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पुस्तक समीक्षा

by
Mar 6, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Mar 2007 00:00:00

कब समझेंगे हम सावरकर को?पुस्तक परिचयपुस्तक का नाम : कालजयी सावरकरलेखक : हरीन्द्र श्रीवास्तवमूल्य : 250 रुपए, पृष्ठ : 166प्रकाशक : सार्थक प्रकाशन100 ए, गौतम नगरनई दिल्ली-110049पिछले दिनों सुप्रसिद्ध लेखक डा. हरीन्द्र श्रीवास्तव की भारत के विलक्षण-क्रांतिकारी विनायक दामोदर वीर सावरकर के जीवन पर लिखी नवीनतम पुस्तक- “कालजयी सावरकर” प्रकाशित हुई। डा. हरीन्द्र की पी.एच.डी. तथा डी लिट् का विषय भी सावरकर ही रहा है। यह वर्ष जहां 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं जयंती का वर्ष है वहीं वीर सावरकर की 125वीं जयंती का वर्षारम्भ भी है। यह संयोग ही है कि ऐसे सुअवसर पर यह पुस्तक हमारे सामने आई है। एक विलक्षण और दूरदर्शी क्रान्तिकारी होने के बावजूद आजादी के बाद वीर सावरकर “विवादास्पद” बना दिए गए, इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। कुछ तथाकथित विद्वानों ने उन्हें “साम्प्रदायिक नेता” तक करार दिया और उनकी देशभक्ति को संदेह की दृष्टि से देखा। इसका एक दुर्भाग्यपूर्ण दृष्टांत हमारे सामने है-जब अंदमान हवाई अड्डे का नामकरण सावरकर के नाम पर किया गया तो कांग्रेस के एक बड़े नेता ने इसका विरोध करते हुए कहा-“हिन्दू महासभा के नेता और महात्मा गांधी की हत्या में उनकी भूमिका को देखते हुए एक भारतीय होने के नाते मुझे यह महसूस होता है कि सावरकर के नाम पर हवाई अड्डे का नामकरण गलत है।” जबकि कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री रहे बसंत साठे ने हाल ही में सावरकर को “भारत रत्न” से सम्मानित करने की मांग की है। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी तक ने सावरकर जन्म शताब्दी के अवसर पर वीर सावरकर राष्ट्रीय समिति के सचिव को पत्र लिखकर टिप्पणी की थी कि “ब्रिटिश सरकार के खिलाफ दु:साहसी विद्रोह के कारण वीर सावरकर का स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। मैं भारत के इस विलक्षण सपूत की जन्म शताब्दी के समारोह की सफलता की कामना करती हूं।”यहां राममनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेता की वीर सावरकर की मृत्यु पर की गई टिप्पणी भी उल्लेखनीय है- “सावरकर उन दूरदर्शी राजनीतिज्ञों में से थे जो समय के प्रवाह को बहुत पहले आंक लेते थे। विभाजन की विभीषिका से बहुत पूर्व ही उन्होंने देश को सावधान कर दिया था। सौ वर्ष बाद का भारत सावरकर को पहचानेगा।” “सौ वर्ष बाद का भारत” यहां रेखांकित करने योग्य है। तो क्या लोहिया के अनुसार हमें सावरकर को सही-सही पहचानने के लिए अभी और कई दशकों तक इन्तजार करना पड़ेगा?हरीन्द्र श्रीवास्तव की “कालजयी सावरकर” पुस्तक के प्रकाशन की कहानी भी बड़ी रोचक है- पहले यह पुस्तक नेशनल बुक ट्रस्ट (सरकारी स्वायत्त संस्था) से प्रकाशित होनी थी, जिसे इस संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष ब्राज किशोर शर्मा ने प्रकाशन के लिए स्वीकृत किया था। लेकिन बाद में केन्द्रीय सरकार में सत्ता परिवर्तन के चलते इस पुस्तक का प्रकाशन रोक दिया गया। अब यह पुस्तक “सार्थक प्रकाशन” ने छापी है। भारत में जगह-जगह बढ़ता राजनीति का दखल सचमुच चिन्तनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारे राजनेताओं को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि हमारी आजादी “बिना खड्ग-बिना ढाल” नहीं मिली है बल्कि इसे वीर सावरकर जैसे अनेकानेक दूरदर्शी और राष्ट्रवादी महानायकों ने हमारी झोली में डाला है। उक्त पुस्तक में वीर सावरकर के संघर्षशील जीवन से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों को दस अध्यायों में विस्तार दिया गया है, जिन्हें तथ्यों और तर्कों के साथ प्रस्तुत कर लेखक ने इस पुस्तक को एक आवश्यक परिवर्तित पुस्तक में कर दिया है। पुस्तक में यथास्थान वीर सावरकर के अनेक दुर्लभ चित्रों को भी प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से हमें वीर सावरकर को समुचित परिप्रेक्ष्य में जानने-समझने-पहचाने में भरपूर मदद मिलेगी। नरेश शांडिल्य26

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