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जम्मू-कश्मीर

by
May 8, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 May 2007 00:00:00

घाटी में जिहादियों के इशारे परआतंक की “खेती”-खजूरिया एस. कान्तपिछले करीब दो दशक से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को जीवित रखने के लिए आतंकवादी सिर्फ विदेशी सहायता पर ही निर्भर थे। लेकिन इधर कुछ वर्ष से जबसे अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर विदेशी मदद ने अपना हाथ खींचा है, वे राज्य के स्थानीय किसानों को डरा-धमका कर बड़े पैमाने पर मादक पदार्थों की खेती करवा रहे हैं और करोड़ों रु. कमा रहे हैं। इससे प्राप्त पैसे से उनकी हथियारों सहित अन्य जरूरतें भी पूरी हो रही हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य में शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो जब नशीले पदार्थों से सम्बंधित कोई न कोई मामला न पकड़ा जाता हो। कभी यहां से चरस छिपाकर बाहर ले जाई जाती है, तो कभी बाहर से लाई जा रहीं नशीली दवाइयां पकड़ी जाती हैं। इसके अतिरिक्त राज्य के बाहर देश में अगर नशीले पदार्थों का कोई मामला पकड़ा जाता है तो उसका भी सम्बंध राज्य से अवश्य होता है।परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर केवल आतंकवाद की समस्या ही नहीं झेल रहा है बल्कि यहां के लोग, विशेषकर युवा वर्ग मादक पदार्थों के सेवन के भी शिकार हो रहे हैं। आतंकवादियों के लिए ये मादक पदार्थ आतंकवाद को जिंदा रखने में वरदान साबित हो रहे हैं। 15 साल पहले दक्षिण कश्मीर के चार जिलों पुलवामा, कुलगाम, काजीगुंड और अनंतनाग के खेतों में चावल, गेहूं और मक्की की फसल लहलहाती थी पर अब वहां भांग और गांजे की खेती होती है।नशे की खेती में पुलवामा सबसे आगे है। जिले के नाइना, बटपोरा, बंडना, संगम, तुलखुन, दुपतियार सहित कुलगाम, नौगाम, शोपियां और अनंतनाग के बिजबेहाड़ा में भांग और गांजे की खेती होती है। सिलसिला यही नहीं थमता। आमदनी अच्छी देख लोगों ने मशीनें लगाकर भांग और गांजे से अन्य मादक पदार्थ बनाकर इसे एक कुटीर उद्योग का रूप दे दिया। भांग से भुक्की और अफीम एवं उसे और तपाकर “स्मैक” तक तैयार की जाने लगी। हड़ताल, प्रदर्शन और तलाशी के दौर तथा आतंकी दहशत के बीच युवा भी धीरे-धीरे नशे के आदी होते चले गए। इन मादक पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में करोड़ों रुपए कीमत है। एक अनुमान के अनुसार राज्य में इस समय मादक पदार्थों का 750 करोड़ रुपए से अधिक का व्यापार है, जिस पर आतंकवाद पल रहा है। करोड़ों रुपए के इन मादक पदार्थों को विदेशी बाजारों में बेच कर आतंकी इसके बदले में हथियार खरीदते हैं, जिससे राज्य में मासूम लोगों का खून बहाया जाता है। एक तरह से राज्य के लोगों की मेहनत से खरीदे गए हथियारों से ही राज्य के मासूम लोगों का खून बहाया जा रहा है।एक सरकारी अधिकारी राज्य में मादक पदार्थों की खेती के पीछे आतंकवादियों का हाथ होने की बात स्वीकारते हुए कह चुके हैं कि आतंकवादी डरा-धमकाकर किसानों से चरस, गांजे की खेती करवा रहे हैं। हालांकि प्रशासन यह दावा भी करता है कि उसके प्रयासों से अब काफी हद तक किसान जागरूक हो गए हैं और अब आतंकवादी केवल दूर-दराज के क्षेत्रों में सरकारी जमीनों पर ही इस जहर की खेती कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्ष से राज्य में नशे की खेती को नष्ट करने के लिए मादक पदार्थ संबंधी विभाग ने व्यापक अभियान छेड़ा हुआ है और गत वर्ष उसने 3500 कनाल भूमि पर अफीम की खेती को नष्ट किया था। इस वर्ष भी उसका यह अभियान लगातार जारी है। दक्षिणी कश्मीर के पुलिस उप महानिरीक्षक हिम्मत कुमार लोहिया का कहना है कि मादक पदार्थों को नष्ट करने का अभियान जारी रहेगा। साथ ही खेती करने वालों को चेतावनी भी दी जाती है कि अगली बार पकड़े जाने पर नारकोटिक्स एक्ट के तहत जेल में डाल दिया जाएगा। कुलगाम के जिलाधिकारी लतीफुल जमाल देवा और अनंतनाग के उपायुक्त जीए पीर का कहना है कि इन गैरकानूनी धंधों की शिकायत मिलती रहती है। पुलिस को इस काम में स्थानीय लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा है।28

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