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गवाक्ष

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Apr 2, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Apr 2007 00:00:00

केसर की क्यारी में भीषण रक्तपात हैशिवओम अम्बरअभिव्यक्ति-मुद्राअब सियासत बनी तिजारत है,हिलती जनतंत्र की इमारत है।दो टके में चरित्र बिकता है,लोग कहते “महान भारत” है। -प्रो. उदय भानु “हंस”फूलों से घाव छिल गए कांटों से क्या गिला,अपना वजूद खाक में लिपटा हुआ मिला।जिनको लहू से सींचकर गुलशन बना दिया,उनसे ही मिला हमको ये कांटों का सिलसिला। -शंकर सक्सेनाप्रेम का दान कम नहीं होता,भक्ति का गान कम नहीं होता।लाख जुगनू विरोध करते हों,सूर्य का मान कम नहीं होता। -सरिता शर्माबापू की अवज्ञापिछले दिनों टी.वी. चैनलों पर महात्मा गांधी से सम्बंधित एक समाचार को देखकर हार्दिक क्लेश हुआ। गौतम प्रसाद नामक किसी धृष्ट व्यक्ति ने अमरीका में एक वेबसाइट बनाई है। उसमें कोटि-कोटि भारतवासियों की श्रद्धा के केन्द्र महात्मा गांधी का फूहड़ ढंग से मजाक उड़ाया गया है। उन्हें अपने कपड़े उतारकर डिस्को करते दिखाया गया है। बापू के बहुत से विचारों से मेरे जैसे तमाम लोग असहमत हो सकते हैं। उचित प्रसंग में उनकी आलोचना भी करते हैं। किन्तु उनकी अवमानना को, उनकी अवज्ञा को, उनके प्रति की गई अभद्रता को बर्दाश्त नहीं कर सकते! कभी बच्चन जी ने लिखा था-बापू की छाती की हर सांस तपस्या थी,आती-जाती हल करती एक समस्या थी।समस्त राष्ट्रवासियों ने (जो उनसे वैचारिक असहमति रखते हैं, उन्होंने भी) उनके प्रति श्रद्धा का अघ्र्य दिया है। अत: अत्याधिक भत्र्सना के पात्र हैं वे सब लोग जो अपनी प्रतिभा कादुरुपयोग कर एक वन्दनीय चेतना को परिहास का ही नहीं, उपहास का भी विषय बना रहे हैं! क्या ऐसे लोग सुन पाएंगे-गांधी गोया ढाई आखर को प्राप्त देह,गांधी सत्य का अहिंसा का संकीर्तन है।पशुता के ऊपर मानवता का विजय-पर्व,पीड़ा के माथे पे करुणा का चन्दन है।बापू का भोंडा उपहास एक अहम्मन्द का वन्य और जघन्य कृत्य है!वचनेश जी की वत्सलताश्रद्धेय वचनेश जी से मेरा साक्षात परिचय कभी नहीं हुआ। ऐसा संयोग ही नहीं मिला कि उनकी सन्निधि में बैठ सकूं, उन्हें सुन सकूं। हां, उन्हें पढ़ता अवश्य रहा हूं और उनकी दृष्टि तथा अविचल राष्ट्रनिष्ठा से प्रेरणा प्राप्त करता रहा हूं। उनके सहज अनुरागी व्यक्तित्व की ज्योति-रश्मियां, किन्तु, एक अन्य ढंग से मुझ तक पहुंचीं और उनके प्रति मेरे श्रद्धाभाव को और भी गहरा गर्इं। एक-दो वर्ष पूर्व की बात है। मेरे पाश्र्ववर्ती जनपद से एक विद्वान शोधकर्ता श्री अमरनाथ जी मुझसे भेंट करने आए। वे हिन्दी की राष्ट्रीय काव्यधारा में सामाजिक तथा सांस्कृतिक संगठनों के प्रभाव पर शोध-ग्रन्थ तैयार कर रहे थे। अपने विचार उनके समक्ष रखने के क्रम में मैंने श्रद्धेय वचनेश जी का स्मरण किया और उन्हें परामर्श दिया कि वह कभी उनसे भेंट कर लें। अमरनाथ जी अपने सात्विक उत्साह के उन्मेष में वचनेश जी के पास पहुंच गए। उन्होंने मेरा सन्दर्भ दिया तो वचनेश जी ने बड़े ही प्यार से उन्हें अपने पास बैठा लिया। मेरी कुशल पूछी, “पाञ्चजन्य” के माध्यम से मुझसे संयुक्त होने का भाव प्रकट किया और अमरनाथ जी की अपेक्षा से अधिक उनकी सहायता की। उनके प्रश्नों के उत्तर दिए, कुछ अलभ्य जानकारियां तथा महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। वह उनके पास से लौटकर मुझे साधुवाद देने आए और मैं यह सब जानकर एक निश्छल मनीषी की सहज वत्सलता से अभिभूत हुआ। मन ही मन उनके प्रति साष्टांग प्रणाम बनकर रह गया।मुंगेरी लाल के हसीन सपनेकिसी समय उपर्युक्त शीर्षक वाला एक धारावाहिक दूरदर्शन पर बहुत लोकप्रिय हुआ था। इसे मैं विडम्बना ही कहना चाहूंगा कि मुझे व्यंग्य-विनोद के इस धारावाहिक का मुख्य चरित्र याद आ गया। प्रधानमंत्री जी ने निकट भविष्य में चाय लाहौर में पीने और लंच (दोपहर का भोजन) अमृतसर में करने की बात कही है। उनका आशय दोनों पड़ोसी देशों के नागरिकों द्वारा एक-दूसरे के यहां उन्मुक्त संचरण की सुविधाएं प्राप्त करने से था। उन्होंने शपथ-सी ले रखी है कि पाकिस्तान चाहे या न चाहे हम उससे मित्रता स्थापित करके ही मानेंगे। वह एक सामान्य-सी लोक प्रचलित उक्ति भूल गए कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती! एक ओर हमारा सरकारी तंत्र घोषणा करता है कि जगह-जगह होने वाले बम-विस्फोट आई.एस.आई. के कारनामें हैं, हमारी खुफिया एजेन्सियां बताती हैं कि पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था के शुभचिन्तकों की संख्या हर प्रदेश में बढ़ती आ रही हैं और दूसरी ओर हमारे प्रधानमंत्री बगल में छिपी कटार की उपेक्षा कर तथाकथित दोस्ती पर मुग्ध हो रहे हैं। अफजल खां से मिलने से पूर्व शिवाजी को बघनखा पहनने का ध्यान रखना ही चाहिए! भयावह विस्फोटों के ऊपर बिछी सियासत की बिसात के सामने खड़े भोले प्रधानमंत्री का मासूम वक्तव्य यदि किसी प्राज्ञ राजनीतिक का सुविचारित वाक्य न लगकर मुंगेरी लाल के हसीन सपने लगें तो इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है!किन्नरों से क्षमायाचनासंस्कृत साहित्य में किन्नर शब्द से देवजाति का बोध होता रहा है किन्तु इस युग में मीडिया की कृपा से किन्नर शब्द उस वर्ग का परिचायक बन गया जो न नारी है, न ही नर! शिखण्डी शब्द भी इसी अर्थ में प्राय: समकालीन साहित्य में प्रयुक्त होता रहा है। यद्यपि महाभारत में जिस शिखण्डी का जिक्र आता है वह महारथियों में परिगणित हुआ है। अभी कुछ दिन पूर्व समाचार पत्रों में पढ़ा कि हर वर्ष आयोजित होने वाले विराट किन्नर सम्मेलन में इस बार सारे भारत के किन्नर-समूह आमंत्रित हुए हैं, पाश्र्ववर्ती देशों से भी प्रतिनिधि बुलाए गए हैं, किन्तु पाकिस्तान से किसी को भी आमंत्रित नहीं किया गया। कारण पूछने पर बताया गया कि इस देश के प्रति द्रोह रखने वाले राष्ट्र के लोगों को यहां आमंत्रित नहीं किया जा सकता। जो दोस्ती के वादे की आड़ में आतंकवादियों की सरपस्ती कर रहा है, उस देश को हमारे किन्नर अच्छी तरह पहचान गए हैं उनमें राष्ट्रभक्ति भी है, राष्ट्राभिमान भी! कभी लिखा था-केसर की क्यारी में भीषण रक्तपात है,विस्फोटों पर बिछी सियासत की बिसात है।हिचक रही है अफजल को फांसी देने मेंये संसद है या शिखण्डियों की जमात है!आज राष्ट्रभक्त किन्नरों से, शिखंडियों से क्षमायाचना करता हूं। हमारे पाकिस्तानपरस्त, स्वाभिमान शून्य अनेकानेक राजनेता इस योग्य भी नहीं हैं कि किन्नरों से उपमित किए जाएं-ऐसा करने से राष्ट्रभक्त किन्नरों का अपमान होगा!27

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