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केरल में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रपट का खुलासा

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Dec 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Dec 2006 00:00:00

पनबिजली के नाम पर करोड़ों गायब-प्रदीप कुमारकेरल राज्य बिजली बोर्ड (के.रा.बि.बो.) और कनाडा की एक कंपनी एस.एन.सी. लावलीन के बीच राज्य पनबिजली परियोजना के पुनरोद्धार के लिए हुए विवादास्पद समझौते पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा जांच की अंतिम रपट में राज्य के अब तक के सबसे बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। गत 13 फरवरी को राज्य विधानसभा में पेश की गई इस रपट से राज्य माकपा इकाई व इसके राज्य सचिव पिनरई विजयन संदेह के घेरे में आ गए हैं। रपट में कहा गया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ई.के. नयनार एवं तत्कालीन बिजली मंत्री पिनरई विजयन द्वारा किए गए इस सौदे से राज्य को करीब 375 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। रपट के बाद भाजपा नेताओं ने इस मामले की केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराए जाने की मांग करते हुए इस घोटाले में शामिल सभी राजनेताओं व अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की है। दूसरी ओर, इस घटना ने माकपा की राज्य इकाई में अंदरूनी उठा-पटक को और हवा दे दी है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रपट में बताया गया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ई.के. नयनार एवं बिजली मंत्री पिनरई विजयन के नेतृत्व वाले मंत्रीस्तरीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा एस.एन.सी. लावलीन के साथ आवश्यक यंत्रों, यांत्रिक सामानों एवं सेवाओं वाले सौदे को अंतिम रूप दिया गया, लेकिन इस सौदे में कई तरह की अनियमितताएं बरती गईं। रपट में कंपनी को भी दोषी ठहराते हुए कहा गया है कि उसने सलाहकार कंपनी और मध्यस्थ की दोहरी भूमिका निभाई। साथ ही, सौदे के सामानों एवं सेवाओं की आपूर्ति भी इस कंपनी की ओर से न होकर किसी अन्य कंपनी द्वारा ऊंची कीमत पर की गई। इससे राजकोष पर अनावश्यक भार पड़ा।इस बहुचर्चित एवं विवादित सौदे की शुरुआत 1995 में तब हुई जब यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यू.डी.एफ.) को हराकर लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एल.डी.एफ.) की सरकार बनी थी। सन् 1997 में वाम मोर्चा सरकार के समय हुए समझौते में विवाद तभी शुरू हो गया था जब राज्य सरकार ने इस शर्त पर अपनी स्वीकृति दी थी कि अनुबंध मिलने पर कंपनी श्री विजयन के गृह जिले तल्लाशेरी स्थित मलाबार कैंसर सेंटर को 98 करोड़ 30 लाख का अनुदान देगी। लेकिन अनुबंध हासिल करने के बाद कंपनी ने अनुदान देने से इनकार कर दिया। उल्लेखनीय है कि एस.एन.सी. लावलीन को प्राप्त इस अनुबंध के लिए अन्य किसी कंपनी की कोई निविदा आमंत्रित नहीं की गई थी। सन् 2001 में सत्ता में लौटे संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यू.डी.एफ.) सरकार ने इस सौदे पर जांच के आदेश दे दिए।नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की जांच रपट में बताया गया है कि पुनरोद्धार के लिए परियोजना का चुनाव एवं एस.एन.सी. लावलीन को अनुबंध देने में निर्धारित मापदण्डों का उल्लंघन किया गया। समझौते में राज्य के व्यावसायिक हितों की अनदेखी की गई, जिसके कारण के.रा.बि.बो. को नुकसान उठाना पड़ा। रपट में कहा गया है कि यद्यपि राज्य पनबिजली परियोजना के पुनरोद्धार पर 374.5 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए किन्तु खराब यंत्रों की आपूर्ति के कारण अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया। साथ ही, बिजली उत्पादन की क्षमता में भी कोई सुधार नहीं हुआ। रपट में उन 14 कमियों को गिनाया गया है जिसके कारण राजकोष को करोड़ों की चपत लगी। जैसे, राज्य बिजली बोर्ड अंतिम तय मूल्य में दो बार शामिल तकनीक सलाह शुल्क हटाने में विफल रहा। इससे बोर्ड को 20 करोड़ 31 लाख रुपए का नुकसान हुआ।सदन में इस रपट के पेश होने के बाद भाजपा नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री ओ. राजगोपाल ने इस मामले की सी.बी.आई. जांच तथा इसमें शामिल राजनेताओं व अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने की मांग की है। वहीं, केरल भाजपा अध्यक्ष श्री पी.एस. श्रीधरन पिल्लई ने माकपा- कांग्रेस पर घोटाले के प्रमुख आरोपी विजयन को बचाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि केरल के इतिहास में यह अब तक का अकेला सबसे बड़ा घोटाला है। सीबीआई जांच से ही इस घोटाले की सचाई सामने आ सकती है। उन्होंने कहा कि उनके पास ऐसे दस्तावेजी सबूत हैं जिससे साबित होता है कि कोझीकोड के एक दलाल को दुबई के रास्ते 90 करोड़ रुपए की दलाली दी गई। वे इस दस्तावेज को जांच एजेंसी को देने को तैयार हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री ऊमैन चेंडी पर आरोप लगाया कि चूंकि माकपा केन्द्र में संप्रग गठबंधन को समर्थन दे रहा है इसलिए वे विजयन को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।राज्य विधानसभा में इस मामले पर सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे के विधायकों ने भारी हंगामा किया, लेकिन इस पर विपक्ष के नेता व माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य श्री वी.एस. अच्युतानंदन की चुप्पी चौंकाने वाली रही। दरअसल यह केरल में माकपा नेताओं के बीच जारी अंदरूनी कलह को दर्शाता है। राज्य में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की इस जांच रपट ने माक्र्सवादियों की कलई खोलकर रख दी है। हालांकि कांग्रेस केन्द्र में समर्थन की मजबूरी के चलते इस रपट पर कोई कठोर कार्रवाई करने से हिचकिचा रही है पर चुनावों के लिए उसे एक मुद्दा मिल गया है जिसे वह गर्माए रखना चाहती है।13

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