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रामसेतु तोड़ा जा रहा है!-वी. सुन्दरम (आई.ए.एस.)एसोसिएट सम्पादक, दैनिक न्यूज टुडे (चेन्नै)गूगल अर्थ 2007 के उपग्रह चित्र में धनुष्कोटि, रामसेतु और पार्क स्ट्रेट की स्थितियां दिखाई दे रही हैं1747 में नीदरलैण्ड के नक्शे में मलाबार बोवेन द्वारा दर्शित राम कोविल (मंदिर)1961 से सेतु समुद्रम के लिए सुझाए गए विभिन्न मार्गकई केन्द्रीय मंत्रियों और सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे लोकसेवकों को बीच बाजार अपमानित किया जाना चाहिए। इसमें जनता की भलाई ही है। सेतु समुद्रम परियोजना छल और राष्ट्रीय शर्म की जीती जागती मिसाल है। प्रधानमंत्री कार्यालय, पोत एवं परिवहन मंत्रालय, तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट ने बड़े सुनियोजित तरीके से सांठ गांठ करके इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाई है जो मेरी नजरों में केवल विध्वंसात्मक परिणाम ही लाएगी।इस प्रोजेक्ट के द्वारा मन्नार की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी को जोड़ने के लिए एक जलपोत मार्ग तैयार करना शामिल है ताकि भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच गुजरने वाले जहाज भारतीय जलक्षेत्र में से पेनिन्सुला के इर्दगिर्द समुद्री मार्ग का प्रयोग कर सकें। इससे उन्हें श्रीलंका की परिक्रमा नहीं करनी पड़ेगी। मगर अनेक जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बावजूद दोनों राष्ट्रों के बीच धारा की गहराई केवल 12 मीटर ही रह जाएगी और इसमें से बड़े जहाज गुजर नहीं पाएंगे। केवल मध्यम आकार के या खाली जहाज ही इसमें से गुजर सकेंगे।”नेरी” ने दिसम्बर 2004 में दक्षिणी भारत में सुनामी की आपदा से काफी पहले ही अपना काम पूरा कर लिया था। “नेरी” द्वारा तैयार की गई मूल्यांकन रपट सेतु समुद्रम शिपिंग केनाल प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिए जाने का सही आधार नहीं हो सकती क्योंकि यह सुनामी से पहले एकत्र किए गए आंकड़ों पर आधारित थी।यह जानना दिलचस्प है कि 8 मार्च 2005 को पर्यावरण से जुड़े विभिन्न पहलुओं के संदर्भ में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा 16 सवाल प्रस्तुत किए गए थे। ये सभी सवाल 8 मार्च 2005 को तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष के दफ्तर में भेज दिए गए थे। संभवत: तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय को अपने विस्तृत जवाब 30 जून 2005 को भेज दिए थे।यह समय महत्वपूर्ण है। इसके दो दिन बाद मनोनीत प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह और “वास्तविक” प्रधानमंत्री सोनिया गांधी ने सीधे मदुरै से हवाई मार्ग से आकर 2 जुलाई, 2005 को इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था। भारतीय जनता इस सुनियोजित घटनाचक्र में कुछ गड़बड़ी की गंध पाती है। शायद इस प्रोजेक्ट से जुड़े कई रहस्यमयी तथ्यों को छुपाने की कोशिश की गई थी।जिस आपाधापी में प्रधानमंत्री कार्यालय ने तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट से शंकाओं के समाधान मांगे थे वह एक मान्य प्रक्रिया के उल्लंघन पर गंभीर सवाल खड़े करता है। प्रधानमंत्री कार्यालय के उन 16 सवालों के जबाव देने की तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट की योग्यता ही संदिग्ध है। इन बातों से भी इस पूरे प्रोजेक्ट पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।प्रधानमंत्री कार्यालय की सभी शंकाएं “नेरी” को भेजी जानी चाहिए थीं और “नेरी” को ही दो प्रमुख मुद्दों के पुनर्मूल्यांकन के लिए ही कहा जाना चाहिए था।कनाडा के डा0 टाड एस0 मूर्त्ति दुनिया के जानेमाने सुनामी विशेषज्ञ हैं। उन्होंने भी सेतु समुद्रम केनाल प्रोजेक्ट के विध्वंसकारी परिणामों पर विस्तृत और गंभीर टिप्पणियां की हैं। इस पृष्ठभूमि में, मैं सर्वोच्च न्यायालय से पुरजोर अपील करुंगा कि मेरे इस आलेख को एक जनहित याचिका के तौर पर लेते हुए इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन को रोके। न्यायालय इससे जुड़े सभी सरकारी विभागों को नोटिस जारी करे ताकि भारत की जनता का हित प्रभावित न हो।यह परियोजना अपने वर्तमान स्वरुप में वैज्ञानिक दृष्टि से अपूर्ण और तकनीकी दृष्टि से निरर्थक है।यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि संचालन समिति में किसी भी खनन विशेषज्ञ, भू विज्ञानी, भूस्तरविद्, तटीय विशेषज्ञ आदि को शामिल करने के बारे में सोचा तक नहीं गया। इस वक्त जो समिति है वह आवश्यक कार्य का केवल दस प्रतिशत ही कर पाएगी और बाकी नब्बे प्रतिशत भू विज्ञानियों द्वारा ही किया जाना है।साफ हो जाता है कि इस प्रोजेक्ट में प्रधानमंत्री कार्यालय, नौवहन व परिवहन मंत्रालय और तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट में मौजूद निहित स्वार्थियों का कोई सुनियोजित षडंत्र शामिल है जिसने अन्तरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की तकनीकी सलाहों तक को नजरअंदाज कर दिया।अगर सेतु समुद्रम जलधारा इस राम सेतु को तोड़कर निकाली गई तो यह पूरे दक्षिण भारत के तटों पर, धनुष्कोटि से आगे केरल तक का हिस्सा भविष्य में सुनामी जैसी आपदाओं का रास्ता साफ कर देगा।राम सेतु को कोई नुकसान पहुंचाए बिना किसी वैकल्पिक योजना का पुन: अध्ययन किया जाए और रामसेतु के “नासा” के उपग्रह चित्रों को भी ध्यान में रखा जाए।एक निर्भीक पत्रकार राधा राजन इस संदर्भ में कहती हैं, “केन्द्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने संप्रग सरकार का हिन्दू विरोधी चेहरा फिर से उजागर किया है। हिन्दुत्व विरोधी राजनीति में यह स्वाभाविक ही है कि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ किया जाए। अंबिका सोनी और उनकी पार्टी की अध्यक्ष दोनों ही हिन्दू नहीं हैं और उनसे हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करने की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। उनके इस प्रोजेक्ट में तमिलनाडु के हिन्दू विरोधी द्रविड़ मुख्यमंत्री सहयोगी हैं। अत: यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत सरकार उस राम सेतु से जुड़े मौलिक ऐतिहासिक तथ्यों से अनभिज्ञ है जिसके अस्तित्व के अनेक अकाट प्रमाण मौजूद हैं।19
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