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कठोर आयोग, निराश “कैडर”
भ्रष्टाचार और गुटबाजी में आकंठ डूब चुकी प. बंगाल की वाममोर्चा सरकार ने जिला समितियों को दरकिनार कर प्रदेश समिति को उम्मीदवारों के नाम तय करने को कहा है। इसी कारण वाममोर्चा सरकार के कुशासन के विरुद्ध जनता के आक्रोश को शांत करने के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में नए चेहरों को सामने लाया जा रहा है। वाममोर्चा द्वारा जारी उम्मीदवारों की पहली सूची में 130 नए चेहरों को शामिल किया गया है। इसमें अकेले माकपा के 103 नए उम्मीदवार हैं। पार्टी ने नए चेहरों को उन स्थानों पर उतारा है जहां वह हारने की स्थिति में है।
वाममोर्चे के अंदर मचे इस घमासान का अंदाजा इससे भी लगता है कि जिला स्तर पर स्थानीय समितियों व क्षेत्रीय समितियों में सीधा-सीधा टकराव है। इस गुटबाजी का असर उम्मीदवारों पर न पड़े, इसीलिए नए चेहरे सामने लाए जा रहे हैं। स्थिति यह है कि उत्तर चौबीस परगना के बोलपुर से जाने-माने नेता जगदीश दास और तानिया चक्रवर्ती को सोदपुर सीट पर पुन: टिकट नहीं मिल सका।
उधर अपनी नाकामी को छिपाने के लिए वाममोर्चे के तीन वरिष्ठ नेता – अनिल विश्वास, बिमान बोस और बुद्धदेव भट्टाचार्य – चुनाव आयोग की आलोचना करने में जुटे हैं। कार्यकर्ताओं से कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग की सक्रियता को चुनौती मानते हुए एक बार फिर वाममोर्चे को सत्ता में लौटाने के लिए कमर कस लें। लेकिन चुनाव की तिथियां घोषित होने के बावजूद प्रदेश समिति से नाराज कार्यकर्ताओं के मन बुझे हुए हैं। वे कुछ बातों पर, कुछ बड़े नामों पर समिति का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। यानी कम्युनिस्टों का “कैडर” उनकी असलियत समझने लगा है। इसी बीच चुनाव आयोग द्वारा पश्चिम बंगाल में 5 चरणों में मतदान कराने की घोषणा ने वाममोर्चे को सकते में ला दिया है। अब वे 5 चरणों में मतदान का तीव्र विरोध कर रहे हैं और चुनाव आयोग की निंदा। तर्क यह है कि यहां केवल 2 चरणों में मतदान होता आया है। शायद उस स्थिति में चुनाव जीतने की वामपंथी “रणनीति” ज्यादा कारगर रहती है। पर कश्मीर और बिहार के बाद चुनाव आयोग ने शायद यह तय कर लिया है कि वह बंगाल में वामपंथियों का बंधक बन चुके चुनावी तंत्र को मुक्त कराकर ही रहेगा। जब पांच चरणों में मतदान होगा तो चुनाव आयोग की कड़ी निगरानी रहेगी और “बूथ पर जीतने” की वामपंथी रणनीति असफल हो जाएगी। यह तब और खतरनाक हो जाता है जब बूथ लूट का माहिर “कैडर” भी नाराज हो। ऐसे में नए चेहरे से चुनावी नैया पार लगाने की वामपंथी रणनीति देखें क्या गुल खिलाती है।
क्योंकि वह सेकुलर हैं
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी का सेकुलरवाद किसी से छिपा नहीं है। उनका “सेकुलर चेहरा” रह-रह कर सामने आ ही जाता है। इसका एक अवसर हाल ही में फिर आया जब वे एक शिलान्यास कार्यक्रम में भाग लेने नेल्लोर पहुंचे। मार्ग में जगह-जगह स्थानीय जनता अपने मुख्यमंत्री को देखने, उनका स्वागत करने के लिए एकत्र थी। लेकिन मुख्यमंत्री को थोड़ी देर रुक कर उनका अभिवादन स्वीकार करना जरूरी नहीं लगा। मार्ग में कई जगह स्कूली छात्र-छात्राएं भी जमा थे, जो अपने मुख्यमंत्री से कुछ कहना चाहते थे, पर मुख्यमंत्री का काफिला यहां भी नहीं रुका। आगे चलकर एक जगह कुछ ननें हाथों में फूल लिए खड़ी थीं। उन्हें देखते ही रेड्डी ने अपनी कार रुकवाई और उतर पड़े। उनका अभिनन्दन स्वीकार कर फूल भी लिए।
उल्लेखनीय है कि रेड्डी के शासनकाल में ही आंध्र प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बना जहां सरकारी नौकरी एवं शिक्षण संस्थानों में मुस्लिमों के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण लागू करने का प्रस्ताव रखा गया। सर्वोच्च न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा तब इस असंवैधानिक कदम को रोका जा सका। ईसाई और मुस्लिम समुदायों के प्रति नियमों से परे जाकर “बड़ा दिल” दिखाने वाले रेड्डी जब नेल्लोर में शिलान्यास कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे तो वहां मौजूद पुजारी ने उनसे शुरुआत में नारियल फोड़ने का अनुरोध किया, लेकिन रेड्डी ने पुजारी से ही नारियल तोड़ने को कहा। दक्षिण और महाराष्ट्र में शुभ कार्य से पूर्व नारियल तोड़ने की परंपरा है, पर रेड्डी में सनातन धर्म की परंपराओं के प्रति विशेष सम्मान नहीं दिखता।
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