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सम्पादकीय

by
Dec 11, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Dec 2006 00:00:00

कम बातें कीजिए, कम में बातें कीजिए और काम की ही बातें कीजिए।-कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” (जियें तो ऐसे जियें, पृ. 88)समाधान एक ही है- हिन्दू ऐक्यपहले अंग्रेजों ने प्रहार किए तथा स्वतंत्रता संघर्ष में जुटे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को जेल में डाला और अत्याचार किए। अब कांग्रेसी उनके जूतों में सफर करना चाहते हैं, और वह भी उस समय जब उनकी सरकार सन् 1942 के आंदोलन में अंग्रेजों के मुखबिर बने लोगों, संगठनों और पार्टियों के समर्थन पर टिकी है। अच्छी श्रद्धाञ्जलि दे रहे हैं ये लोग गांधी, नेहरू एवं इन्दिरा को। और देखिए सबसे ज्यादा बोल कौन रहा है, वह, जिसने विद्रोह कर कांग्रेस से अलग अपनी पार्टी बनाई थी। वही सवाया कांग्रेसी अब मौलवी बने हैं। और क्या कह रहे हैं ये साहब कि वे पुन: सरस्वती शिशु मन्दिरों और राष्ट्रीय विचारधारा से प्रेरित शिक्षा संस्थानों के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे। बात शुरू वहीं से हुई, जब मदरसों में आतंकवादी गतिविधियों को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण देने के प्रमाण मिले और आरोप लगे। पर चूंकि हिन्दू वोट तो इस देश में महत्वहीन हैं, असल वोट बैंक या तो हिन्दू जाति वोट बैंकों के हैं या अहिन्दू मजहबों के। इसलिए जो काम इन्दिरा गांधी ने कभी करना स्वीकार नहीं किया वे उनका झूठा नाम जप रहे लोग कर रहे हैं।कर लें।गजनी और गोरी भी हिन्दू असंगठन एवं आपसी फूट के समय बहुत कुछ कर गए, पर अन्तत: उनका क्या अंत हुआ?इस सबका एक ही समाधान है-हिन्दू ऐक्य।आग्रही हिन्दू एकता।विदिशा में विजयजहां मीडिया बहुतांश में यह प्रचारित करने में जुटा हुआ था कि विदिशा में भाजपा हारने के कगार पर है, वहीं विदिशा संसदीय चुनाव तथा बड़ा मलहरा (म.प्र.) का विधानसभा क्षेत्र बहुत अच्छे मतों से जीतकर भाजपा ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि पूर्वाग्रही छपे हुए शब्द अक्सर जमीनी सच्चाई से कोसों दूर होते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने बहुत कम समय में साबित कर दिया कि वे मेहनत और लगन के बल पर संगठन की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देंगेे। ये दोनों चुनाव भाजपा की परीक्षा थे। शिवराज को एक कम अनुभवी, बाकी सब बड़े नेताओं से कम उम्र और “बड़ों-बड़ों की छाया में बढ़े नौसिखुआ” कहकर समझाया जा रहा था कि वे कठिन समय की चुनौतियों में खरे साबित नहीं होंगे।वे खरे साबित हुए।और उनका कद बढ़ने का अर्थ है भाजपा का कद बढ़ना।लेकिन इस परिदृश्य में एक उदासी का भाव भी है। दिग्विजय सिंह या उनकी कांग्रेस तो पहले से ही बड़ी प्रतिस्पर्धी नहीं थी। परन्तु केसरिया बनाम केसरिया का जो दृश्य विदिशा और बड़ा मलहरा में दिखा वह किसे सुख पहुंचाएगा? मारपीट, गाली-गलौज, एक-दूसरे के वोट काटना आखिर किसके लिए? क्या हिन्दू इस देश में केसरिया बनाम केसरिया देखने के लिए जी रह रहे हैं? भाजपा प्रत्याशी को मिले 2.58 लाख मत और उमा जी के प्रत्याशी को मिले 1.37 लाख मत। ये 3.95 लाख मत केसरिया मत ही तो हैं। इसलिए उत्साह और उत्सव की बात तो तब होनी चाहिए जब गजनी के खिलाफ हिन्दू संघ की सैन्य एकता निर्विघ्न और अटूट हो। हिन्दू समाज कब तक टूट, बिखराव और भीतरी कलह से लड़ता रहेगा?5

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