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केरल का एक अनूठा कीर्तिमान

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Dec 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Dec 2006 00:00:00

6000 घोषवादकों ने 700 कि.मी. संचलन करके

गणतंत्र दिवस पर दिया संदेश

सजग रहो, सबल बनो

-तिरुअनन्तपुरम से प्रदीप कुमार

स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए श्री मोहनराव भागवत। उनके बायीं ओर हैं प्रांत संघचालक श्री पी.ई.बी. मेनन

(मध्य में) तिरंगा फहराते हुए रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत

प्रार्थना करते हुए घोषवादकों का एक विहंगम दृश्य

अभूतपूर्व था वह पथ संचलन। गत 5 जनवरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 6000 पूर्ण गणवेषधारी स्वयंसेवकों का घोष दल जब “राष्ट्र रक्षा संचलन” के निमित्त केरल के कासरगोड जिले के “बकल फोर्ट” से रवाना हुआ तो स्थान-स्थान पर इस संचलन के स्वागत में लोगों का हुजूम उमड़ आया। 20 दिन तक लगभग 700 कि.मी. की विशाल दूरी नापते हुए जब यह संचलन तिरुअनन्तपुरम में घोषध्वनि के बीच सड़कों से गुजरा तो जैसे एक इतिहास ही निर्मित हो गया था। पहले ऐसा न कभी देखा, न सुना गया। और जैसा कि इस संचलन के नाम से ही स्पष्ट है, केरल के प्रत्येक जिले से गुजरते हुए इस “राष्ट्र रक्षा संचलन” ने ग्राम-ग्राम, शहर-शहर के लाखों लोगों में अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के प्रति सतत् सन्नद्ध रहने का अनूठा और अनोखा उद्घोष प्रसारित किया, जिसे देख-सुनकर सचमुच में गांव-गांव, नगर-नगर में लोग उस मार्ग की ओर उमड़ पड़े, जिस मार्ग से गणवेशधारी स्वयंसेवकों का दल घोषध्वनि करता हुआ बढ़ता चला जा रहा था। संचलन दल के साथ दो मशालें भी चल रही थीं। केरल के उन हजारों बलिदानियों, स्वतंत्रता प्रेमियों के बलिदान के प्रतीक रूप में ये दो ज्योति-मशालें साथ में थीं जिन्होंने ब्रिटिश दासता के विरुद्ध सतत् संघर्ष किया, प्राण दिए पर अपनी मातृभूमि की पराधीनता जीते जी स्वीकार नहीं की। प्झासी राजा और वेलुथम्पी दलवा, दोनों महापुरुष केरल की धरती पर जन्में, प्झासी राजा का सम्बंध वायनाड जिले से था तो वेलुथम्पी त्रावणकोर राज्य के दीवान थे। दोनों ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता की मशाल को प्रज्ज्वलित किया था। प्झासी राजा ने तो कुरुची जनजातियों को साथ लेकर केरल के इतिहास में अंग्रेजों के विरुद्ध पहला गुरिल्ला संग्राम भी छेड़ा था। आज भी ये दोनों महापुरुष केरल में स्वतंत्रता संग्राम के प्रज्ज्वलित कीर्तिपुंज के रूप में माने जाते हैं। स्वयंसेवकों ने दोनों के मातृस्थान से दो मशालें प्रज्ज्वलित कीं और वे इन्हें लेकर 24 जनवरी को तिरुअनन्तपुरम पहुंचे। रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री रंगा हरि और विवेकानंद केन्द्र के प्रमुख श्री पी. परमेश्वरन ने अपने हाथों में मशाल को थामा और फिर एक के बाद एक हजारों मशालें जगमगा उठीं, मानो यह संदेश चारों ओर मुखरित हो उठा- “स्वतंत्रता की ज्योति कभी बुझने नहीं देंगे।”

हर दृष्टि से अनोखा, अनूठा सिद्ध हुआ यह पथ संचलन। संचलन की 700 कि.मी. की यात्रा में 22 स्थानों पर स्वयंसेवकों और आम जन के विशाल समागम हुए। सैकड़ों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानी, अध्यापक, वैज्ञानिक, साहित्यकारों, कलाकारों, अवकाश प्राप्त सैनिकों और खिलाड़ियों ने इस राष्ट्र रक्षा संचलन का आगे बढ़कर स्वागत किया। माताएं-बहनें, आबाल-वृद्ध, मजदूर-किसान, गरीब-अमीर, सभी की आंखों में राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति कर्तव्य बोध का स्मरण कराती यह अनूठी यात्रा जब तिरुअनन्तपुरम पहुंची तो “राष्ट्र रक्षा संगम” में एक लाख से अधिक लोग एकत्रित हुए तिरुअनन्तपुरम में (26 जनवरी) गणतंत्र दिवस। पर छह अलग-अलग स्थानों से संचलन निकला, जिसमें दस हजार पूर्ण गणवेषधारी स्वयंसेवकों ने भाग लिया। शहर में संचलन की दिव्य झांकियों, कलाकृतियों व सजे-संवरे हाथियों ने जनता का मन मोह लिया। पूरी यात्रा में “तस्मत् जाग्रत-जाग्रत” का नारा गूंजता रहा। तिरुअनन्तपुरम के विश्वविद्यालय स्टेडियम में घोष दल के अत्यंत उत्कृष्ट प्रदर्शन के बीच रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री मोहन राव भागवत ने राष्ट्रीय ध्वज-तिरंगे का आरोहण किया और जन-गण-मन अधिनायक के गान से वातावरण गुंजित हो उठा। सरकार्यवाह के प्रेरक उद्बोधन के बाद स्वयंसेवक कभी न मिटने वाली अविस्मरणीय स्मृतियों को मन में संजोए पुन: निकल पड़े- अपने शाखा क्षेत्र में श्री गुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष का संदेश जन-जन में गुंजाने।

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