गहरे पानी पैठ
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गहरे पानी पैठ

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Jan 4, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jan 2007 00:00:00

देशाभिमानी पर पड़ा असरकेरल में माकपा में तीखी नोंकझोंक और दरार तक की स्थितियां पैदा कर देने वाली गुटबाजी का असर कई प्रकार से दिख रहा है। सबसे ताजा उदाहरण है माकपा के मुखपत्र देशभिमानी का। इस वामपंथी पत्र की प्रसार संख्या तेजी से गिरती जा रही है। आडिट ब्यूरो आफ सर्कुलेशन की ताजा रपट के अनुसार माकपा के देशाभिमानी की प्रसार संख्या में 40,000 प्रतियां कम हुई हैं। पार्टी के सत्ता में होने के कारण डरा-धमकाकर जबरदस्ती सालाना चंदा उगाहने और नए ग्राहक बनाने के बावजूद प्रतियां घटना बड़े-बड़े कामरेडों को परेशान किए है। उन्हें इसका कारण खोजे नहीं मिल रहा है। केरल के सभी प्रमुख शहरों और नगरों में उद्योगपतियों को देशाभिमानी का ग्राहक बनने के लिए कहा जाता है और अगर कोई इससे इनकार करता है तो स्थानीय माकपाई गुण्डे उसे “देख” लेते हैं। जान-माल के भय से लोग इसके ग्राहक बन जाते हैं। माकपा के सत्ता में आने के बाद देशाभिमानी ने पिनरई गुट का समर्थन करना शुरू किया था। पिनरई के निष्ठावान जयराजन, दक्षिणमूर्ति और पी. राजीव देशाभिमानी के प्रबंधन में हैं। अच्युतानंदन गुट का मानना है कि संपादक पद से अच्युतानंदन के हटने के बाद यह अखबार उनसे किनारा करता जा रहा है। हाल ही में चर्च के समर्थन से चल रहे दीपिका समाचार पत्र, जो पिनरई के निकट है, ने मुख्यमंत्री के खिलाफ तीखे आलेख छापे थे। देशाभिमानी की प्रसार संख्या घटने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि चूंकि पिनरई गुट इस अखबार पर हावी है इसलिए माकपा नेता और कार्यकर्ता पार्टी की सही-सही स्थिति जानने के लिए अब देशाभिमानी की बजाय दूसरे अखबार पढ़ने लगे हैं।हड़तालों और तालाबंदियों का बंगालकिसानों-मजदूरों-सर्वहारा वर्ग की बात करने वाली बंगाल की वामपंथी सरकार का एक वीभत्स चेहरा तो सिंगूर और नंदीग्राम में सामने आया ही है। इन दोनों स्थानों पर वामपंथी सरकार की पुलिस और भाड़े के गुण्डों ने किसानों-मजदूरों के खिलाफ हिंसा का नंगा नाच किया था। पर इसके साथ ही कम्युनिस्ट सरकार के लम्बे शासन के तले बंगाल ने कल-कारखानों के श्रमिकों की भी हालत खस्ता ही की है, इसके भी आंकड़े आ गए हैं। हड़तालों, तालाबंदी और नकली दवाओं के गैर कानूनी व्यापार में लगे अपराधियों की गिरफ्तारी भी इसी राज्य में अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे अधिक रही है। इन्हीें वामपंथियों की बैसाखी पर टिकी संप्रग सरकार ने पिछले दिनों संसद में यह खुलासा किया है। 27 फरवरी को केन्द्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने संसद में बताया कि अन्य राज्यों की अपेक्षा 2006 में बंगाल में सबसे ज्यादा हड़तालें और तालाबंदी की घटनाएं दर्ज की गईं। प. बंगाल के मुख्यमंत्री औद्योगिकीकरण और विदेशी पूंजी निवेश को लेकर भले ही बड़ी-बड़ी बातें करते हों, असलियत इससे उलट ही है। वित्त मंत्रालय के आर्थिक सर्वेक्षण में इन बातों का खुलासा हुआ है। पूरे भारत में 2006 में अवैध दवाओं के 23 व्यापारी पकड़े गए जिनमें से 9 तो केवल बंगाल से ही गिरफ्तार हुए।सेना हटाई तो बढ़ेगा खतराजम्मू-कश्मीर की गठबंधन सरकार में भागीदार पार्टियों की ओर से घाटी से सेना हटाने की बढ़ती मांग ने राज्य के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में एक भय का माहौल बना दिया है। ये वे क्षेत्र हैं जहां के लोग उग्रवादियों की धममियों और दबाव के बावजूद सुरक्षा बलों को अपना साहयोग देते रहे हैं और कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करके सेना के साथ काम कर रहे हैं। सूचनाओं के अनुसार दूर दराज के क्षेत्रों के कई राष्ट्रवादी विचार के लोगों ने सुरक्षा बलों के अधिकारियों से मिलकर अपनी चिंता व्यक्त की है। कुछ ने तो राज्य के राज्यपाल सेनानिवृत्त ले. जनरल एस.के. सिन्हा से भी मिलकर अपना संदेह व्यक्त किया है। लोगों ने तो इस सीमा तक कहा है कि वे सेना की अनुपस्थिति में अपने घरों तथा क्षेत्रों में सकुशल रह पाने की सोच भी नहीं सकते। उल्लेखनीय है कि पुंछ, राजौरी, डोडा, महोर व अन्य कई ऐसे क्षेत्रों में लोगों ने न केवल सेना का सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने में सहायता की है बल्कि उग्रवादियों के विरुद्ध अभियान में सशस्त्र सुरक्षा बलों का साथ भी देते रहे हैं। इस काम में कई लोगों को अपना बलिदान भी देना पड़ा है। बड़ी संख्या में लोगों के अंग तक काट दिए गए और अनेक उग्रवादियों के निशाने पर बने हुए हैं। वे अपने घरों की बजाय अन्य स्थानों पर रात काटते हैं।कहा जाता है कि अगर इन क्षेत्रों से सेना को हटाया जाता है तो इससे सुरक्षा बलों की सहायता करने वालों का न केवल मनोबल टूट जाएगा बल्कि भविष्य में संकट के समय सेना की सहायता करने वाला कोई नहीं मिल पाएगा और इस स्थिति में आगामी खतरों से निपटना असम्भव हो जाएगा।29

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