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…पर रामायणकालीन सेतु का ध्यान रखा जाएप्रतिनिधिप्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी हिस्से से होकर जाने वाले जहाजों की निरंतर आवाजाही, श्रीलंका का चक्कर लगाए बिना होती रहे, इसके लिए केन्द्र सरकार ने सेतुसमुद्रम् पोत नहर परियोजना आरंभ की है। आर्थिक दृष्टि से यह परियोजना देश के लिए अत्यन्त लाभकारी है लेकिन इसमें करोड़ों हिन्दुओं की भावना को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इस परियोजना के तहत पूर्वी एवं पश्चिमी तट को जोड़ने के लिए रामेश्वरम् द्वीप के आर-पार एक नहर बनायी जाएगी। इसी मार्ग में पौराणिक रामायणकाल के रामेश्वरम् सेतु के भग्नावशेष भी स्थित हैं, जिसका निर्माण, पौराणिक मान्यता के अनुसार, नल ने किया था और जिससे होकर भगवान श्रीराम अपनी सेना के साथ लंका पहुंचे थे। “नासा” उपग्रह से प्राप्त चित्र भी इस सेतु को सिद्ध करता है। लोगों का कहना है कि इस सेतुसमुद्रम् परियोजना पर काम जरूर हो लेकिन सरकार ध्यान दे इस आस्था-प्रतीक को बिना कोई नुकसान पहुंचाए परियोजना पूरी की जा सके।सेतुसमुद्रम् पोत नहर परियोजना एक बहुद्देश्यीय परियोजना है। इसके अंतर्गत कोथंद्रमस्वामी मंदिर के निकट रामेश्वरम् द्वीप के आर-पार नहर का निर्माण किया जाना है, ताकि पूर्वी और पश्चिमी समुद्री तट को आपस में जोड़ा जा सके। इससे भारतीय जलसीमा क्षेत्र में ही जहाजों के आवागमन के लिए निर्बाध मार्ग उपलब्ध हो जाएगा। अभी तक समुद्री जहाजों को श्रीलंका का चक्कर लगाते हुए यह दूरी पूरी करनी पड़ती थी। इस परियोजना के पूरा हो जाने से पूर्वी एवं पश्चिमी तटों के बीच 400 समुद्री मील की दूरी कम हो जाएगी। इस परियोजना से भारत के ऊर्जा संरक्षण अभियान में भी काफी मदद मिलेगी। नए मार्ग से गुजरने पर हर जहाज से करीब 20 टन ईंधन, अर्थात 70,000 रुपए की बचत होगी। सालभर चलने वाले जहाजों से 70 करोड़ रुपए के ईंधन की बचत हो पाएगी। सेतुसमुद्रम् परियोजना के बाद तूतीकोरिन से लेकर पूर्वी तट तक के अनेक बंदरगाहों तक का मार्ग पहले से न केवल ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा बल्कि यात्रा की अवधि भी 16 घंटे तक कम हो जाएगी। इससे जहाज के फेरे की संख्या बढ़ाई जा सकती है और जहाज की क्षमता का अधिक उपयोग हो सकेगा।ग्वादर से सिंक्यांगपाकिस्तान सौंपने जा रहा है चीन कोएक नया गलियारा-अनिल के. जोसफपाकिस्तान के इस नक्शे में ग्वादर से चीन के सिंक्यांग तक प्रस्तावित सड़क मार्ग(लाल रंग की पट्टी) दिखाई दे रहा है।पांच दिन की चीन यात्रा पर पहुंचते ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने चीन को ऊर्जा व तेल से भरपूर एक नया गलियारा सौंपने की घोषणा कर दी। 22 फरवरी को बीजिंग में जनरल मुशर्रफ ने कहा कि पाकिस्तान चीन को अरब सागर पर बने रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह तक पहुंचने का रास्ता सुगम कराने को तैयार है। इस नए गलियारे के माध्यम से चीन मध्य एशियाई बाजारों और यहां के प्रचुर ऊर्जा संसाधनों पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है। “चाइना डेली” ने मुशर्रफ को उद्धृत करते हुए छापा है, “हम चीन के लिए एक व्यापार और ऊर्जा गलियारा खोलने के इच्छुक हैं।”पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह बलूचिस्तान प्रान्त में है, जहां से ईरान और अफ्रीका से आयातित कच्चे तेल को चीन के सिंक्यांग उइगुर स्वायत्तशासी क्षेत्र तक सड़क मार्ग से भेजा जा सकता है।चीन के शीर्ष नेताओं से इस प्रस्ताव पर चर्चा करने के बाद जनरल मुशर्रफ ने कहा कि अभी इस नए गलियारे को व्यावहारिक रूप से काम में लाने सम्बंधी अध्ययन चल रहा है। यह नया रास्ता मलक्का जलडमरू मध्य से गुजरने वाले मार्ग से काफी छोटा पड़ेगा। ग्वादर बंदरगाह होरमुज जलडमरू मध्य, जहां से दुनिया का 40 प्रतिशत तेल गुजरता है, से बहुत नजदीक होने के कारण रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। चीन ने ग्वादर बंदरगाह के पहले चरण के निर्माण के लिए 20 करोड़ अमरीकी डालर दिए थे। यह काम प्रधानमंत्री वेन जिया बाओ की पिछले अप्रैल में हुई पाकिस्तान यात्रा के समय पूरा हुआ था। बताया जाता है कि दूसरे चरण के निर्माण में भी चीन पैसा लगाएगा, जिसमें अन्य अत्याधुनिक सुविधाओं का निर्माण शामिल है। मुशर्रफ ने कहा कि इस मुद्दे को हमें रणनीतिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। जनरल मुशर्रफ चीन से परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भी मदद चाहते हैं। चीन ने अपने इस परंपरागत मित्र की “चश्मा परमाणु ऊर्जा संयंत्र” के पहले चरण की स्थापना में मदद की थी, इस संयंत्र में 300 मेगावाट के दूसरे चरण का निर्माण भी हाल ही में शुरू हो चुका है। मुशर्रफ के इस दौरे में जारी संयुक्त वक्तव्य में दोनों पक्षों ने सभी क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के नए तरीके खोजने की इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने बलपूर्वक कहा है कि कराकोरम के रास्ते होने वाले व्यापार को और बढ़ाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि चीन के आर्थिक सहयोग से पाकिस्तान में कई परियोजनाओं तथा कार्यक्रमों पर काम चल रहा है। (पी.टी.आई.)बलूचिस्तान में सैन्य कार्रवाई पर खर्च हो रहा है6 अरब रुपए प्रतिमाहबलूचिस्तान में जारी सैन्य कार्रवाइयों में 12,300 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक जुटे हुए हैं जिनके लिए प्रतिमाह 6 अरब रुपए खर्च किए जा रहे हैं। यहां सैन्य और अद्र्धसैनिक बलों की 600 चौकियां स्थापित की गई हैं। गत 26 फरवरी को “बलूचिस्तान संकट” पर कराची स्थित बलोच एकता परिषद् की गोष्ठी में एक बलोच नेता ने उपरोक्त आरोप लगाया। बलूचिस्तान नेशनल पार्टी के नेता और सीनेटर साना बलोच ने कहा कि इस सूबे में रहने वाले 65 लाख बलोच नागरिकों को सैनिक सता रहे हैं। उन्होंने कहा कि यहां जारी संघर्ष उन शासकों के खिलाफ है जो हमें हमारे अधिकारों से बेदखल किए हुए हैं। साना ने कहा कि यह प्रचारित करना गलत है कि भारत बलोच छापामारों को पैसा दे रहा है। उन्होंने कहा कि इस मसले का हल सैन्य कार्रवाई से नहीं होगा। बलूचिस्तान नेशनल मूवमेंट के अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद बलोच ने कहा कि बलूचिस्तान में 4000 राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी रूप से गिरफ्तार किया गया है।केरलमुसलमान बनकर पछता रही हैं सुरैयाप्रतिनिधिअभी ज्यादा समय नहीं बीता था सुश्री कमला को मुस्लिम मत स्वीकार करके अपना नाम कमला सुरैया रखे कि उनके मन में इस्लाम की जो छवि बनी थी वह ध्वस्त हो गई। केरल की सुप्रसिद्ध लेखिका, उपन्यासकार और प्रतिष्ठित कवियित्री नलपत बालाबमनी अम्मा की सुपुत्री सुश्री कमला ने पिछले दिनों कोच्चि में एक कार्यक्रम में कहा कि उनका इस्लाम से मोहभंग हो गया है और मुस्लिम मित्रों के विश्वासघाती व्यवहार को देखकर उन्हें दु:ख पहुंचा है। सुश्री कमला कैराली बुक्स के कार्यक्रम में एक पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि इस्लाम में मतांतरित होकर उन्हें अब पछतावा हो रहा है। उन्होंने बताया कि उनकी कई लाख रुपए की संपत्ति, स्वर्णाभूषण, पुस्तकें व अन्य बहुमूल्य वस्तुएं उनके मुस्लिम मित्रों द्वारा लूट ली गर्इं। इस्लामी जकात के नाम पर सम्पत्ति पर कब्जा किया गया व उनकी पुस्तकों से वे लाभ कमा रहे हैं। सुश्री कमला ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व वे वैश्विक इस्लामी ताकत का सपना देखती थीं परंतु अब उनके मुस्लिम मित्रों द्वारा उन्हीं के संसाधनों का दोहन किए जाने के बाद वे निराश हो चली हैं। वे मुस्लिमों की भ्रष्ट और धोखाधड़ीपूर्ण चाल को देखकर व्यथित हैं। आज वे दुनियाभर में मुस्लिम महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने की अपनी सामथ्र्य और इच्छा खो चुकी हैं। डगमगाते विश्वास और अपनी दयनीय अवस्था का सामना करने में खुद को असमर्थ महसूस करने की उनकी यह दशा दुनिया में आ रहे बदलावों को समझने में हताशा ही दर्शाती है। उनकी आज की हालत मत के आवरण में एक जड़, बंद मानसिकता लादने वाले कथित उदारवादियों के लिए एक चेतावनी है।14
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