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गत 31 अक्तूबर को सरदार पटेल की 131वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार, नई दिल्ली में लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन के विभिन्न आयामों पर सद्य:प्रकाशित चार पुस्तकों-“गांधी, नेहरू, सुभाष”, “आर्थिक एवं विदेश नीति”, “मुसलमान और शरणार्थी” तथा “कश्मीर एवं हैदराबाद” का लोकार्पण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस भव्य समारोह में चारों पुस्तकें पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं प्रतिपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकार्पित कीं। समारोह की अध्यक्षता की पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री कृष्ण चंद्र पंत ने। इन पुस्तकों का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन (4/19, आसफ अली रोड, नई दिल्ली-2, फोन-23289555/666/777) द्वारा किया गया है। डा. पी.एन. चोपड़ा एवं डा. प्रभा चोपड़ा द्वारा संपादित ये चारों पुस्तकें सरदार पटेल की व्यावहारिक दूरदृष्टि, अदम्य इच्छा-शक्ति, कर्तव्य-निष्ठा एवं विशद चिंतन का दिग्दर्शन कराती हैं और समकालीन इतिहास का परिदृश्य उपस्थित करती हैं। इस अवसर पर अनेक विद्वान्, राजनीतिज्ञ एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे।पुस्तकों का संक्षिप्त परिचयगांधी, नेहरू, सुभाषसरदार पटेल और कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं-महात्मा गांधी, पं. नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के बीच कुछ मामलों में-विशेषकर सामरिक नीति के मामले में, मतभेद जरूर थे, पर मनभेद नहीं था। उस समय के चार शीर्ष नेताओं के परस्पर सम्बंधों और विचारों की झलक देती यह महत्वपूर्ण पुस्तक वास्तविकताओं से परिचित कराती है। (पृ. 184, मूल्य 200रु.)मुसलमान और शरणार्थीसरदार पटेल के राजनीतिक विरोधियों द्वारा उनके बारे में यह दुष्प्रचार किया गया कि वे मुस्लिम विरोधी थे, किंतु वास्तविकता इसके विपरीत थी। उन पर यह आरोप लगाना न्यायसंगत नहीं होगा, बल्कि इतिहास को झुठलाना होगा। सच्चाई यह थी कि हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों ही वर्गों को एक साथ लाने के लिए सरदार पटेल ने हरसंभव प्रयास किए। प्रस्तुत पुस्तक में मुसलमानों और शरणार्थियों के प्रति सरदार पटेल के उदार, व्यावहारिक एवं सहानुभूति दृष्टिकोण को स्पष्ट किया गया है। (पृ. 182, मूल्य 200रु.)कश्मीर और हैदराबाद”लौह पुरुष” के नाम से विख्यात सरदार पटेल को भारत के गृहमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर मामले को सुलझाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। वे कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के पक्षधर नहीं थे। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निजाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर उन्होंने अंतत: वहां सैनिक अभियान का निर्देश दिया। 13 सितम्बर, 1948 को सैनिक हैदराबाद पहुंच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया। प्रस्तुत पुस्तक राज्यों के भारत में विलय की राह में आई कठिनाइयों और उन्हें दूर करने में सरदार पटेल की सूझबूझ, अदम्य इच्छाशक्ति एवं कर्तव्यनिष्ठा का दिग्दर्शन कराती है। (पृ. 175, मूल्य 200रु.)आर्थिक एवं विदेश नीतिआर्थिक एवं विदेश नीति से सम्बंधित सरदार पटेल की सोच और दृष्टिकोण अत्यन्त व्यावहारिक था। अधिक उत्पादन एवं समान वितरण उनकी आर्थिक नीति के मूल तत्व रहे। विदेश नीति पर भी उनका दृष्टिकोण सुस्पष्ट व व्यावहारिक रहा है। उनके सुझाव के अनुसार एक ऐसी नीति तैयार की गई, जिससे भारत को एक सार्वभौम एवं स्वतंत्र गणराज्य के रूप में राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहने में मदद मिली। (पृ. 175, मूल्य 200रु.) -प्रतिनिधि25
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