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रामसेतु को न छुएं-आलोक गोस्वामीडा.सुब्राह्मण्यम स्वामी और हिन्दू मुन्नानी के संरक्षक श्री राम गोपालन की याचिकाओं और श्री कल्याण रमन की न्यायिक मामला दर्ज करने संबंधी याचिका पर सुनवाई के बाद मद्रास उच्च न्यायालय ने जो फैसला सुनाया है, वह अभिनंदनीय है। मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शाह और न्यायमूर्ति ज्योतिमनी की प्रथम खण्डपीठ ने रामसेतु को न तोड़ने, सेतु समुद्रम के लिए किसी अन्य मार्ग पर विचार करने तथा रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के सवाल पर 18 और 19 जून को विस्तृत सुनवाई और दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद साफ शब्दों में कहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना के लिए अन्य मार्ग पर विचार किया जाए और जब तक इस मामले पर अंतिम फैसला नहीं हो जाता, रामसेतु को न छुआ जाए। अदालत ने 1958 के राष्ट्रीय स्मारक और पुरातात्विक स्थल कानून की धारा 2 “डी” की सही-सही व्याख्या करते हुए सरकार से यह पूछा है कि रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित क्यों नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्तियों ने साफ कहा कि अगर इस परियोजना के लिए ऐसा मार्ग भी उपलब्ध है जिससे रामसेतु पर आंच नहीं आती तो उस पर विचार क्यों नहीं किया जा सकता। अदालत ने सरकार को जवाब देने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया है। न्यायमूर्तियों की इस मामले पर गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बहस के दौरान जब सरकारी वकील वी.टी. गोपालन ने विकास का तर्क दिया तो उन्होंने साफ कहा कि क्या विकास कार्य के नाम पर ताज महल को भी तोड़ा जा सकता है। अपने फैसले में अदालत ने कहा है कि मुद्दा यह नहीं है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, राष्ट्रीय स्मारक है या नहीं। दुनियाभर में मौलिक सिद्धान्त यही है कि चाहे विकास हो या कुछ और अगर इसमें किसी भी बिन्दु पर संदेह है तो प्रकृति को बचाने का पक्ष लिया जाना चाहिए।इसमें जरा भी संदेह नहीं हो सकता कि मद्रास उच्च न्यायालय का यह फैसला भारतीय न्यायतंत्र में एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह याद किया जाएगा। इतना ही नहीं, इस दो दिन की सुनवाई में वादी पक्ष की ओर से खुद डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी, डा. सेतुरमन, श्री टी.वी. रामानुजम और श्री टी.वी. कृष्णामाचारी जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने विवेकपूर्ण तर्क प्रस्तुत किए और रामसेतु तथा नहर परियोजना से जुड़े प्रत्येक बिन्दु पर तर्क देते हुए न्यायमूर्तियों को पूरा ब्यौरा दिया, जिससे अदालत को नतीजे पर पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा। सुनवाई के दौरान रामसेतु अथवा एडम्स ब्रिज से जुड़े अनेक साक्ष्य भी अदालत में प्रस्तुत किए गए। उधर सरकारी वकील गोपालन ने दलील दी कि सेतु एक प्राकृतिक रचना है। इसी तरह राजस्थान में संगमरमर के पहाड़ भी प्राकृतिक ही थे, मगर उन्हें हटा दिया गया था। गोपालन ने यह तर्क भी दिया कि सेतु समुद्रम परियोजना के अंतर्गत इस 300 मीटर के हिस्से पर काम रोकने से 2,800 करोड़ रुपए की यह योजना प्रभावित होगी। और किसी मार्ग से नहर निकालने पर प्राकृतिक संपदा और सागरीय जीवन पर आघात होगा। साथ ही, वादियों द्वारा किसी वैकल्पिक मार्ग से नहर बनाने का सुझाव धनुष्कोटि को विभाजित कर देगा जिससे समुद्र का पानी सतह से ऊपर उठकर भूमि पर पहुंच जाएगा। लेकिन विद्वान न्यायमूर्तियों पर गोपालन की इन दलीलों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए जनता पार्टी के अध्यक्ष डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी ने पाञ्चजन्य से बातचीत में कहा कि अदालत के इस निर्णय पर हिन्दू समाज को आनंद हुआ है। डा. स्वामी ने बताया कि उनके द्वारा दायर याचिका में मुख्यत: तीन बिन्दु थे- एक, रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए। दो, सेतु समुद्रम् परियोजना के लिए वह मार्ग चुना जाए तो रामसेतु को नुकसान न पहुंचाता हो। उनका तर्क था कि जिस मार्ग से नहर बनाई जा रही है, उसके बनने के बाद पूरा केरल भविष्य में आने वाली सुनामी लहरों की चपेट में आ जाएगा। तीन, राष्ट्रीय महत्व के अथवा लोगों की आस्थाओं से जुड़े स्थलों की रक्षा करनी चाहिए और इसके लिए अगर योजना मार्ग में परिवर्तन करना पड़े तो किया जाना चाहिए। दिल्ली में नवनिर्मित मैट्रो रेल का मार्ग भी इसी सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए तय किया गया है।डा. स्वामी ने कहा कि 1961 से अब तक सेतु समुद्रम परियोजना मार्ग निर्धारित करने के लिए छह समितियां बन चुकी हैं और प्रत्येक ने अपनी ओर से नहर मार्ग सुझाया है। मगर अब जिस प्रस्तावित मार्ग पर काम चल रहा है वह उस अध्ययन के आधार पर तैयार किया गया है जो 2004 में सुनामी आने से पहले किया गया था। अत: इसमें सुनामी के प्रकोप की जांच शामिल नहीं थी। अगर इसी मार्ग पर काम चलता रहा तो केरल पूरी तरह भविष्य में आने वाली सुनामी के प्रभाव क्षेत्र में आ जाएगा और सेतु समुद्रम नहर मार्ग से पानी तटों की सीमाएं तोड़कर भूमि पर आ जाएगा।रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के संदर्भ में डा. स्वामी ने अदालत द्वारा जांचे गए पूर्व वादों की जानकारी देते हुए बताया कि पहले सर्वोच्च न्यायालय ने और बाद में पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय ने किसी स्थल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किए जाने सम्बंधी स्पष्ट व्याख्या की थी। 1993 में पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में एक व्यक्ति ने ब्राह्मसरोवर (कुरुक्षेत्र) के ऐतिहासिक महत्व को चुनौती दी थी और कहा था कि उसकी ऐतिहासिकता कपोल-कल्पित है। तब उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि यह स्थल लोगों की भावनाओं से जुड़ा है अत: राष्ट्रीय महत्व का स्थल है। इसी के प्रकाश में न्यायमूर्ति शाह ने सरकार से पूछा है कि रामसेतु चाहे मानवनिर्मित है या प्राकृतिक, लोगों की भावनाओं से जुड़ा है अत: क्या इसे राष्ट्रीय स्मारक की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।डा. स्वामी और श्री रामगोपालन के साथ ही देश-विदेश के करोड़ों हिन्दुओं ने इस निर्णय का स्वागत किया है। तमिलनाडु मछुआरा संघ के अध्यक्ष श्री कुप्पुरामू ने भी पाञ्चजन्य को बताया कि केरल और तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों पर रहने वाले मछुआरे मद्रास उच्च न्यायालय के इस निर्णय से खुश हैं। वे चाहते हैं कि वर्तमान परियोजना मार्ग में बदलाव होना चाहिए। यह निर्णय रामसेतु रक्षा आंदोलन से जुड़े उन लाखों कार्यकर्ताओं के संघर्ष का भी सुफल है जिन्होंने देशभर में रामसेतु रक्षार्थ हस्ताक्षर अभियान, धरने, प्रदर्शन, गोष्ठियां, सम्मेलन आयोजित करके एक जनांदोलन खड़ा किया था।6
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