दिल्ली का दर्द
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दिल्ली का दर्द

by
Dec 11, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Dec 2006 00:00:00

-जितेन्द्र तिवारी

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा-

नगर निगम की स्वीकारोक्ति के बाद दिल्ली के रिहायशी क्षेत्रों में बनीं दुकानें अवैध।

इससे यातायात बाधित होता है रिहायशी सुविधाओं का प्रयोग व्यावसायिक कार्यों के लिए किया जाना गलत।

घरों में दुकान चलाना अवैध।

ऐसी दुकानें बंद करने अथवा कहीं अन्यत्र ले जाने के लिए दुकानदार शपथ पत्र दें।

जिन 44 हजार दुकानदारों ने न्यायालय में शपथ पत्र दिए, उनकी दुकानें 1 नवम्बर से “सील” की जाएं, बाकी अवैध दुकानें 31 जनवरी, 2007 के बाद सील की जाएं।

व्यापारियों की दलील-

20-30-50 वर्ष पुरानी दुकानें अचानक अवैध कैसे?

सरकार ने उसी दुकान का पंजीकरण किया, व्यापार कर लिया, गृहकर लिया, व्यावसायिक बिजली का कनेक्शन दिया, अब वह न्यायालय में गलत पक्ष रख रही है।

सरकार अतिशीघ्र “मास्टर प्लान 2021” लाए जिसमें वैध-अवैध की स्पष्ट व्याख्या हो। तब तक सीलिंग रोक दी जाए।

इन निर्माणों के लिए आम माफी की घोषणा हो।

जिन 2,138 सड़कों पर बनीं दुकानों को सील किया जा रहा है उन्हें “मिश्रित उपयोग वाली” घोषित किया जाए।

पहाड़गंज के मुख्य मार्ग पर सुप्रसिद्ध जलेबी बनाने वाले राम आसरे दुकान बंद कर बाहर बैठे ताश खेल रहे थे तो करोल बाग में ग्रोवर आटोमोबाइल्स के मालिक कपिल बंद पड़े बाजार के कारण सड़क पर ईंटें लगाकर क्रिकेट खेल रहे थे। उनके साथ आस-पास की दुकानों के मालिक भी “फीÏल्डग” कर रहे थे। दिल्ली के सिनेमा घर भी तीन दिन तक “हाउस फुल” रहे और हरिद्वार की धर्मशालाएं भी दिल्ली के व्यापारियों से पटी रहीं। पर यह “अवकाश” का उत्सव नहीं था। तीन दिन में दिल्ली में हाहाकार मचा रहा। बंद पड़े बाजार, सूनी सड़कें और मुख्य मार्गों पर व्यापारियों का आक्रोश प्रदर्शन। कहीं सरकार का पुतला दहन तो कहीं मुख्यमंत्री शीला दीक्षित हाय-हाय के नारे। दुकानदारों ने रास्ते रोके, पुलिस के अवरोध तोड़े और अंतिम दिन तो बसें तोड़ीं, फूंकी, पथराव किया। फिर पुलिस की लाठी भी खाई, गिरफ्तारी भी दी। पर कुल मिलाकर कुछ वैसा अप्रिय नहीं हुआ जैसा एक महीने पहले दिल्ली बंद के दौरान हुआ था, जिसमें पुलिस की गोली से 4 प्रदर्शनकारी मारे गए थे।

30-31 अक्तूबर और 1 नवम्बर को लगातार तीन दिन तक “दिल्ली बंद” के दौरान चारों तरफ भारी अराजकता का माहौल रहा और लोग किसी अप्रिय घटना की आशंका से चिंतित दिखे। क्योंकि विषय ही बेहद संवेदनशील है। वर्षों से अपने घर-मकान या बाजार की किसी दुकान में सुबह से शाम तक मेहनत कर अपने परिवार के लिए दो जून रोटी कमाने वाले व्यापारी के सामने जीवन-मरण का प्रश्न पैदा हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद दिल्ली की लगभग 41 हजार “अवैध” दुकानों पर नगर निगम के कर्मचारियों को 1 नवम्बर से तालाबंदी करनी थी। यह काम सुचारू रूप से हो इसलिए न्यायालय ने एक निगरानी समिति भी गठित कर रखी है।

करोग बाग के रामजस मार्ग पर कारों के कलपुर्जों (स्पेयर पार्ट्स) की दुकान के मालिक गुलशन साहनी बताते हैं, “मेरे पिता जी ने 1963 में ये दुकान शुरू की थी। फिर फर्म के नाम से ही बिजली का कनेक्शन मिला। पंजीकरण हुआ तो व्यापार कर भी देना शुरू किया। अचानक 2005 में नगर निगम ने न्यायालय को बताया कि जिस “मार्केट” में हमारी दुकान है वह पूरी “मार्केट” ही अवैध है। फिर एक दिन दुकान पर “नोटिस” चिपका मिला कि दुकान अवैध होने के कारण सील की जाएगी। 42 साल से जो दुकान वैध थी, सरकार हमसे “टैक्स” ले रही थी वह एकाएक “अवैध” कैसे हो सकती है?” कमोबेश यही स्थिति उन 41 हजार व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की है जिन पर “सीलिंग” की तलवार लटक रही है। दरअसल दिल्ली का जिस तीव्र गति से विकास हुआ उसमें बहुत सी बस्तियां और बाजार अनियोजित ढंग से फैल गए। लोगों ने घर के बाहर ही दुकानें बना लीं। फिर सरकार ने तय किया कि यातायात व अन्य व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए रिहायशी क्षेत्र अलग हों व्यापारिक अलग। जबकि दिल्ली के अधिकांश भागों में मिश्रित व्यवस्था है। मामला न्यायालय में पहुंचा तो न्यायाधीशों ने नगर निगम को “कानून का कड़ाई से पालन” का निर्देश दे दिया। बार-बार न्यायालय की फटकार के बाद “अवैध” दुकानें सील की जाने लगीं तो व्यापारी सड़क पर उतर आए। अब दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार न्यायालय से समय मांग रही है ताकि कोई बीच का मार्ग निकल सके।

उधर भाजपा व्यापारियों का न केवल खुलकर समर्थन कर रही है बल्कि उनको नेतृत्व भी प्रदान कर रही है। अनेक बार व्यापारियों को लेकर दिल्ली विधानसभा का घेराव, जेल भरो आंदोलन और सीलिंग तोड़ने के अपराध में अनेक विधायक जेल जा चुके हैं, उन पर मुकदमे चल रहे हैं। लक्ष्मी नगर में सिले-सिलाए वस्त्रों की दुकान चलाने वाले पंकज गुप्ता के अनुसार, “भूखे मरने से अच्छा है लड़कर मरेंगे। दुकान बंद हो जाएगी तो हम रोटी कैसे खाएंगे, बच्चों की फीस कैसे देंगे, घर कैसे चलाएंगे? सरकार गलती करे और सजा हम भुगतें, यह मनमानी नहीं चलेगी। इस बार “दिल्ली बंद” के कारण “सीलिंग” नहीं हो पायी, पर जब भी मेरी दुकान “सील” होगी मैं आत्मदाह कर लूंगा। बच्चों को भूख से तड़पता देखने से बेहतर है पहले ही अपनी आंखें बंद कर लूं।”

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