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-हनुमान प्रसाद पोद्दार
(भाई जी पावन स्मरण, पृ. 652 पर उद्धृत)
बजट से निराशा
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संप्रग सरकार का रिकार्ड नकारात्मक ही रहा है। वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा प्रस्तुत बजट में भी इसकी झलक मिलती है। 1991 में सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश की प्रक्रिया खुद डा. मनमोहन सिंह ने शुरू की थी, जिसे भाजपा ने या यूं कहें कि विनिवेश मंत्री अरुण शौरी ने खूब आगे बढ़ाया। किन्तु अब डा. मनमोहन सिंह की सरकार स्वयं उल्टी दिशा में चल रही है। उनकी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र को पुन: पोषित करने की स्थिति में आ गई है। बुनियादी संरचना को बढ़ावा देने के लिए राजग सरकार ने स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना की शुरुआत की थी, पर संप्रग सरकार ने इस दिशा में भी कोई पहल नहीं की है। ताजे आंकड़े के अनुसार तो बुनियादी संरचना के जो छह मुख्य क्षेत्र हैं, उनकी विकास दर 4.7 प्रतिशत से घट कर इस वर्ष 3.3 प्रतिशत रह गई है। यह निराशाजनक स्थिति है। वर्तमान में विकास दर 8 फीसदी है। इस विकास दर के समकक्ष बुनियादी संरचना में विकास जरूरी है, अन्यथा यह दर टिकाऊ नहीं होगी। 12 से 15 फीसदी तक विकास दर हासिल की जा सकती है, यदि बुनियादी संरचना में सरकारी निवेश बढ़ाया जाए। पर चूंकि इस बजट में इस क्षेत्र में कोई पहल नहीं की गई है, इसलिए यह निराशाजनक बजट है। यदि भारत का उत्पादन क्षेत्र सुदृढ़ होता अर्थात् उत्पादन दर बढ़ रही होती तो आयात शुल्क घटाना तर्कसंगत होता। लेकिन आज तो उत्पादन क्षेत्र की विकास दर कम हो रही है। पिछले साल यह दर 8.4 प्रतिशत थी और इस साल 7.8 प्रतिशत है। इस परिस्थिति में आयात शुल्क को घटाने का अर्थ है उत्पादन के क्षेत्र में और दबाव बढ़ाना। इस कारण बाहरी माल का आयात बढ़ेगा और घरेलू माल का उत्पादन घटेगा। अब सवाल उठता है कि इन नकारात्मक पहलुओं के बावजूद भारत की विकास दर में वृद्धि क्यों? इस संबंध में तथ्य की बात यह है कि 1997 से लेकर 2001 तक अमरीकी अर्थव्यवस्था में इन्टरनेट, सूचना प्रौद्योगिकी आदि का चलन खूब बढ़ा। वहां की बड़ी-बड़ी कम्पनियों के शेयर भी ऊंचे भावों में बिके। इस कारण भारत सहित विश्वभर की पूंजी अमरीका की तरफ भागी। यही कारण है कि राजग सरकार के कार्यकाल में विकास दर न्यून रही।
अब दो-तीन साल से परिस्थितियां बदल रही हैं और अमरीकी अर्थव्यवस्था ढीली होती जा रही है। परिणामस्वरूप हमारी जो पूंजी बाहर भाग रही थी या पहले से विदेशों में जो भारतीय पूंजी थी, वह वापस आने लगी है। इसके साथ-साथ कुछ विदेशी पूंजी भी आ रही है। इस कारण रुपया मजबूत हो रहा है और शेयर बाजार में भी तेजी है। शेयर बाजार में तेजी के कारण कम्पनियों ने कुछ निवेश किया, उनका लाभ बढ़ा। इस प्रकार एक सुचक्र चालू हो गया। यानी अमरीकी अर्थव्यवस्था कमजोर हुई, भारतीय पूंजी वापस होने लगी और हमारी विकास दर बढ़ने लगी। इसमें वर्तमान सरकार का तनिक भी योगदान नहीं है। विकास दर में वृद्धि सरकार की नीतियों के कारण नहीं, बल्कि बाहरी परिस्थितियां हमारे अनुकूल होने के कारण हुई है। इन अनुकूल परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए सरकार को विनिवेश बढ़ाना चाहिए था, बुनियादी संरचना पर और ध्यान देना चाहिए था। लेकिन इस सरकार ने यह सब न करके एक ही सिद्धान्त अपनाया है कि सब कुछ यथावत चलता रहे। एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि भारत में जो विदेशी पूंजी आ रही है, वह सेवा क्षेत्र में अधिक आ रही है, क्योंकि सेवा क्षेत्र में भारत का तेजी से विकास हो रहा है। सेवा क्षेत्र में हम केवल साफ्टवेयर की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि कला, चिकित्सा, शिक्षा सभी शामिल हैं। हमें उम्मीद है कि इन क्षेत्रों में हमारा विकास जारी रहेगा, क्योंकि हमारी परम्पराएं ऐसी हैं कि उसमें बुद्धि का विकास ज्यादा होता है। उदाहरण के लिए, हिन्दुओं में तिलक लगाने की जो प्रथा है उस कारण बुद्धि तेज होती है। यदि सेवा क्षेत्र में हमारा विकास जारी रहेगा, तो विदेशी पूंजी का बहाव भी हमारी ओर रहेगा। इसका ध्यान सरकार को रखना चाहिए और सेवा क्षेत्र में कर के रूप में कोई अनावश्यक बोझ न डाला जाए। पर इस सरकार ने बजट में बुनियादी संरचना और सेवा क्षेत्रों के लिए कुछ विशेष प्रावधान न करके एक स्वर्णिम अवसर खो दिया है।
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