पास धीरज और दृढ़ता, वही जीतेगा – तरुण विजयरामसेतु रक्षार्थ 13 मई को दिल्ली में होगा विराट प्रदर्शन – प्रतिनिधिकेरल के अधिवक्ताओं की मांग रामसेतु न तोड़ा जाएदेहरादून में रामसेतु रक्षण संगोष्ठीवीर सावरकर ने 1857 को बगावत, विद्रोह और “म्यूटिनी” जैसे शब्दों के अपमान से मुक्त किया और उसे भारत का प्रथम स्वातंत्र्य समर घोषित किया तब स्वराज्य का अर्थ था स्वधर्म रक्षा – विश्वास विनायक सावरकरआज फिर धधके एक ज्वाला! -नरेन्द्र कोहली, वरिष्ठ साहित्यकार1857 का महासमर -डा. सतीश चन्द्र मित्तलतब एकता थी मगर अल्पसंख्यकवाद के बिना -मौलाना वहीदुद्दीन खान, अध्यक्ष, सेंटर फार पीस एंड स्प्रीच्युएलिटी1857 ने दिया धर्म के आह्वान पर एकजुटता का संदेश -डा. स्वराज्य प्रकाश गुप्ता, अध्यक्ष, भारतीय पुरातत्व परिषद1857 का उभार वैचारिक पक्ष कहां था? – सूर्यकान्त बाली, वरिष्ठ पत्रकारप्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान के प्रति गौरव का भाव हो -कुप्.सी. सुदर्शन, सरसंघचालक रा.स्व.संघ1857- धधकी थी जब राष्ट्रभक्ति की ज्वालाकूका क्रांति का अध्याय – गुरुबचन सिंह नामधारीसंघ स्वयंसेवक चंद्रन की माकपाई गुण्डों ने हत्या की – प्रदीप कुमारमध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम को सैमसंग पुरस्कार – प्रतिनिधिएमसीसी-लश्कर गठबंधन का अर्थ संगठित जिहाद की नयी चुनौतियां – शाहिद रहीमनवनिर्वाचित महापौर आरती मेहरा का सपना स्वच्छ दिल्ली, स्वस्थ दिल्ली213 मई को दिल्ली में होगा विराट प्रदर्शनबैठक को संबोधित करते हुए श्री अशोक सिंहल, मंच पर उपस्थित हैं (बाएं से) स्वामी चक्रपाणि महाराज, स्वामी राघवानंद, सरदार चिरंजीव सिंह, श्री दिनेश चंद्र, श्री राजेन्द्र पंकज, सरदार प्रेम सिंह “शेर””श्रीराम सेतु को तोड़ने का प्रयास न सिर्फ ऐतिहासिक विरासत से खिलवाड़ है वरन् राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरनाक है।” यह कहना है विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल का। श्री सिंहल गत 24 अप्रैल को नई दिल्ली में श्रीराम सेतु रक्षा मंच के तत्वावधान में आयोजित एक विशेष बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू मंच, हिन्दू महासभा, सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा, अ.भा. विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय मजदूर संघ, समर्थ शिक्षा समिति, वाल्मिकी समाज, जैन समाज आदि अनेक सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी उपस्थित थे। श्रीराम सेतु रक्षा मंच के दिल्ली प्रांत के संयोजक का दायित्व पूर्व सांसद बैकुण्ठ लाल शर्मा उपाख्य सरदार प्रेम सिंह शेर को सौंपा गया। सरदार प्रेम सिंह शेर ने बैठक में कहा कि दुनिया भर के आराध्य भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित सेतु को तोड़ना हिन्दू समाज कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसके पूर्व रा.स्व.संघ के प्रांत प्रचारक श्री प्रेम कुमार ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की। बैठक में सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष स्वामी राघवानन्द, हिन्दू सभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज, राष्ट्रीय सिख संगत के प्रमुख सरदार चिरंजीव सिंह, रा.स्व.संघ के उत्तर क्षेत्र प्रचारक श्री दिनेश चन्द्र, विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री श्री राजेन्द्र पंकज, क्षेत्र संगठन मंत्री श्री कैलाश, दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डा. हर्षवद्र्धन विशेष रूप से उपस्थित थे। -प्रतिनिधिकेरल के अधिवक्ताओं की मांगरामसेतु न तोड़ा जाएगत 5-6 अप्रैल को कोच्चि, केरल में अभिभाषा परिषद (केरल में अधिवक्ता परिषद अभिभाषा परिषद के नाम से कार्यरत है) के दो दिवसीय शिविर के बाद परिषद की राज्य समिति की बैठक में रामसेतु रक्षा का प्रस्ताव पारित किया गया। चित्र में अ.भा.अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति पर्वत राव शिविर के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए दिखाई दे रहे हैं।देहरादून में रामसेतु रक्षण संगोष्ठी23 अप्रैल को देहरादून में रामसेतु रक्षा के आह्वान हेतु आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए रा.स्व.संघ की अ.भा. कार्यकारिणी के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार। मंच पर हैं (बाएं) स्वामी यतीन्द्रा नंद गिरि।3
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