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हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता का सवाल

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Mar 6, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Mar 2007 00:00:00

हिन्दू हैं इसलिए सुनवाई नहीं?1947में पश्चिम पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में जम्मू-कश्मीर आए हिन्दुओं की वेदना कौन सुनेगा। राज्य के दो क्षेत्रों की राजनीति उनकी समस्या के समाधान की राह में रोड़े अटका रही है। पाकिस्तान से आए इन हिन्दू शरणार्थियों के संदर्भ में मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद द्वारा 12 मई को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक राजनीतिक दोषारोपण का अखाड़ा बनकर रह गई। सत्तारूढ़ घटक पी.डी.पी., विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेंस तथा अन्य दल जैसे पी.डी.एफ., माकपा ने इन शरणार्थियों को स्थानीय नागरिक का दर्जा देने का विरोध किया। उल्लेखनीय है कि इन हिन्दू शरणार्थियों की संख्या करीब 4 लाख है। पी.डी.पी. ही नहीं, कांग्रेसी नेता और कृषि मंत्री हाकिम यासिन और माकपा नेता यूसुफ तारिगामी ने भी तरह-तरह से विरोध उत्पन्न किए। हालांकि पाकिस्तान से आए इन हिन्दू शरणार्थियों में से उन लोगों को तो भारत सरकार ने जमीन व संपत्ति के रूप में मुआवजा दिया है जो दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व अन्य राज्यों में बसे हैं। मगर जम्मू-कश्मीर की सरकारों ने इस मुद्दे को हमेशा ही टाला है। घाटी के नेताओं को शायद इस बात का खतरा रहा है कि इन हिन्दू शरणार्थियों को बसाने से कहीं राज्य का जनसांख्यिक स्वरूप न बदल जाए। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने तो अपना पहला विधानसभा चुनाव उस रणबीर सिंह पुरा क्षेत्र से जीता था जहां इन शरणार्थियों की काफी आबादी है। मुफ्ती ने तब इनसे बहुत वायदे किए थे, मगर धरातल पर कभी कुछ किया नहीं है। जम्मू, साम्बा और कठुआ में बसे इन शरणार्थियों को वोट देने तक का अधिकार नहीं है। न ही उन्हें राज्य सरकार की नौकरियां दी जाती हैं, न व्यावसायिक संस्थानों में दाखिला। राज्य के मुस्लिम स्वरूप को बचाए रखने की कोशिश में जुटे इन नेताओं को यह भी लगता है कि हिन्दू शरणार्थियों को स्थायी दर्जा देने से “राज्य नागरिक कानून” का उल्लंघन हो जाएगा। दूसरी ओर भाजपा, कांग्रेस, जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी, बसपा, जम्मू स्टेट मोर्चा आदि दल, जिनका जम्मू क्षेत्र में आधार है, इन शरणार्थियों को स्थायी नागरिक का दर्जा देने के पक्षधर रहे हैं। स्थायी नागरिक का दर्जा न होने के कारण इन शरणार्थियों से राज्य में भेदभाव बरता जा रहा है। यह भेदभाव भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के विपरीत तो है ही, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के भी खिलाफ है जिनके अनुसार यदि किसी राज्य में कोई व्यक्ति 20 वर्ष से अधिक समय से रहता है तो उसे नागरिकता दी जानी चाहिए।38

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