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पाठकीय

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Apr 2, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Apr 2007 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 7 जनवरी, 2007पञ्चांगसंवत् 2063 वि. – वार ई. सन् 2007फाल्गुल कृष्ण 2 रवि 4 फरवरी, 07″” 3 सोम 5 “””” 4 मंगल 6 “””” 5 बुध 7 “””” 6 गुरु 8 “””” 7 शुक्र 9 “””” 8 शनि 10 “”प्रत्येक हिन्दू “मेरा” और मैं “उसका”आवरण कथा “आघातों में उभरता हिन्दुत्व, आगे बढ़ता भारत” लोक-मानस को प्रोत्साहन एवं प्रकाश देने की क्षमता रखती है। “शंका कायरता का चिन्ह है और विश्वास वीरता का।” अत: जो लोग रा.स्व.संघ के पू. सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन की इस बात को मजाक में लेते हैं कि, “अगले कुछ वर्षों में भारत में अभ्युदय की लालिमा दिखने लगेगी”, वे वास्तव में कायर हैं। जैसा कि मंथन स्तम्भ में श्री देवेन्द्र स्वरूप ने लिखा है, “चर्च अपने ही बनाये कर्मकांड, शब्द जाल और मिथकों में फंस गया है। वह न तो लौकिक जीवन में त्याग, सेवा और सदाचार का आदर्श प्रस्तुत कर पा रहा है और न मानव चेतना के आध्यात्मिक उन्नयन में सहायक हो रहा है।” इस स्थिति में भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व भारत की ओर दृष्टि लगाये बैठा है कि आज नहीं तो कल भारत से सूर्योदय होगा और उसकी प्रकाश किरणें अन्धकार को दूर करेंगी, क्योंकि भारत का तत्वज्ञान वह अमृत है जिसे प्राप्त करके अभावग्रस्त परिस्थितियों में भी अजरुा आनन्द अनुभव किया जा सकता है। फिर जब समृद्धि भी साथ हो तो कहना ही क्या!-ओमप्रकाश सिंहकुंज विहार, डा. लोचब गली, मुरादाबाद (उ.प्र.)हिन्दुत्व पर आघात तो आजादी के पश्चात् से ही होते रहे हैं। चाहे वे सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के कार्यक्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल की अनुपस्थिति, गोहत्या बन्दी पर सरकारों की ढुलमुल नीति या रा.स्व.संघ पर प्रतिबंध के मामले हों। किन्तु इन सब विकट परिस्थितियों के बावजूद हिन्दुत्व उभरता रहा और भारत आगे बढ़ा। एकात्मता यात्रा और श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन ने हिन्दुत्व को नया आयाम प्रदान किया। श्रीगुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों से तो समस्त भारत के हिन्दुओं में “प्रत्येक हिन्दू मेरा और मैं उसका” यह भावना पनपी है।-दिलीप शर्मा114/2205 एम.एच.वी. कालोनी, कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)पूरे आत्मविश्वास के साथ भारत चतुर्दिक प्रगति पथ पर चल पड़ा है। पूर्वजों की आहुतियां, बलिदान, त्याग और शौर्य से प्रेरित होकर कर्म करने वाले लोगों की मेहनत रंग लाने लगी है। भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स गीता और हिन्दी में लिखी अपने पिताजी की चिट्ठी लेकर अन्तरिक्ष गई हैं। इससे हर भारतीय गौरवान्वित हुआ है। अमरीका में हमारे सेकुलर बंधुओं की चलती तो शायद वे सुनीता को गीता ले जाने से रोकते।-क्षत्रिय देवलालउज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)सम्पादकीय की ये पंक्तियां महत्वपूर्ण हैं कि “जिस मन्दिर में वंचितों का प्रवेश नहीं, वहां हरि भी नहीं मिलेंगे।” किन्तु ये बातें सिर्फ पुस्तकों एवं पत्रों में ही पढ़ने को मिलती हैं। वास्तविकता कुछ और ही है। इतिहास साक्षी है कि जब भी हिन्दू समाज या भारत का विघटन हुआ है उसके पीछे तथाकथित ऊ‚ंची जाति वाले ही रहे हैं।-खुशाल सिंह माहौरफतेहपुर सीकरी, आगरा (उ.प्र.)बाबा तो बाबा हैंहिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शान्ता कुमार का लेख “योग क्रान्ति के युग पुरुष” पढ़ा। उन्होंने ठीक लिखा है कि स्वामी रामदेव जी अपने शिविरों में योग आसन के साथ-साथ देशभक्ति का पाठ भी पढ़ाते हैं। स्वामी जी की यही देशभक्ति वामपंथियों को पच नहीं रही। तथाकथित सेकुलर यदा-कदा स्वामी जी पर कीचड़ उछालते ही रहते हैं। लेकिन स्वामी रामदेव जी इन बातों पर ध्यान न देकर अपनी बात कह जाते हैं। वास्तव में स्वामी जी ने दुनिया का ध्यान अपने गुणों द्वारा अपनी ओर खींचा है।-वीरेन्द्र सिंह जरयाल28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्णा नगर (दिल्ली)अंक-सन्दर्भ, 31 दिसम्बर, 2006आतंकी के पैरोकारभाजपा अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह का साक्षात्कार “यूपीए राज में देश असुरक्षित” पढ़ा। आज लोग इस छद्म सेकुलर शासन के अन्तर्गत कमरतोड़ महंगाई, असुरक्षा और मुस्लिम तुष्टीकरण से अपने आप को इतना अधिक बेहाल महसूस कर रहे हैं जितना पहले कभी नहीं किया था। लाखों कश्मीरी हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हैं परन्तु न तो कथित सेकुलर और न ही मानवतावादी उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। जबकि मुस्लिम तुष्टीकरण सेकुलरवाद का पर्याय बन गया है। इन छद्म सेकुलरों ने पाकिस्तान के साथ दोस्ती का भ्रम पालकर उनके लिए आवागमन की सुविधाएं उपलब्ध करा दी हैं जिनका लाभ आतंकी बेखटके उठा रहे हैं। दिल्ली, वाराणसी, मुम्बई और मालेगांव के आतंकी हमले इसी अविवेकपूर्ण नीति का दुष्परिणाम हैं। देश में कहीं न कहीं पाकिस्तानी आतंकियों का पकड़ा जाना अब एक आम बात हो गई है।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)संप्रग सरकार जिस प्रकार देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की अनदेखी कर अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों को तरजीह दे रही है, वह संविधान की भावना के प्रतिकूल है। देश के किसी कमजोर वर्ग को उठाना तो समझ में आता है, लेकिन उन्हें बहुसंख्यकों की कीमत पर अधिमान देना समझ से परे है। एक ओर जहां सरकार आवश्यक वस्तुओं से भी सब्सिडी कम करती जा रही है, वहीं हज के लिए करोड़ों रुपए की सब्सिडी दी जा रही है। क्या देश के सभी मतों और पंथों के लिए ऐसा ही प्रावधान है? यदि नहीं तो यह कैसा सेकुलरवाद है? देश में वंचित, पिछड़े और गरीब तो और भी करोड़ों लोग हैं, लेकिन सिर्फ मुसलमानों को 5,600 करोड़ रुपए का पैकेज देने का अर्थ क्या है?-अरुण मित्ररामनगर (दिल्ली)स्वाभिमान भी गिरवीभारत-अमरीकी परमाणु संधि के सन्दर्भ में श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री सतीश चंद्रा एवं श्री अरुण शौरी के विचार पढ़े। इन विचारों से लगता है कि यह संधि भारत के हित में नहीं है। इसका भारत सरकार पुनर्मूल्यांकन करे। अमरीकी मंशा को भांपने की जरुरत है। अमरीका पूरी दुनिया पर हुकूमत जमाना चाहता है।-शैलेन्द्र कुमार “शैल”ए-ब्लाक, रामजानकी नगर, बशारतपुर, गोरखपुर (उ.प्र.)यदि कोई यह देखना चाहे कि राष्ट्रीय स्वाभिमान को कैसे गिरवी रखा जाता है तो वह देखे कि किस प्रकार से “संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन” सरकार ने अमरीका के साथ परमाणु सन्धि के काले कारनामे को अंजाम दिया है। अमरीका द्वारा इस करार के माध्यम से दी गयीं बैसाखियां हमें निश्चित रूप से ही ऊर्जा के क्षेत्र में लंगड़ा बना देंगी। अमरीका ने इस सन्धि के प्रावधानों को अपने हिसाब से भारत पर लाद दिया है। भारत इस सन्धि के बोझ को ढोने वाला ऐसा देश बन गया है जिसको शायद ही कोई स्वाभिमानी देश बर्दाश्त कर सकता।-कुमुद कुमारए-5, आदर्श नगर, नजीबाबाद, बिजनौर (उ.प्र.)विशेष पत्रउनकी विरासत ऐसी ही हैएक थे भीमसेन सच्चर। पं. ठाकुरदास भार्गव के पश्चात् उन्हें पूर्वी पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने अपने प्रदेश की विभाजन-योजना बनाकर केन्द्र को प्रेषित कर दी। फलत: बाद में पूर्वी पंजाब चार भागों में बंट गया- 1. पंजाब 2. हरियाणा 3. हिमाचल प्रदेश 4. चण्डीगढ़ (केन्द्रशासित)। साथ ही चण्डीगढ़ को पंजाब और हरियाणा के बीच स्थायी विवाद-बिन्दु बना दिया गया। पंजाब और हरियाणा की राजधानी चण्डीगढ़, पर वह इनमें से किसी के क्षेत्र में नहीं। है न विश्व का आठवां आश्चर्य! इतना ही नहीं, सतलज नहर का विवाद अलग से अब तक अनुसलझा है। नतीजा, जो पानी पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के खेत सींचता, वह इस झगड़े में पाकिस्तान के खेत सींच रहा है। इन्हीं भीमसेन सच्चर के “सुपुत्र” हैं राजेन्द्र सच्चर, पूर्व न्यायमूर्ति। पिता ने प्रदेश के बंटवारे की आधारशिला रखी, तो पुत्र ने देश के विभाजन की। श्री राजेन्द्र सच्चर ने सरकारी नीति को परिपुष्ट करने में कोई कसर न छोड़ते हुए मजहब के आधार पर देश के बंटवारे की नींव अपनी समिति के अध्यक्ष के नाते रख देने का जघन्य अपराध किया है। ध्यान रहे, पिता-पुत्र दोनों देश विभाजन के पश्चात् पश्चिमी पंजाब से वर्तमान शेष भारत में आने को बाध्य हुए थे, पर उन्हें वे सब इस्लामी आतंक की, अत्याचारों की बातें तो भूल ही गयी हैं, मानवाधिकारवाद के झण्डाबरदार इस पूर्व न्यायमूर्ति ने अपनी पूरी की पूरी रपट ही मुस्लिम तुष्टीकरण की देशघाती नीति को समर्पित कर दी है। परन्तु भला हो पाञ्चजन्य का (दि. 24/12/2006 अंक) और उसके पूर्व सम्पादक तथा वर्तमान में स्तम्भ लेखक सुविख्यात इतिहासवेत्ता श्री देवेन्द्र स्वरूप का कि उन्होंने इस रपट को “झूठ का पुलिन्दा” सिद्ध कर दिया। इस रपट की जैसी “शव-परीक्षा” पाञ्चजन्य में तथ्यपूर्ण आधार पर की गयी है, वह अभी तक तो अन्य किसी हिन्दी या अंग्रेजी के समाचार पत्र में देखने को नहीं मिली। इस विस्तृत आलेख को पढ़कर प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति की आंखें खुल जायेंगी कि कोई प्रच्छन्न देशहित विरोधी ही ऐसी आधारहीन आंकड़ों पर आधृत विघटनकारी रपट देने की सोच सकता है। अच्छा हो कि यह आलेख कुछ और विस्तृत रूप में पुस्तिका के आकार में प्रचारित-प्रसारित किया जाय। खेमकरण रपट, बनर्जी रपट और अब सच्चर रपट। लगता है, संप्रग सरकार इस देश को विघटन के कगार पर पहुंचाकर ही मानेगी।-आनन्द मिश्र “अभय”संस्कृति भवन, राजेन्द्र नगर, लखनऊ (उ.प्र.)4

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