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पाठकीय

by
Dec 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Dec 2006 00:00:00

पञ्चांग

संवत् 2062 वि.ग् वार ई. सन् 2006

फाल्गुन शुक्ल 13 (प्रदोष व्रत) रवि 12 मार्च

,, ,, 14 सोम 13 ,,

फाल्गुन पूर्णिमा (होलिकादाह) मंगल 14 ,,

चैत्र कृष्ण

(वसन्तोत्सव, होली) 1 बुध 15 ,,

,, ,,

(तिथि की वृद्धि) 1 गुरु 16 ,,

,, ,, 2 शुक्र 17 ,,

,, ,, 3 शनि 18 ,,

फ्लू का रोग

फैल गया है बर्ड फ्लू, कैसा भीषण रोग

मानव के इस पाप को, मूक रहे हैं भोग।

मूक रहे हैं भोग, दफ्न हो रहे बिचारे

कुछ खुद ही मर रहे, शेष जाएंगे मारे।

कह “प्रशांत” ना जाने रोग कहां से आया

इससे भारत का कोना-कोना थर्राया।।

-प्रशांत

कांग्रेस-कम्युनिस्ट

देश-धर्म से दूर

मंथन के अन्तर्गत देवेन्द्र स्वरूप ने “क्या भाजपा-वंशवाद गठबंधन सम्भव है” लेख में भाजपा और कांग्रेस के बीच राष्ट्रहित में राजनीतिक गठबंधन की सम्भावना और उपयोगिता की चर्चा की है। यदि ऐसा कोई गठबंधन बनता है तो मेरे विचार से विपक्ष की भूमिका पूरी तरह वामपंथी निभाएंगे जो कि दूरगामी दृष्टि से ठीक नहीं होगा। अत: एक ऐसी रणनीति की आवश्यकता है ताकि वामपंथी केन्द्र सरकार पर अपना नियंत्रण भी न रख सकें और न ही उन्हें मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिल सके।

-राम हरि शर्मा

गुरु तेग बहादुर नगर (दिल्ली)

भाजपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन शायद ही हो। क्या अग्नि और जल के बीच मैत्री संभव है? जनसंघ से लेकर भाजपा तक की यात्रा को देखने पर पता चलता है कि पहले जनसंघ और अब भाजपा के प्रति कांग्रेस का दृष्टिकोण सर्वदा शत्रुवत् रहा है। बाबरी ढांचा ढहने के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भाजपा की कई राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया था। कांग्रेस और भाजपा के विचारों में भी काफी फर्क है। इसलिए इन दोनों के

बीच गठबंधन की बात केवल दिवास्वप्न लगता है। इस आलेख के कारण बहुत से पाठक भ्रमित हो सकते हैं।

-मोहित कुमार मंगलम्

कुशी, कांटी, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार)

देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख में मा.गो. वैद्य का संदर्भ देते हुए कहा कि उन्होंने कांग्रेस से भाजपा के गठबंधन की बात कही थी। मेरे विचार से श्री वैद्य ने जिस कांग्रेस की बात कही थी, उस कांग्रेस से आज की वंशवादी कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है। संभवत: उन्होंने महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक और गोखले की कांग्रेस के सन्दर्भ में इस गठबंधन की बात कही थी, क्योंकि उसी कांग्रेस ने 1906 के अधिवेशन में स्वदेशी और स्वराज जैसे मुद्दों को उठाया था। इन्हीं मुद्दों की बात भाजपा भी करती है। रजत जयन्ती महोत्सव में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जिस स्वराज और शुचिता की बात की थी, शायद उसी को ध्यान में रखकर श्री वैद्य ने यह सुझाव दिया था। आज कांग्रेस जिन क्षेत्रीय दलों और वामपंथियों को लेकर सरकार चला रही है, वे देश को एक उचित दिशा देने की बजाय स्वार्थों की पूर्ति के लिए राष्ट्रहित की बलि दे रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व को यह बात समझनी होगी।

-दिलीप शर्मा

114/2205, एम.एच.वी. कालोनी, समता नगर,

कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)

कलई खुली

आवरण कथा के अन्तर्गत आलोक गोस्वामी की रपट “बेहाल बंगाल” ने प. बंगाल में तीन दशक से निरन्तर शासन करने वाले वामपंथियों की कलई खोल दी है। मजदूरों और गरीबों की बात करने वाले इन वामपंथियों के शासन में ही गरीब बेहाल हैं। वामपंथी अपनी खाल बचाने के लिए कुछ भी कहें, पर बंगाल की दयनीय स्थिति को पूरा देश जानता है। हड़ताल दर हड़ताल के कारण अपना कारोबार समेट कर सैकड़ों उद्योगपति बंगाल से पलायन कर चुके हैं। हजारों मजदूर बेरोजगारी से जूझ रहे हैं।

-सुरेन्द्र चन्द्र

लिलुआ, हावड़ा (प. बंगाल)

कम्युनिस्ट आतंकवाद के खिलाफ बंगाल में स्वर उठने लगे हैं। पर कामरेड गुण्डागर्दी के बल पर उन्हें दबाने का प्रयास कर रहे हैं। वहां से जैसी खबरें आ रही हैं, उनसे लगता है कि लोग इस बार ऐसे दलों को स्वीकार नहीं करेंगे जो भारतीय परम्पराओं के मुखर विरोधी हैं।

-अभिजीत ” प्रिंस”

इन्द्रप्रस्थ, मझौलिया, मुजफ्फरपुर (बिहार)

वोट बैंक का लालच

संप्रग सरकार द्वारा नवगठित अल्पसंख्यक मंत्रालय के सन्दर्भ में डा. नजमा हेपतुल्ला, सरदार तरलोचन सिंह, सैयद शहाबुद्दीन, सैयद शाहनवाज हुसैन, शाहिद सिद्दिकी और तनवीर हैदर उस्मानी के विचार पढ़े। डा. नजमा हेपतुल्ला बिल्कुल सही कहती हैं कि मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। सच में कांग्रेस ने मुसलमानों को छला ही है। यदि वह मुसलमानों के लिए इतनी ही चिन्ता करती तो मुसलमान पिछड़े नहीं रहते, क्योंकि कांग्रेस ने देश पर 45 साल से अधिक शासन किया है। इसका अर्थ साफ है कि मुसलमानों को फिर से अपनी ओर खींचने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन किया गया है।

-गणेश कुमार

पुनाईचक, पटना (बिहार)

केन्द्र में जब कांग्रेस की सरकार बनी है, वह समाज में समरसता का वातावरण पैदा करने की बजाय उसको बांटने का कार्य करती है। इस बार भी उसने अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन कर समाज को बांटने का ही काम किया है। समाज में विभेद पैदा करने वाले इस तरह के मंत्रालय न गठित कर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के क्षेत्रों में ईमानदारी से कार्य करने की आवश्यकता है।

-दिनेश गुप्त

कृष्णगंज, पिलखुवा, गाजियाबाद (उ.प्र.)

गौरव का दर्शन

डा. वेदज्ञ आर्य का शोधपरक आलेख- “सरस्वती नमस्तुभ्यम्” पढ़कर राष्ट्र की प्राचीन संस्कृति का बोध होता है। किन्तु सेकुलर वामपंथी जानबूझ कर भारतीय संस्कृति के गौरव को स्वीकार नहीं करना चाहते अथवा स्वीकार नहीं करने का दिखावा करते हैं। सन् 1985 में सरस्वती नदी शोध अभियान का नेतृत्व करने वाले डा. वाकणकर परिश्रमी पुरातत्ववेत्ता थे। उनको लगनपूर्वक काम करते हुए मैंने निकटता से देखा है। उनके द्वारा किया गया अन्वेषण ठोस आधारों पर आधारित है। इस लेख के प्रकाशन के लिए बधाई स्वीकार करें।

-डा. जगदीश चन्द्र लाड़

इन्दौर (म.प्र.)

मूल्यवान विचार

आजकल पाञ्चजन्य में विचार-गंगा के अन्तर्गत श्री गुरु जी के विचारों को प्रकाशित किया जा रहा है। ये विचार हम सबके लिए अत्यन्त मूल्यवान हैं और सबसे बड़ी बात है कि ये घर बैठे प्राप्त हो रहे हैं। मेरा विश्वास है कि यदि हर स्वयंसेवक इन विचारों को मनोयोग से पढ़े और उन्हें आचरण में उतारे तो हम संघ के माध्यम से हिन्दू समाज को परम वैभव के गन्तव्य तक पहुंचाने में सफल हो जाएंगे। मैं तो अपने आपको अत्यन्त भाग्यवान समझता हूं, क्योंकि भारतीय सेना में सेवारत रहते हुए श्री गुरुजी के दर्शन और मार्गदर्शन पांच बार प्राप्त कर चुका हूं।

-सूबेदार मेजर योगेन्द्र कृष्ण (से.नि.)

652 बी, सैनिक कालोनी, सेक्टर-19, फरीदाबाद (हरियाणा)

याकूब का जहरीला तेवर

पिछले दिनों पैगम्बर साहब के कार्टून को लेकर उठे विवाद के खिलाफ मेरठ में मुसलमानों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों को उकसाते हुए राज्य के हज मंत्री याकूब कुरैशी ने कहा कि उस चित्रकार को जो भी जान से मारेगा उसे 51 करोड़ रुपए की एक मोटी रकम दी जाएगी। हिंसा की प्रेरणा देने वाले ऐसे मंत्री को मंत्रिमंडल से तुरन्त बाहर करके जेल में डाल देना चाहिए। किन्तु हैरानी की बात तो यह है मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उन्हें बर्खास्त करने की बजाय उनका बचाव कर रहे हैं। यह सच है कि किसी व्यक्ति को मजहबी भावनाओं को भड़काने की छूट नहीं दी जा सकती, पर किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को भड़काऊ भाषण भी नहीं देना चाहिए। हाजी याकूब से मैं पूछना चाहती हूं कि जिस काम के लिए उन्होंने 51 करोड़ रुपए का इनाम रखा है, उस काम को वही खुद क्यों नहीं कर देते? दूसरा सवाल यह भी है कि जब मकबूल फिदा हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं के अश्लील चित्र बनाते हैं, तब भी उनकी भावनाओं को इसी तरह ठेस पहुंचती है क्या?

-लक्ष्मीकांता चावला

उपाध्यक्ष, पंजाब भाजपा,

अमृतसर (पंजाब)

पुरस्कृत पत्र

सेकुलरो, सत्य को स्वीकारो

सरस्वती नदी के अस्तित्व को लेकर सेकुलर भ्रान्ति अब तक बरकरार है। तथाकथित विद्वानों का एक वर्ग इस पवित्र नदी के अस्तित्व को मानता ही नहीं है। उसका कहना है कि इसका वर्णन केवल वैदिक और पौराणिक साहित्यों में उपलब्ध है, जो कपोल-कल्पित हैं। इतिहास तो विशुद्ध पुरातात्विक साक्ष्यों पर आधारित होता है, मान्य होता है। इसके विपरीत भारतीय सभ्यता-संस्कृति के प्रति उदार मनीषियों का एक वर्ग सरस्वती नदी के अस्तित्व को अकाट तथ्यों द्वारा प्रमाणित करता आ रहा है। वैचारिकी में प्रकाशित आलेख को आधार मानें तो “वैदिक सरस्वती नदी शोध अभियान दल, 1985” के अग्रणी स्वर्गीय विष्णु श्रीधर वाकणकर ने 100 से अधिक स्थानों का सर्वेक्षण किया, परम्परागत जानकारी प्राप्त की, उत्खनन किया, जहां प्रचुर पुरातात्विक सामग्री उपलब्ध हुई। अब इससे बड़ा पुष्ट प्रमाण क्या चाहिए? जब पुरातात्विक साक्ष्य ही इतिहास का एकमात्र आधार है, तब तो यह मानना ही पड़ेगा कि सरस्वती नदी अविरल प्रवाहमान थी। शायद भौगोलिक परिवर्तनों के कारण इसकी धारा अवरुद्ध हो गयी, इसके स्रोत सूख गए, फलत: धीरे-धीरे यह लुप्त हो गई। इसका मतलब यह तो नहीं है कि इसका अस्तित्व था ही नहीं। इतिहास केवल पुरातात्विक साक्ष्यों पर ही आधारित नहीं होता, साहित्यिक स्रोतों का सहारा भी लेना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि साहित्य के अन्तर्गत ही इतिहास-धर्म-दर्शन- पुराणादि समाहित हैं। ऋग्वेद के ऋषि, कवि, द्रष्टा पंथनिरपेक्षवाद, अल्पसंख्यकवाद से परे मानवतावाद के उपासक थे। ऋग्वैदिक काल में तो इस्लाम, ईसाई और कम्युनिज्म का जन्म ही नहीं हुआ था। डा. वाकणकर ने सत्य का उद्घाटन किया। जब साहित्यिक साक्ष्यों को नकारेंगे तब प्राचीनकाल से आधुनिककाल तक के उन पर्यटकों, इतिहासकारों, अनुसंधानकर्ताओं की रचनाओं-खोजों, जो लोकमन, लोकरंग, लोकगीत, लोकभाव पर आधारित हैं, को भी नकारना पड़ेगा। फिर इतिहास के गर्भ में बचेगा क्या! विरोध करने के लिए विरोध करना उचित नहीं होता। सत्य को स्वीकारना और उसे प्रचारित-प्रसारित करना धर्म जागरण कहलाता है।

-अजय कुमार मिश्र

निगम प्राथमिक बाल विद्यालय,

नं. 1 तिगड़ी, नई दिल्ली-62

हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.

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