जम्मू-कश्मीर की चिट्ठी
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जम्मू-कश्मीर की चिट्ठी

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Jan 7, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Jan 2007 00:00:00

युद्ध-विराम की आड़ मेंपाकिस्तान ने बनाए सीमा पर बंकर-विशेष प्रतिनिधिपता चला है कि युद्ध विराम का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के अतिरिक्त जम्मू से लगी लगभग 200 कि.मी. अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पक्के बंकर बना लिए हैं। इन बंकरों के अतिरिक्त अनेक ऊंचे-ऊंचे टावर भी बनाए गए हैं। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ये टावर युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान के लिए मददगार तो साबित होंगे ही, घुसपैठ और तस्करी में भी इनका उपयोग किया जा सकता है। इन सबका निर्माण नवम्बर, 2003 के बाद हुआ है। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि नवम्बर, 2003 में दोनों ओर से गोलीबारी बंद होने के पश्चात् भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव निश्चित रूप से कम हुआ है। सीमांत क्षेत्रों में रहने वालों को राहत मिली है, किन्तु पाकिस्तान के इरादों में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। एक स्थानीय समाचार पत्र में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने सीमा सुरक्षा बल से बंकरों और टावरों के निर्माण की विस्तृत जानकारी मांगी है। इसी बीच ऐसे समाचार भी आ रहे हैं कि सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी चाहते हैं कि सीमा पर की गयी तारबंदी फिर से की जाए, क्योंकि यह तारबंदी सीमा से अनेक कि.मी. पीछे हुई है। इस कारण भारत की हजारों एकड़ भूमि सीमा के उस पार है। किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं। इस कारण यह भूमि बंजर होती जा रही है। कहा जाता है कि सीमा पर की गयी तारबंदी की लंबाई लगभग 185 कि.मी. है। लगभग 37 कि.मी. क्षेत्र में 3-4 कि.मी. पीछे यह तारबंदी की गयी है। ऐसा इसलिए किया गया था कि जब तारबंदी हो रही थी तो पाकिस्तानी सेना गोलीबारी करती थी। पाकिस्तान बार-बार कहता रहा है कि जम्मू-कश्मीर में कोई अंतरराष्ट्रीय सीमा है ही नहीं। इस कारण वह सीमा पर भारत को तारबंदी करने से भी रोकता रहा है।। । ।हिन्दू विस्थापितों की संपत्ति पर कब्जे?इस्लामी कट्टरवादी और असामाजिक तत्वों ने कश्मीर घाटी के पश्चात् अब जम्मू संभाग के कई क्षेत्रों में भी हिन्दू विस्थापितों की सम्पत्तियों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण क्षेत्रों में नरसंहार तथा उग्रवादियों के दबाव के कारण हिन्दू तथा अन्य राष्ट्रवादी लोग पलायन करके सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। इन विस्थापितों में अधिकांश के सम्बंध महौर, गूल गुलाबगढ़ तथा अन्य क्षेत्रों से हैं। ये लोग परानकोट, ढकोकोट, राजरू तथा अन्य स्थानों पर नरसंहार की घटनाओं के पश्चात् पड़ोसी रियासी, राजौरी, उधमपुर तथा रामबन जिलों में रह रहे हैं। विस्थापितों के एक संगठन के प्रमुख श्री शेर सिंह के अनुसार विभिन्न शिविरों तथा सम्बंधियों के यहां जीवन व्यतीत करने वाले इन विस्थापित परिवारों की संख्या 938 है। इनमें से अधिकांश परिवारों को प्रशासन की ओर से नाम मात्र की सहायता उपलब्ध कराई जाती है। किन्तु नए जिलों के गठन के पश्चात् इस सहायता को प्राप्त करने में भी कई प्रकार की कठिनाइयां हो रही हैं। ये विस्थापित 8-10 साल से अपने घरों से बाहर रह रहे हैं किन्तु उनके पुनर्वास के लिए राज्य सरकार की ओर से कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई है। रियासी जिले के भाजपा अध्यक्ष श्री काबला सिंह ने कहा कि सबसे अधिक अतिक्रमण गूल क्षेत्र में हुए हैं और कई स्थानों पर विस्थापितों की भूमि तथा अन्य सम्पत्तियों के “रिकार्ड” से छेड़छाड़ की गई है।उल्लेखनीय है कि 1947 में देश के विभाजन के समय जो लोग इस राज्य से पाकिस्तान चले गए थे और उन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता भी प्राप्त कर ली है, उन लोगों की छोड़ी हुई सम्पत्ति की देखरेख के लिए राज्य सरकार ने एक विशेष “कस्टोडियन” विभाग बना रखा है। किन्तु इस राज्य के अन्दर इस्लामी कट्टरपंथियों तथा आतंकवाद के कारण जो लाखों हिन्दू अपने ही देश में विस्थापित और शरणार्थी बने हैं, उनकी सम्पत्तियों की देखरेख का कोई प्रबन्ध नहीं है। केवल इतना ही नहीं, सरकार के अन्दर भी कुछ तत्व ऐसे हैं जो इन सम्पत्तियों पर सरकारी तथा अन्य निर्माणों को प्रोत्साहन दे रहे हैं।गत दिनों महौर, गूल गुलाबगढ़, अरनास आदि क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के हाथों कई खतरनाक उग्रवादी मारे गए थे। इनमें हिजबुल मुजाहिदीन का डिवीजनल कमाण्डर शरीक, जिला कमाण्डर बिल्लू गुज्जर और अन्य शामिल थे। किन्तु इनके मारे जाने के पश्चात् रहस्यमय रूप से दूददराज के इन क्षेत्रों से सेना को हटा लिया गया है। श्री शेर सिंह तथा अन्य स्थानीय नेताओं के अनुसार उग्रवादी कमाण्डरों के मारे जाने के पश्चात् कम से कम 45 नए विदेशी उग्रवादी स्थानीय उग्रवादियों के साथ आ मिले हैं। इन विदेशी उग्रवादियों का सम्बन्ध लश्कर-ए-तोयबा तथा कुछ अन्य संगठनों से है। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि हिन्दू ही नहीं कई स्थानों से उग्रवादियों के दबाव के कारण मुसलमान भी दूसरे स्थानों पर चले गए हैं। इसके बावजूद कश्मीर से सेना हटाने की मांग की जा रही है। कहा जाता है कि जिन-जिन क्षेत्रों से सुरक्षा बलों को हटाया गया है उनमें उग्रवादियों की गतिविधियां फिर से बढ़ने लगी हैं, किन्तु राज्य सरकार के भीतर से सेना हटाने का दबाव बढ़ने के कारण सैनिक भी निष्क्रिय होकर रह गए हैं, जिससे राष्ट्रवादियों की चिंता बढ़ने लगी हैं तथा असामाजिक तत्व सक्रिय होने लगे हैं।। । ।मुजफ्फराबाद में तैयार हो रहे हैं आत्मघाती दस्तेपाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अब भी बड़ी संख्या में आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। कहा जा रहा है कि इनमें तीन ऐसे शिविर हैं जहां आत्मघाती दस्ते तैयार किये जाते हैं। सैन्य सूत्रों के अनुसार ऐसे 52 प्रशिक्षण केन्द्रों की निशानदेही हुई है। इन शिविरों के अतिरिक्त नियंत्रण रेखा एवं अंतरराष्ट्रीय सीमा के समीप लगभग 60 ऐसे केन्द्र हैं जहां उग्रवादियों को सीमा पार भेजने की व्यवस्था की जाती है। इन्हीं केन्द्रों में उग्रवादियों को विस्फोटक पदार्थ और अन्य हथियार भी उपलब्ध कराये जाते हैं। यह पूरा काम आई.एस.आई. की देखरेख में होता है। हालांकि आई.एस.आई. इस बात का विशेष ध्यान रख रही है कि इन आतंकवादियों के बीच अलकायदा या तालिबान से जुड़े तत्व सक्रिय न हो पायें। आई.एस.आई. को आशंका है कि इन तत्वों के शामिल होने से पाकिस्तान के विरुद्ध भी ये लोग कार्रवाई कर सकते हैं। गत दिनों विलगाम (कुपवाड़ा) में पकड़े गए दो आतंकवादियों ने कई रहस्योद्घाटन किये हैं। पकड़े गए इन पाकिस्तानी आतंकवादियों में से एक का नाम मोहम्मद यासीन और दूसरे का नाम अख्तर उल इस्लाम है। पुलिस पूछताछ में इन दोनों ने स्वीकार किया है कि उनके संबंध लश्कर-ए-तोयबा से है। एक समाचार के अनुसार इन दोनों ने यह भी बताया है कि आत्मघाती दस्ते तैयार करने वाले उन तीनों शिविरों में इन दिनों लगभग 100 आतंकवादी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। लश्कर-ए-तोयबा की देखरेख वाले ये शिविर मुजफ्फराबाद के समीप हैं।32

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