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तिब्बत से चीनी आधिपत्य हटे-मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ”भारत के पड़ोसी देश तिब्बत के लोग अपनी अस्मिता, अस्तित्व और स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं। आज वे अपने देश में ही अल्पसंख्यक होने की स्थिति में आ गए हैं, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत सरकार को तिब्बत की स्वायत्तता के पक्ष में खुलकर आना चाहिए और चीन के साथ बातचीत करते समय तिब्बत की समस्या को एक मुद्दा बनाना चाहिए। भारत की अपनी सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है कि तिब्बत से चीनी आधिपत्य हटे और चीन की साम्राज्यवादी नीतियों पर लगाम लगाई जाए।” उपरोक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने नागपुर में भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किए।गत 23 फरवरी को तिब्बती संघर्ष पर लिखे गए एक मराठी पुस्तक बुद्धाचा तिसरा डोला (बुद्ध का तीसरा नेत्र) (ऋचा प्रकाशन, 9, गजानन नगर, नागपुर-15, पृष्ठ-376, मूल्य-350/- रु.) के लोकार्पण हेतु यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। हिन्दी में यह पुस्तक आत्माराम एंड संस ने प्राकशित की है, जिसका लोकार्पण निकट भविष्य में होगा। मराठी पुस्तक का लोकार्पण श्री मोहन भागवत ने किया और कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने-माने चिंतक श्री मा.गो.वैद्य ने की। प्रसिद्ध मराठी समीक्षक डा. दत्तात्रेय. भि. कुलकर्णी ने पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक शोधपरक पुस्तक है, जिसमें तिब्बत की स्वतंत्रता के स्वप्न को जिंदा रखा गया है। भारत तिब्बत सहयोग मंच के संयोजक डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि चीन मंचुरिया की ही तरह तिब्बत का अस्तित्व मिटा देना चाहता है। वह वहां योजनाबद्ध ढंग से लाखों चीनियों को बसा रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक तिब्बत से चीन की सेना हट नहीं जाती तब तक भारत की सीमा भी सुरक्षित नहीं होगी। निर्वासित तिब्बती सरकार के सूचना सचिव डा. नवांग राफगेल ने कहा कि कभी तिब्बत में छह हजार से भी ज्यादा मठ हुआ करते थे परंतु चीनी सेना ने उन सभी को ध्वस्त कर दिया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह उपन्यास भारत में तिब्बत के प्रश्न पर जनजागरण का काम करेगा। पुस्तक के लेखक श्री प्रमोद बडनेरकर ने अपने भाषण में तिब्बत यात्रा के संस्मरण सुनाए और तिब्बतियों की कारूणिक स्थिति का वर्णन किया। अंत में मंच के विदर्भ प्रांतीय अध्यक्ष श्री अशोक मेढे ने सभी को धन्यवाद किया। कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि श्रोताओं में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन भी उपस्थित थे। प्रतिनिधिभारत, भारतीयता और संस्कृति रक्षक हैजनजातीय समाज-सोमैय्या जुलु, अखिल भारतीय सह संगठन, वनवासी कल्याण आश्रम”भारतीय संस्कृति, धर्म एवं परंपराओं की समृद्ध विरासत के दर्शन वास्तविक रूप में देश के जनजातीय जीवन में होते हैं। हमें जनजातीय समाज की महान धरोहर को सुरक्षित रखना है।” यह कहना है अ.भा.वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्री सोमैय्या जुलु का।श्री जुलु गत 18 फरवरी को आंध्र प्रदेश वनवासी कल्याण आश्रम के दो दिवसीय प्रदेश सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। सम्मेलन का आयोजन विशालाक्षी नगर के विज्ञान भारती जूनियर कालेज में किया गया था। उद्घाटन सत्र को श्री के.वी.राममूर्ति (अधिवक्ता) एवं बालीघाथम के संत श्री रामानन्द स्वामी ने भी संबोधित किया। श्री सोमैय्या जुलु ने इस अवसर पर बताया कि संपूर्ण देश में 50,000 जनजातीय ग्राम हैं और लगभग 427 अनुसूचित जनजातियों की कुल आबादी साढ़े आठ करोड़ के लगभग है। जनजाति समाज ने सदा ही भारत-भारतीयता और संस्कृति की रक्षा की है। भगवान राम, भगवान कृष्ण, अर्जुन ,भीम अथवा आधुनिक काल में शिवाजी , राणा प्रताप आदि सभी की जनजातीय बंधुओं ने सहायता की थी। श्री जुलु ने बताया कि जनजातीय समाज अपने जीवन में हिन्दू संस्कृति का ही जन्म से लेकर मृत्यु तक आचरण करता है। उनमें षोड्श संस्कारों के अनुपालन की प्रथा भी विभिन्न रूपों में पाई जाती है। श्री जुलु के अनुसार जनजातीय समाज की सेवा एवं संस्कृति संरक्षण के प्रयासों के फलस्वरूप आज वनवासी कल्याण आश्रम ने देश के 8000 जनजातीय ग्रामों तक अपने सेवा प्रकल्पों का विस्तार कर लिया है। लगभग 1250 पूर्णकालिक कार्यकर्ता और 11000 सेवा प्रकल्पों के माध्यम से कल्याण आश्रम आज देश के कोने – कोने में पहुंच चुका है। सम्मेलन में जनजातीय समाज द्वारा देश के स्वतंत्रता संग्राम में किए गए योगदान पर एक विशेष प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर कुमारी जोशुला मल्लेश्वरी द्वारा लिखित “माना वीरूलू -वाना वीरूलू” (हमारे वीर, जनजातीय वीर) नामक पुस्तक का लोकार्पण भी हुआ। प्रतिनिधि26
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