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ईसाई युवती के विरुद्ध पादरियों ने मोर्चा खोलाकेरल के ईसाई पादरी आज धन, बाहुबल और राजनीतिक रसूख से पहचाने जाते हैं। वे जो कहते हैं, व्यवहार में ठीक उसके उलट होते हैं। कोट्टायम जिले के अरविथुरा के सेंट जार्ज कालेज में प्रथम वर्ष की छात्रा इंदुलेखा की कहानी चर्च मठाधिशों की निर्ममता और उग्रता की असलियत खोल कर रख देती है। दुर्भाग्य से ताकतवर चर्च के साथ हाथ मिलाए सेकुलर दल और मीडिया, जो निश्चित ही चर्च के धनबल के प्रभाव में हैं, इस 20 वर्षीय युवती से किए जा रहे अमानवीय व्यवहार की तरफ आंखें मूंदे हैं।इंदुलेखा को कालेज से निकाल दिया गया और महात्मा गांधी विश्वविद्यालय द्वारा उस निर्णय को सही ठहराने से चर्च की ताकत का आभास हो जाता है।इंदुलेखा का अपराध क्या था? उसे उसके पिता प्रो. जोसफ वर्गीस के उस लेख, जिसमें उन्होंने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध सच लिखा था, के कारण कालेज के प्रधानाचार्य (पादरी) ने उसे बाहर निकाल दिया। प्रो. जोसफ की किताब में चर्च और पादरियों पर टिप्पणी करते हुए ईसाइयों से चर्च को फूटी कौड़ी तक दान न करने की अपील की गई है। उन्होंने लिखा है कि केरल में चर्च ने शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र को बड़ा व्यवसाय बना लिया है।अपनी पुस्तक “नजरायानम नारंतुब्रांतनुम” में प्रो. जोसफ ने लिखा कि “पोप जान पाल की मृत्यु एक दुर्घटना नहीं थी, वह तो एक सुनियोजित हत्या थी।” पादरियों की कड़ी भत्र्सना करते हुए वे लिखते हैं कि वेटिकन के भारी भरकम स्विस खातों का पैसा गरीबों और जरूरतमंदों में बांट देना चाहिए। उन्होंने ईसाई प्रार्थना शिविरों, चंगाई सभाएं आयोजित करने वालों को फटकारते हुए उन्हें ढकोसला बताया है। पादरियों पर तीखी टिप्पणी करते हुए वे तर्क देते हैं कि आम ईसाई उन पादरियों के लौह चंगुल से बाहर आए जो ईसाइयत के आधार को खत्म कर रहे हैं।प्रो. जोसफ की इस पुस्तक का बदला उनकी बेटी इंदुलेखा से लेते हुए कालेज प्रधानाचार्य ने बहुत मामूली सी बात पर इंदुलेखा को कालेज से निकाल दिया।कालेज प्रशासन, खासकर प्रधानाचार्य इस बात पर अड़े हुए थे कि इंदुलेखा, जोकि कालेज छात्रसंघ की उपाध्यक्ष है, कालेज के किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेगी। इंदुलेखा एक कुशल नर्तकी और वक्ता है मगर उसे कालेज के सभी कार्यक्रमों से बाहर कर दिया गया। राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद की बैठक में भी इंदुलेखा को भाग नहीं लेने दिया जबकि परिषद ने उसका अनुरोध भी किया था। इंदुलेखा की अपील पर कोई सुनवाई नहीं हुई, उल्टे पादरियों ने उससे कहा कि चर्च का अपमान करने वाले उसके माता-पिता पहले माफी मांगें। कालेज प्रशासन के इस रवैए और अपने अपमान के विरोध में इंदुलेखा ने कालेज में सत्याग्रह किया। उसने सबसे पहले अपने विरुद्ध हो रही कार्रवाई के खिलाफ प्रधानाचार्य को लिखित शिकायत की। उससे बात करने के बहाने प्रधानाचार्य, जो स्वयं एक पादरी हैं, ने इंदुलेखा और उसकी माताजी को अपने कार्यालय में बुलाया और बहुत भद्दी भाषा में उनसे बातचीत की। इस मानसिक प्रताड़ना से दुखी इंदुलेखा और उसकी मां रोते हुए कार्यालय से निकलीं। उसकी मां श्रीमती अलोशया जोसफ ने कहा, “मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि एक पादरी इस गंदे तरीके का व्यवहार हमसे कर सकता है।” अब ईसाई पादरियों और चर्च प्रशासन के अड़ियल रवैए के कारण एक प्रतिभाशाली ईसाई लड़की का भविष्य अधर में है। उसे न तो पढ़ाई जारी रखने दी जा रही है, न परीक्षा ही देने दी जा रही है।27
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