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ग्वालियर में साहित्य महाकुंभऋषि गालव की तपोभूमि एवं वीरांगना लक्ष्मीबाई की बलिदान भूमि ग्वालियर गत 17, 18 एवं 19 फरवरी को एक अद्भुत ऐतिहासिक साहित्य महाकुंभ की साक्षी बनी। अवसर था अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा संचालित मध्य भारतीय हिन्दी साहित्य सभा के “राष्ट्रीय परिसंवाद” का आयोजन। इस परिसंवाद का उद्घाटन प्रसिद्ध लेखक तथा म.प्र. के पूर्व राज्यपाल डा. भाई महावीर ने किया।परिसंवाद के मुख्य वक्ता एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्री श्रीधर पराडकर ने कहा कि भाषा संप्रेषण का माध्यम होती है, विवाद का नहीं। परन्तु क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों ने आज भाषाओं को विवाद का विषय बना दिया है। डा. भाई महावीर ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व से लेकर अब तक देश के कतिपय नेताओं ने वाहवाही लूटने के लिए अपने ही देश के टुकड़े कर दिये।उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष डा. बलवंत जानी ने कहा कि विदेशी शिक्षा, विदेशी पुरस्कार तथा विदेशी साहित्य के द्वारा समाज को तोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं। “भारतीय साहित्य में राष्ट्रीय स्वर” विषय पर द्वितीय सत्र में तमिल साहित्यकार डा. एम. शेषन ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि तमिल संस्कृत के गर्भ से पैदा हुई है और दक्षिण के साहित्यकारों की रचनाओं को विभिन्न भाषाओं में अनुवादित कर राष्ट्रीयता के स्वर को संबल प्रदान किया गया है।मध्य भारत हिन्दी साहित्य सभा की स्मारिका “इंगित” का लोकार्पण डा. भाई महावीर एवं उपस्थित अतिथियों के द्वारा किया गया।तीसरे व अंतिम दिन समापन सत्र के अतिथि राज्य के जलसंसाधन मंत्री श्री अनूप मिश्र तथा विशेष अतिथि अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सूर्यकृष्ण थे। अध्यक्षता एल.एन.आई.पी. के कुलपति मेजर जनरल मुखर्जी ने की। दिलीप मिश्रा31
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